उत्साह-उल्लास और भक्ति भाव से हुआ गौरी-गौरा विसर्जन

छत्तीसगढ़ का पारंपरिक गढ़वा बाज़ा की धुन पर जसगीत गाते श्रद्धालुओं ने तालाब में गौरा गौरी का विसर्जन किया। अमूमन दीपावली पर जहां माता लक्ष्मी की पूजा घर-घर में की जाती है, वहीं यहां अनेक मोहल्लों के चौक जिन्हें गौरा गौरी चौक कहा जाता है, वहां पर माता पार्वती व भगवान शंकर की प्रतिमा को स्थापित करके पूजा-अर्चना की गई।

बता दें कि मोहल्ले के बुजुर्ग तालाब से मिट्टी लाकर प्रतिमा बनाते हे। बताया गया कि तालाब से लाई जाती मिट्टी को चूलमाटी के नाम से जाना जाता है। इसी मिट्टी से प्रतिमाएं बनाई जाती है। प्रतिमाओं की स्थापना करके शिव-पार्वती का ब्याह कराने की परंपरा निभाई जाती है।

रातभर भजन-कीर्तन व गीत गाए जाते हैं। अगले दिन गोवर्धन पूजा के बाद गाजे-बाजे के साथ प्रतिमाओं को नदी-तालाब में विसर्जित किया जाता है। इसी कड़ी में गौरा गौरी की पूजा अर्चना करने के बाद दूसरे दिन मंगलवार को विधिवत ईश्वर गौरा गौरी का विसर्जन किया गया।

इस मौके पर भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने बिल्हा विधायक धरमलाल कौशिक भी यहां पहुंचे और उन्होंने पूजा अर्चना कर भगवान का आशीर्वाद प्राप्त किया इस मौके पर उन्होंने सभी को दीपावली के साथ गौरा गौरी की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि सदियों से चली आ रही परंपरा का आज भी श्रद्धा के साथ निर्वाह किया जाता है।

यह भारत की संस्कृति को दर्शाता है धार्मिक और संस्कृति प्रधान भारत देश में त्योहारों को खुशी और उमंग के साथ मनाया जाता है तो वही परंपरा और पारंपरिक अनुष्ठानों के माध्यम सेलोग एक दूसरे के साथ खुशियां बांटते हैं छत्तीसगढ़ में गौरा गौरी का विशेष महत्व है और इसे हर क्षेत्र में मनाया जाता है खासतौर पर ग्रामीण परिवेश में इसका महत्व और भी अधिक है

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