अजीत द्विवेदी
Global hunger index हम विश्वगुरू फिर भी हमें बदनाम कर रही दुनिया!
Global hunger index इस साल का भूख का वैश्विक सूचकांक यानी ग्लोबल हंगर इंडेक्स जारी होने के बाद भारत में जो बहस छिड़ी है उसमें सबसे दिलचस्प प्रतिक्रिया भारत सरकार की अपनी है। दुनिया के 120 देशों के इस सूचकांक में भारत 107वें नंबर पर है। पिछले साल यानी 2021 में भारत 101वें स्थान पर था और उससे पहले 2020 में 94वें स्थान पर था।
Global hunger index यानी भारत की रैंकिंग में हर साल छह-सात स्थान की गिरावट की एक किस्म की निरंतरता है। इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए भारत सरकार के महिला व बाल विकास मंत्रालय ने कहा ‘भारत में बारे में गलत सूचना फैलाई जा रही है और यह भारत को बदनाम करने के लिए निरंतर चल रहे अभियान का एक हिस्सा है’।
Global hunger index मंत्रालय ने यह भी कहा कि ये जो रैंकिंग बनाई गई है वह चार मानकों पर आधारित है, जिसमें तीन मानक बच्चों से जुड़े हैं और एक मानक महज तीन हजार लोगों की राय पर आधारित है। बच्चों वाले मानकों पर ज्यादा ध्यान दिए जाने को खारिज करते हुए महिला व बाल विकास मंत्रालय ने कहा कि सरकार 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज उपलब्ध करा रही है।
Global hunger index महिला व बाल विकास मंत्रालय की प्रतिक्रिया दो मायने में बहुत दिलचस्प है। भूख की रैंकिंग में भारत के लगातार नीचे गिरते जाने पर विचार से पहले इसका जिक्र जरूरी है कि मंत्रालय की प्रतिक्रिया क्यों दिलचस्प है। पहली बात, जो मंत्रालय ने कही है वह ये है कि दुनिया भर में भारत को बदनाम करने का अभियान चल रहा है। यह स्पष्ट रूप से भारत सरकार के विज्ञापनों, प्रचार और प्रधानमंत्री सहित तमाम बड़े मंत्रियों के बयानों का खंडन है।
खुद नरेंद्र मोदी ने कितनी बार कहा है कि उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद दुनिया में भारत का मान बढ़ा है, दुनिया भारत की बात ध्यान से सुनती है और भारत की बात मानती है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि दुनिया का कोई भी बड़ा फैसला अब प्रधानमंत्री मोदी की राय के बिना नहीं होता है। पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने यूक्रेन से भारतीयों को सुरक्षित निकलवाने के लिए रूस-यूक्रेन युद्ध रूकवा दिया था।
सोचें, जिस देश का प्रधानमंत्री इतना ताकतवर हो, जिसके हिसाब से दुनिया चलती हो उस देश को बदनाम करने का अभियान भला कौन चला सकता है? दोनों में से कोई एक ही बात हो सकती है या तो भारत को बदनाम किया जा रहा है या भारत का सम्मान दुनिया भर में बढ़ा है!
दूसरी दिलचस्प बात यह है कि मंत्रालय ने कहा कि जिन चार पैमानों पर रैंकिंग तैयार की गई है उनमें एक पैमाना तीन हजार लोगों के बीच हुआ सैंपल सर्वे है। इतने बड़े देश में इतने कम लोगों को सैंपल सर्वे के आधार पर कोई भी निष्कर्ष कैसे निकाला जा सकता है?
सवाल तो बड़ा जायज दिख रहा है। लेकिन क्या हर साल जब यह ग्लोबल रैंकिंग आती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं और उनको 70 फीसदी लोगों का एप्रूवल है तो किसी भाजपा नेता की ओर से इस पर सवाल उठाते देखा है किसी ने?
