Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से- गर्भपात किसका अधिकार?

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

सुप्रीम कोर्ट में 26 सप्ताह की गर्भवती महिला जो गर्भपात कराना चाहती है, की याचिका पर सुनवाई करते हुए कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां की है। हालांकि कोर्ट ने एम्स बोर्ड से इस मामले में कई तरह की मेडिकल जांच करने और उस पर मेडिकल साइंस के नजरिए से विचार कर 16 अक्टूबर तक अपनी रिपोर्ट देने के लिए कहा है। दरअसल ये महिला पहले ही दो बच्चों की मां है। अब महिला 26 माह का गर्भ गिराना चाहती है। वह मेडिकल तरीकों का इस्तेमाल कर गर्भपात की अनुमति लेने सुप्रीम कोर्ट पहुंची है। गर्भ गिराने की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम किसी बच्चे को नहीं मार सकते।
सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने 10 अक्टूबर को केंद्र सरकार की अपील पर गर्भपात पर अस्थायी रोक लगाई थी। केंद्र की याचिका पर सुनवाई करते हुए गुरुवार, 12 अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने कहा कि हम एक बच्चे को नहीं मार सकते। कोर्ट ने ये भी पूछा कि गर्भवती महिला शादीशुदा है, दो बच्चों की मां हैं। ऐसे में वे 26 हफ्तों तक क्या कर रही थी? अदालत ने स्पष्ट किया कि शीर्ष अदालत को अजन्मे बच्चे, एक जीवित और व्यवहार्य भ्रूण के अधिकारों को उसकी मां के फैसले लेने के अधिकार के साथ संतुलित करना है।
व्यवहारिक जीवन में ये संतुलन स्थापित करना वाकई बड़ी चुनौती है। एक मां को अपने गर्भ में पल रहे भ्रूण को जन्म देने या नहीं देने का अधिकार कब तक किस माह तक दिया जाए ये बेहद भावनात्मक सवाल है। एक महिला या ये कहें किसी जोड़े को ये इस गर्भपात संबंधी कानून के बारे में पता है। अगर आप इस संबंध में समाज में और अपने आसपास बात करेंगे तो इसकी सच्चाई पता चल जाएगी, कितने सप्ताह के भीतर अनचाहे गर्भ को गिरा सकते हैं। इस संबंध में बहुत कम जानकारी है। 24 सप्ताह तक इंतजार का कई बार ये मायने भी है कि लोग भ्रूण का लिंग पता करने या उसके संबंध में अनुमान लगने का इंतजार करते हैं, फिर गर्भपात का फैसला लिया जाता है। अगर ऐसा होता है तो ये हमारे समाज का सबसे घिनौना चेहरा है। आज कई राज्यों में बेटे की चाह में लिंग अनुपात खराब हो गया है। 21वीं सदी में भी हमारे समाज में कई ऐसे लोग हैं जो बेटी को अभिशाप मानते हैं। समाज में इस तरह की बुराई की जड़ें दूसरी अन्य बुराई इसमें दहेज जैसी प्रथा, समाज में वंश बढ़ाने के लिए पितृसत्तात्मक सोच भी कारक है।
भारत में गर्भपात को नियंत्रित करने वाले कानून, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 के अनुसार, एक पंजीकृत चिकित्सक गर्भपात कर सकता है। यदि गर्भावस्था से गर्भवती महिला के मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को खतरा हो या भ्रूण के गंभीर मानसिक रूप से पीडि़त होने की संभावना हो, या प्रसव होने पर शारीरिक असामान्यताएं हो सकती हों। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अविवाहित महिलाओं को 24 सप्ताह में गर्भपात की अनुमति दी थी, लेकिन हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम के प्रावधानों का हवाला देते हुए ऐसे मामले में गर्भपात की अनुमति देने से इनकार कर दिया। 1960 के दशक तक भारत में गर्भपात अवैध था और ऐसा करने पर एक महिला के लिये भारतीय दंड संहिता की धारा 312 के तहत तीन वर्ष की कैद और जुर्माने का प्रावधान किया गया था। 1960 के दशक के मध्य में सरकार ने शांतिलाल शाह समिति का गठन किया। डॉ. शांतिलाल शाह की अध्यक्षता वाले समूह को गर्भपात के मामले की जाँच करने तथा यह तय करने के लिए कहा गया कि क्या भारत को इसके लिए एक कानून की आवश्यकता है अथवा नहीं। शांतिलाल शाह समिति की रिपोर्ट के आधार पर लोकसभा और राज्यसभा में एक चिकित्साकीय समापन विधेयक पेश किया गया था और अगस्त 1971 में इसे संसद द्वारा पारित किया गया था।
देश में प्रतिवर्ष एक करोड़ 56 लाख गर्भपात होते हैं, जिनमें से 56 प्रतिशत असुरक्षित ढंग से किए जाते हैं। असुरक्षित गर्भपात के कारण 8.5 प्रतिशत महिलाओं की मौत हो जाती है। एक सर्वे में पाया गया कि कोरोना महामारी के दौरान लगभग 9.2 लाख महिलाएं गर्भपात करवाना चाहती थीं,लेकिन, उन महिलाओं को यह सेवाएं उपलब्ध नहीं हुई। उन्होंने कहा कि इस सर्वे में यह भी जानकारी मिली कि भारत में 6.5 लाख महिलाएं न चाहते हुए भी गर्भवती हुई। इस दौरान 10 लाख असुरक्षित गर्भपात और 2600 माताओं की मौत भी हुई।
दुनिया में कई ऐसे देश हैं जहां गर्भपात पर पूरी तरह रोक है। इन देशों में पलाऊ, जमैका, मेडागास्कर, माल्टा, मॉरिटानिया, सैन मैरिनो, लाओस, कुराकाओ, अंडोरा, कांगो, इराक, अल सल्वाडोर, मिस्र, फिलीपींस जैसे देश शामिल हैं। हालांकि भारत समेत कई देश ऐसे भी हैं, जहां पर गर्भपात कराया जा सकता है। इन देशों में गर्भपात के लिए अलग-अलग सीमा तय की गई है, यानी गर्भवती होने के कितने हफ्ते के भीतर अबॉर्शन कराना है, ये पहले से तय है। भारत में अब 24 हफ्ते तक की गर्भवती का अबॉर्शन कराया जा सकता है। हालांकि ये कुछ खास परिस्थितियों में ही होता है। इसके लिए पूरी गाइडलाइन बनाई गई है। 12 से 20 हफ्ते में गर्भपात के लिए एक डॉक्टर की सलाह लेना जरूरी है। 20 से 24 हफ्ते के गर्भपात के लिए दो डॉक्टरों की सलाह की जरूरत होगी। एक दंपति को गर्भपात जैसी स्थिति से क्यों गुजरना पड़ता है, जबकि आज के दौर में गर्भनिरोधक के कई तरह के विकल्प मौजूद हैं। फिर उन्हें भ्रूण के 24 सप्ताह के ज्यादा समय बीतने तक कोई फैसला नहीं लेने, फिर अचानक इस तरह का ख्याल आना बताता है कि समाज को फैमिली प्लानिंग के बार में और शिक्षित होने की जरूरत है।

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