प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से- मोक्षदायिनी शिप्रा का शुद्धिकरण कब?

प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से- मोक्षदायिनी शिप्रा का शुद्धिकरण कब?

– सुभाष मिश्र

शिप्रा नदी के किनारे बसे महाकाल की नगरी उज्जैन में महाकाल लोक के प्रथम चरण का आज लोकार्पण हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस महाकाल मंदिर का उद्घाटन किया। यहां श्रद्धालुओं को कला, तकनीक और आध्यात्म का अद्भुत मिश्रण देखने को मिलेगा। इस महाकाल लोक में भगवान भोलेनाथ की लीलाओं से जुड़ी 200 मूर्तियां लगी हुई हैं। वहीं शिव परिवार की भी प्रतिमाएं यहां लगाई गई है। यहां 108 विशाल स्तंभ भी बनाए गए हैं।

महाकाल लोक के लोकार्पण के साथ-साथ अब इसके पीछे सियासत भी गर्म होने लगी है। दरअसल, अभी कुछ महीने में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव होने हैं और साल भर बाद मध्यप्रदेश में भी चुनाव होंगे। ऐसे में हिंदू वोट बटोरने के लिए भाजपा की यह नीति कारगर हो सकती है, क्योंकि इससे ठीक पहले ही आयोध्या में श्रीराम मंदिर का भव्य निर्माण हो या काशी विश्वनाथ कॉरिडोर इनको संवारकर भाजपा ने हिंदू वोट बड़ी संख्या में बटोरे थे।

अब बात करते हैं उज्जैन की, जहां महाकाल लोक का निर्माण किया जा रहा है लेकिन उज्जैन में मोक्षदायिनी शिप्रा नदी के शुद्धिकरण एवं पौराणिक सप्त सागरों को बचाने के लिए धरने पर बैठ गए। ये साधु-संत 21 जनवरी से रोज दोपहर 12 बजे से दोपहर 3 बजे तक सप्त सागरों में से एक गोवर्धन सागर के किनारे अपना अनिश्चितकालीन धरना दे रहे हैं। आप सोच रहे होंगे, इस मामले में साधु-संत कैसे पड़ गए? तो इसकी भी एक कहानी है। गत 4 दिसंबर 2021 को शनिश्चरी अमावस्या का पर्व था। इस पर्व पर हजारों श्रद्धालु उज्जैन की पतित पावन शिप्रा नदी के त्रिवेणी संगम पर अपनी आस्था की डुबकी लगाने दूर-दूर से यहां आते हैं। इसी त्रिवेणी संगम पर खान नदी का प्रदूषित पानी शिप्रा नदी के पानी को गंदा नहीं कर दे, इसके लिए पिछले अनेक सालों से जिला प्रशासन मिट्टी का कच्चा बांध बना देती थी। इस बार मावठा गिर गया और शनिश्चरी अमावस्या के ही दिन प्रात:काल मिट्टी का बांध टूट गया और फिर खान नदी का अत्यंत गंदा, दूषित और प्रदूषित पानी सीधा शिप्रा नदी में मिल गया और श्रद्धालुओं को मन मारकर इसी पानी में स्नान करने के लिए मजबूर होना पड़ा। यह देखकर उज्जयिनी नगरी के साधु-संतों का आक्रोश फूट पड़ा। वे पहले उन सभी स्थानों पर गए, जहां पर शिप्रा नदी में खान नदी और अनेक नालों का गंदा पानी मिल रहा था। इसके साथ ही वे उन सभी स्थानों पर भी गए, जहां उद्योगों का प्रदूषित पानी शिप्रा और खान नदी को प्रदूषित कर रहा था। फिर शिप्रा मैय्या की इस दुर्दशा को देखकर शिप्रा नदी के शुद्धिकरण के लिए उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर ही धरने पर बैठ गए। चूंकि मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार है और उनके राज्य में ही साधु-संत उनके ही खिलाफ धरने पर बैठे। यह कैसे हो सकता है? सो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के निर्देश पर तुरंत उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव, पूर्व मंत्री पारस जैन, सांसद अनिल फिरोजिया आदि साधु-संतों के पास पहुंचे और उन्हें शीघ्र कार्रवाई करने का बोलकर, समझाकर जैसे-तैसे उनका धरना-प्रदर्शन बंद करवा दिया।