प्रधानमंत्री मोदी को दुनिया का सबसे लोकप्रिय नेता घोषित करने वाली संस्था का नाम ‘मॉर्निंग कंसल्ट’ है और उसके सर्वे का साइज 2,126 लोगों का है। सभी देशों के मुकाबले सबसे छोटा सैंपल साइज भारत का होता है। भारत के 10 हजार साक्षर लोगों में से दो की राय पर आधारित होता है मोदी के सबसे लोकप्रिय नेता होना की घोषणा। लेकिन इसे दिल खोल कर स्वीकार किया जाता है और भाजपा के बड़े नेता आदि इसे ट्विट करके दुनिया को बताते हैं।
सोचें, अमेरिका की एक नामालूम सी संस्था दो हजार लोगों की राय पूछ कर एक रैंकिंग बनाती है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दुनिया का सबसे लोकप्रिय नेता बताया जाता है तो उसे सहज भाव से स्वीकार किया जाता है। इसी तरह विश्व बैंक की ओर से बनाई गई कारोबार सुगमता रैंकिंग में भारत का स्थान सुधरा तो प्रधानमंत्री सहित सारे मंत्रियों ने इसका डंका बजाया।
हालांकि बाद में कारोबार सुगमता की रैंकिंग को बंद कर दिया गया क्योंकि विश्व बैंक को अपनी जांच में पता चला कि कई देशों ने पैसे देकर इसमें हेराफेरी कराई थी। इसके बावजूद भारत उस रैंकिंग को बड़े गर्व से स्वीकार करता है। लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ से जुड़ी एजेंसियां या दूसरी प्रतिष्ठित संस्थाएं कोई रैंकिंग जारी करती हैं, जिनमें भारत का स्थान नीचे होता तो उसे तत्काल खारिज कर दिया जाता है और कहा जाता है कि यह भारत को बदनाम करने के अभियान का हिस्सा है। सोचें, अगर अमेरिका की कंपनी ‘मॉर्निंग कंसल्ट’ या अमेरिका में स्थित विश्व बैंक किसी मामले में भारत का मान बढ़ा रहे हैं तो संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्थाएं क्यों भारत को बदनाम करने का अभियान चलाएंगी? इसके लिए हिंदी में एक मुहावरा है- मीठा मीठा गप्प, कड़वा कड़वा थू!
जिस सर्वे में या जिस सूचकांक में भारत को अच्छा स्थान मिलेगा उसे स्वीकार किया जाएगा और जिस सूचकांक में भारत का स्थान नीचे जाएगा उसमें खारिज कर दिया जाएगा, यह नीति प्रचार और जन संपर्क रणनीति यानी पीआर के लिए तो ठीक है लेकिन देश की सेहत और उसके नागरिकों के भविष्य के लिए अच्छी नहीं है।
यह बिल्ली को देख कर कबूतर की तरह आंख बंद कर लेने जैसा है। संकट या समस्या के इनकार से संकट समाप्त नहीं होते हैं और न उनका समाधान होता है। सरकार अगर आगे बढ़ कर समस्या को स्वीकार करती है तभी उसका समाधान निकलेगा। जो समस्याएं प्रत्यक्ष, नंगी आंखों से दिख रही हैं, सरकार और सत्तारूढ़ दल उससे भी इनकार कर रहा है। दुनिया भर की संस्थाओं ने भारत में लोकतंत्र की स्थिति, प्रेस की स्वतंत्रता, मानवाधिकार की स्थिति, भुखमरी और कुपोषण के हालात, धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति सहित अनेक क्षेत्रों में गिरावट को रेखांकित किया है।
Global hunger index नियमित अंतराल पर अलग अलग संस्थाओं की रिपोर्ट आती है और ग्लोबल रैंकिंग जारी होती है, जिसमें ज्यादातर में भारत की स्थिति में गिरावट दिख रही है। इसमें कई रिपोर्ट्स बेहद चिंताजनक हैं। जैसे भूख की ताजा रैंकिंग है, जिसमें बताया गया है कि दक्षिण एशिया के ज्यादातर देशों की स्थिति भारत से बेहतर है। श्रीलंका, नेपाल, पाकिस्तान और बांग्लादेश की रैंकिंग भी भारत से बेहतर है। भूख के वैश्विक सूचकांक में भारत को सौ में से सिर्फ 29.1 अंक मिले हैं, सन 2000 में यह 38.8 था।
Global hunger index भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों 19.3 फीसदी बच्चे ऐसे हैं, जिनका वजन उनकी लंबाई के अनुपात में कम है यानी वे कुपोषित हैं। यह दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले ज्यादा बड़ा आंकड़ा है। क्या इसे खारिज करना या बदनाम करने का अभियान बता कर इसकी अनदेखी करना कोई समझदारी की बात होगी?
Global hunger index ग्लोबल हंगर रिपोर्ट आयरलैंड की संस्था कंसर्न वर्ल्डवाइड और जर्मनी की संस्था वेल्ट हंगर हाईलाइफ तैयार करते हैं, जिसे दुनिया के सभ्य देश बहुत गंभीरता से लेते हैं। भारत को भी इसे खारिज करने की बजाय गंभीरता से लेना चाहिए और सुधार की पहल करनी चाहिए।