छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में भक्ति और आस्था का अद्भुत संगम देखने को मिला। गंगरेल बांध के किनारे स्थित मां अंगारमोती मंदिर परिसर में शुक्रवार को पारंपरिक ‘गंगरेल मड़ई मेला’ का भव्य आयोजन हुआ। दीपावली के बाद पहले शुक्रवार को हर साल होने वाले इस ऐतिहासिक आयोजन में इस बार 52 गांवों के देव विग्रह शामिल हुए। लाखों की संख्या में श्रद्धालु मां के दरबार में पहुंचे और पूजा-अर्चना की।

11 सौ निसंतान महिलाओं ने जमीन पर लेटकर मांगी संतान की मन्नत
इस मड़ई की सबसे अनोखी परंपरा है — निसंतान महिलाओं का जमीन पर लेटकर संतान प्राप्ति की कामना करना।
इस वर्ष भी करीब 1,100 से अधिक महिलाएं मंदिर प्रांगण में पेट के बल लेटकर मां अंगारमोती से मन्नत मांगती दिखीं। उनके हाथों में फूल, नींबू, अगरबत्ती और नारियल थे, जिन्हें वे माता के चरणों में अर्पित करती हैं।
मंदिर के पुजारी और बैगा (स्थानीय धार्मिक पुरोहित) उन महिलाओं के ऊपर से गुजरते हैं, जिसे अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि उनके गुजरने से मां अंगारमोती की कृपा प्राप्त होती है और निःसंतान महिलाएं मातृत्व का सुख प्राप्त करती हैं।
49 वर्षों से चली आ रही परंपरा
जानकारी के अनुसार, मां अंगारमोती मड़ई का आयोजन वर्ष 1976 से लगातार किया जा रहा है। पहले यह मड़ई चंवर गांव में आयोजित होती थी, लेकिन गंगरेल बांध निर्माण के बाद वह गांव डूब गया। तब से यह आयोजन गंगरेल बांध किनारे स्थित अंगारमोती माता मंदिर परिसर में होने लगा।
यह परंपरा पिछले 49 वर्षों से अखंड रूप से जारी है। जिले के अलावा बालोद, दुर्ग, रायपुर, कांकेर और बस्तर से भी श्रद्धालु यहां बड़ी संख्या में पहुंचते हैं।
देव विग्रहों की शोभायात्रा से गूंज उठा गंगरेल
इस बार के आयोजन में 52 गांवों के देव विग्रह शामिल हुए। पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुनों पर देव झंडे, डोल-नगाड़े और लोकगीतों के साथ जब शोभायात्रा निकली, तो पूरा इलाका श्रद्धा और उत्साह से गूंज उठा।
ग्रामीणों ने पारंपरिक पोशाकों में नृत्य किया और माता के जयकारों से वातावरण गुंजायमान रहा।
मां अंगारमोती की महिमा और मान्यता
मां अंगारमोती को संतान देने वाली देवी के रूप में पूजनीय माना जाता है। कहा जाता है कि जो श्रद्धालु सच्चे मन से मां के चरणों में आकर मन्नत मांगता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है।
स्थानीय बैगाओं के अनुसार, कई महिलाएं जिन्होंने वर्षों तक संतान प्राप्ति के लिए संघर्ष किया, उन्होंने इस परंपरा को निभाने के बाद संतान सुख पाया है। यही वजह है कि हर साल यहां श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती जा रही है।
भक्तिमय माहौल और ग्रामीण संस्कृति का अद्भुत संगम
गंगरेल मड़ई सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि ग्रामीण संस्कृति, लोककला और आस्था का संगम भी है। यहां मेला लगने के साथ-साथ स्थानीय उत्पाद, हस्तशिल्प, खानपान और लोकनृत्य कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है।
पूरा मंदिर परिसर दीपों से सजा हुआ था और भक्तों की भीड़ देर रात तक माता के दर्शन के लिए उमड़ी रही।
अंत में
मां अंगारमोती मड़ई अब सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं रहा, बल्कि यह धमतरी की सांस्कृतिक पहचान बन चुका है।
साल दर साल यह मेला प्रदेश ही नहीं, बल्कि देशभर के श्रद्धालुओं को आकर्षित कर रहा है, जो अपनी आस्था लेकर यहां आते हैं और मां अंगारमोती से जीवन के सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।