Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – उच्च शिक्षा में कहां खड़े हैं ?

Editor-in-Chief

From the pen of Editor-in-Chief Subhash Mishra – Where do you stand in higher education?

– सुभाष मिश्र

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने देशभर के शिक्षण संस्थानों की एनआईआरएफ (नेशनल इंस्टिट्यूशनल फ्रेमवर्क) रैंकिंग-2023 जारी की है। इस रैंकिग में छत्तीसगढ़ का कोई भी संस्थान टॉप-10 में जगह नहीं बना पाया है। हालांकि आईआईएम और एम्स ने अपनी स्थिति में 10 स्थानों का सुधार किया है। लेकिन एनआईटी इस बार अपने पिछले स्थान से 5 स्थान नीचे है। वहीं राज्य के विश्वविद्यालयों की स्थिति बहुत चिंताजनक है। पंडित रविशंकर विश्वविद्यालय की रंकिंग 150 से 200 कैटेगरी में है जबकि उम्मीद 100 के अंदर आने की लगाई जा रही थी।
दरअसल, देश में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को मापने के लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय एनआईआरएफ रैंकिंग जारी करता है। इसमें संस्थानों में शिक्षा, शोध, फंडिंग व उसके उपयोग, मानव संसाधन व उपयोगिता, संस्थान के बारे में समाज की धारणा समेत अन्य बिंदुओं के आधार पर रैंक जारी करता है। कई तरह के अभाव में हम इन मापदंडों पर हम कितने खरे उतर सकते हैं ये भी सवाल है? उच्च शिक्षा विभाग में प्रोफेसर्स की कमी, रिसर्च वर्क का न होना भी हमारी संस्थानों की गुणवत्ता पर सवाल खड़े करते हैं। जब इतनी बड़ी तादाद में उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों के पद रिक्त हों तो दूसरे मानकों पर वह कैसे खरे उतर सकते हैं? शिक्षाविद् और इस व्यवस्था को करीब से देखने वाले भी मानते हैं कि स्थिति में सुधार के लिए शिक्षक-छात्र का अनुपात सही होना चाहिए। इसके अलावा शोध के क्षेत्र में भी और मजबूती लाने की जरूरत है। हमारे विश्वविद्यालयों और कॉलेज में जिन पर शोध कार्य हो रहे हैं उनमें से ज्यादातर सिर्फ नाम के लिए ही हैं। ऐसे में शोध कार्य को बढ़ावा देना होगा। एम्स रायपुर ने इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाए हैं, लेकिन इस दिशा में और कार्य करने की जरूरत है।
गौरतलब है कि निर्फ पांच पैरीमीटर्स पर शिक्षण संस्थानों की रैंकिंग करता है। शिक्षण संस्थानों की रैंकिंग करने के लिए विद्यार्थियों की क्षमता, उनका और फैकल्टी के बीच का अनुपात और आर्थिक संसाधन क्या है, संसाधन कितना है और उसका उपयोग किस तरह किया जा रहा है। इस पैरामीटर्स का यूज रैंकिंग के लिए किया जाता है।
शोध प्रकाशन, उसकी कितनी गुणवत्ता है, कितने आईपीआर हुए और पेटेंट कितने हुए शामिल हैं। इसमें कितने प्रकाशन और कितने ग्रांट हुए, प्रोफेशनल प्रैक्टिस कितनी हो रही है और प्रोजेक्ट के फुटप्रिंट भी देखे जाते हैं। यूनिवर्सिटी एग्जाम और संस्थान में पास हुए पीएचडी स्टूडेंट्स की संख्या के आधार पर मूल्यांकन किया जाता है।
दूसरे राज्यों से आने वाले स्टूडेंट्स की संख्या देखी जाती है। संस्थाओं में महिलाओं व छात्राओं की भी संख्या देखी जाती है। आर्थिक दिव्यांग स्टूडेंट्स के लिए उपलब्ध संसाधन या सुविधाएं और शिक्षण संस्थान के बारे में छात्रों, छात्राओं और स्टेकहोल्डर की राय के बारे में जाना जाता है।
नियोक्ताओं पर एक सर्वेक्षण किया जाता है। इस सर्वेक्षण में संस्थान की श्रेष्ठता का पता लगाया जाता है। इस तरह निर्फ के माध्यम से व्यापक स्तर पर अध्यन किया जाता है। गुणवत्ता नहीं होने के लिए हर साल लगभग देश से 7 लाख छात्र विदेश के विश्वविद्यालयों में एडमिशन लेते हैं। अच्छे डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक या प्रशासक उच्च शिक्षा को बेहतर करने से ही मिलेंगे, ऐसे में छत्तीसगढ़ को अपनी स्थिति में सुधार के लिए और गंभीर प्रयास करने की जरूरत है। जिससे हम अपनी संस्थानों का नाम न केवल देश में बल्कि दुनिया में स्थापित कर सकें।

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