Gariyabnd news- जो किसी का न माने वही तो अभिमानी होता है: दीदी चंद्रकला

राम कथा के पांचवे दिवस विवाहोत्सव पर देवी चंद्रकला ने छत्तीसगढ़ी माता सेवा भजन गायन कर आनंदित कर दिया

गरियाबंद। गरियाबंद के हृदय स्थल गांधी मैदान में राम कथा के पांचवे दिन श्री राम विवाहोत्सव की व्याख्या करते हुए मानस विदुषी दीदी चंद्रकला ने बताया कि उन्होंने संतो के मुख से सुना है कि सीता   के लिए वर ढूंढने मिथिला नरेश जनक  द्वारा शिव धनुष यज्ञ का ऐलान किए गए, उसमें दो तह के दस हजार राजा पहुंचे थे , कुछ ज्ञानी रहे और कुछ अभिमानी राजा , ज्ञानी राजाओं ने दूर से ही धनुष को प्रणाम किया और बोले हम धनुष तोड़ने नहीं जाएंगे क्योंकि हम भू पति हैं और वैदेही जी भू सूता है इसलिए पिता पुत्री का संबंध हुआ तो विवाह करना हमारे लिए अधर्म है , हम नहीं जाएंगे धनुष के पास लेकिन अभिमानी राजाओं ने किसी की नहीं मानी और जो किसी का न माने वही तो अभिमानी होता है, कुछ राजाओं के अभिमान को तोड़ने के लिए शेषनाग रूपी लक्ष्मण भईया और धरती मैय्या के बीच की बनी थी , आप ही सोचो कोई भी माता पिता क्या चाहेगी कि उसकी पुत्री गलत वर मिले , अभिमानी राजा जब धनुष उठाने गए तो धरती मैय्या ने धनुष को पकड़ रखा था , अपने अपने देवी देवताओं को सुमिरन कर बहुत प्रकार प्रयास किए पर धनुष हिला ही नहीं , जब सभा में उपस्थित कोई भी राजा धनुष नहीं तोड़ पाए तो मिथिला नरेश जनक जी ने कहा हे आए हुए समस्त राजा महराजाओं आज मुझे लगता है जिस विधाता ने मेरी बेटी वैदेही को सर्व गुण संपन्न बनाया उसने मेरी बिटिया के विवाह की हाथ में रेखा ही नहीं ब नाई है , उसने धनुष यज्ञ में उपस्थित दस हजार राजाओं को कहा कि आज मेरे समक्ष ऐसे धर्म संकट की परिस्थित उत्पन्न कर दिया है कि अगर मैं जानता कि इस धनुष यज्ञ का परिणाम यह होगा तो कदापि यह धनुष भंग की प्रतिज्ञा नहीं करता।
प्रण पे रहता हूं तो बिटिया कुंवारी रहेगी , प्रण छोड़ देता हूं तो पूर्वजों की कीर्ति का नाश होगा जनक जी इसी विलाप में बोल रहे की आज के बाद कोई अपने को वीर मत कहना , अपने वीरता का गुमान मत करना , मै समझ गया कि ये धरती अब वीरों से विहीन हो चुकी है , और सभी के वीरता का प्रमाण इस धनुष से मिल चुका है।

मिथिला नरेश के ऐलान से आक्रोशित लक्ष्मण अपने भईया  रघुनाथ  को बोल उठे ये शब्द ह्रदय को चुभते हैं पृथ्वी वीरों से खाली है , पूरी धरती लक्ष्मण  के क्रोध से कांपने लगी , राम ने लक्ष्मण से कहा शांत लखन और गुरुदेव भगवान ने श्री रघुनाथ जी के सिर पर हाथ रखकर धनुष उठाने इशारा किए हैं , जब राम जी चलने लगे तो अभिमानी राजा तिलमिलाने लगे , किशोरी मां भी प्रार्थना करने लगे कि हे शिव धनुष अब कृपा कर दो , अपने आप को हल्का कर दो , ये जो राम जी आपके सामने खड़े है ना उनको फुल तोड़ने में भी पसीना आता है , शिव धनुष हल्का हो गया रघुनाथ जी सामने खड़े हैं सब मिथिला वासी भी अपने अपने देवी देवताओं को प्रार्थना करने लगे , रघुनाथ ने भी अपने मन ही मन पूज्य गुरु को प्रणाम कर धनुष की ओर जैसे ही हाथ बढ़ाया पूरे सभा में प्रकाश फैल गया , और झंकार ऐसा हुआ कोई देख भी नहीं पाया और शिव धनुष दो भाग में टूट गया , धनुष के टूटते ही रघुनाथ  के संभा में जय जयकार होने लगे और  रघुनाथ  ने वैदेही को वरमाला पहनाया है ।
श्री सत्संग मानस मंडली द्वारा आयोजित राम कथा के पांचवे दिवस विवाहोत्सव पर देवी चंद्रकला ने छत्तीसगढ़ी माता सेवा भजन गायन कर सबको आनंदित कर दिया । सच्चे भक्त और सेवक की व्याख्या करते हुए अयोध्या धाम से पधारे दीदी ने बताया था कि सेवक का प्रथम धर्म जो स्वामी के प्रत्येक आवश्यकता को बिना कहे समझ सके वही सच्चा सेवक होता है ।

Related News

Related News