इसके बाद मुख्यमंत्री ने शिप्रा नदी के शुद्धिकरण के स्थायी उपाय करने के लिए सुझाव देने चार कैबिनेट मंत्रियों की उच्च स्तरीय समिति गठित की। इस समिति में उज्जैन जिले के प्रभारी मंत्री एवं वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा, नगरीय प्रशासन विकास मंत्री भूपेन्द्र सिंह, जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट और उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव को रखा गया। मुख्यमंत्री के ही निर्देश पर उच्च अधिकारियों के साथ समिति का उज्जैन दौरा तय हुआ, किन्तु इस समिति के दो मंत्रियों ने उज्जैन आना ही जरूरी नहीं समझा और वे आए ही नहीं। उन्होंने इस बेकार के काम में कोई रुचि ही नहीं ली। इन दो गैरजिम्मेदार मंत्रियों में एक उज्जैन जिले के ही प्रभारी मंत्री जगदीश देवड़ा और दूसरे भूपेन्द्र सिंह थे। उज्जैन के ही डॉ. मोहन यादव और पास के जिले इंदौर के तुलसी सिलावट उज्जैन आये और उन्होंने विभिन्न स्थानों को भी देखा, जहां शिप्रा प्रदूषित हो रही थी। वे साधु-संतों से भी मिले और शिप्रा नदी के पानी में खान नदी का दूषित पानी आगे से नहीं मिले, इसके लिए सभी स्थायी समाधान करने का आश्वासन दिया। इसी दिन प्रेस से चर्चा करते हुए सिंहस्थ 2016 के लिए 90 करोड़ रुपए की खान डायवर्र्सन योजना को बेकार और असफल मानते हुए उसकी जांच करने की भी घोषणा जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट ने कर दी। हालांकि, करीब एक माह हो गया अभी तक जांच तो दूर की बात, अभी तक जांच के आदेश ही जारी नहीं हुए हैं।

आइए, हम आपको तीन साल पीछे ले चलते हैं। वर्ष 2019 की शनिश्चरी अमावस्या का पर्व। इस दिन भी परंपरा के अनुसार हजारों श्रद्धालु स्नान के लिए शिप्रा नदी के त्रिवेणी संगम पहुंचे किन्तु वहां स्नान के लिए पानी ही नहीं था। तब जाकर जिला प्रशासन ने तुरत-फुरत पानी की पाइप लाइन डालकर लोगों को फौव्वारा स्नान करवाया। सरकार की खूब फजीहत हुई। उस वक्त कमलनाथ जी ताजे-ताजे मुख्यमंत्री बने थे। उन्होंने तत्काल कलेक्टर और संभाग आयुक्त को हटा दिया। इसके साथ ही इस घटना की जांच करने और आगे से ऐसा नहीं हो, इसके लिए अपने मुख्य सचिव एसआर मोहंती को उज्जैन भेजा। उन्होंने उज्जैन आकर सब देखा और खान नदी पर आगे से कच्चे बांध बनाने पर रोक लगाकर तुरंत ही पक्का बांध बनाने के निर्देश दिए। निर्देश दिए तीन साल हो गए, अभी तक पक्का बांध तो नहीं बना, किन्तु हां साल 2021 में भी रोक के बावजूद कच्चा बांध जरूर बनाया गया और वह भी पानी में बह गया। वर्ष 2022 में 15 जनवरी को मकर संक्रांति पर्व पर लोगों के स्नान के लिए फिर कच्चा बांध बनाया गया और वह भी 18 जनवरी को बह गया। एक बार कच्चा बांध बनाने में करीब 10 लाख रुपए लगते हैं और 10 लाख रुपए हर बार पानी में बह जाते हैं। अनेक सालों से यही हो रहा है। है ना भ्रष्टाचार और बेहतरीन इंजीनियरिंग का कमाल!

अब वापस आते हैं मूल बात पर अनेक सालों से यह सब देखकर साधु-संतों का धैर्य जवाब दे गया। उनका सरकार और प्रशासन पर से विश्वास ही उठ गया और वे फिर से बैठ गए स्थायी समाधान होने तक धरने पर। जैसा कि होता है जिला प्रशासन के अधिकारी साधु-संतों को समझाने पहुंचे और उन्हें निराश होना पड़ा। अब देखते हैं, आगे क्या होता है? वैसे होगा वही जो अभी तक होता आया है। आगे 1 फरवरी को मौनी अमावस्या और 1 मार्च को महाशिवरात्रि के पर्व आ ही रहे हैं!

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