Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से -क्या है सनातन के पीछे की राजनीति?

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

– सुभाष मिश्र

तमिलनाडु में पेरियार के ज़माने से ही द्रविड़ राजनीति में हिंदी, ब्राह्मण और सनातन धर्म अहम मुद्दे रहे है। सनातन धर्म मानता है कि प्रकृति पुरुष अलग नहीं है। सनातन की परम्परा अपरिवर्तनीय है और यह मनुष्यता के जन्म के साथ चली आ रही है यह एक शाश्वत परंपरा है। सनातन धर्म अपरिवर्तनीय है यह बात एक तरह से गैर वैज्ञानिक है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के बेटे और राज्य के मंत्री उदयनिधि का सनातन उन्मूलन सम्मेलन में दिया गए भाषण के बाद हिंदी पट्टी में इसे लेकर बीजेपी और धार्मिक संगठनों, धर्मगुरु की ओर से तीखी बयानबाजी शुरू हो गई है। दरअसल हिंदुत्व के कार्ड को किस तरह चुनाव तक जीवित रखा जाए यह अहम मुद्दा है। दरअसल वह जनता जो उत्तर-दक्षिण की राजनीति, वहाँ के सामाजिक संदर्भो, परम्पराओं से परिचित नहीं है उन्हें सनातन धर्म के नाम पर भावनात्मक रूप से जोडऩे की यह एक कोशिश है जिसमे बहुत हद तक बीजेपी सफल होती दिखती है।
इस समय जब विपक्ष लामबंद होकर इंडिया नामक फ्रंट के जरिये मोदी सरकार का विरोध कर रहा है, तब विपक्ष से जुड़ी तमिलनाडु की पार्टी द्रमुक के नेता द्वारा दिये गये बयान पर राजनीति होना स्वाभाविक है। बीजेपी इंडिया शब्द को ईस्ट इंडिया से जोड़कर प्रचारित प्रसारित करती है। उन्हें इस गठबंधन के जरिये भारत की विविधिता की याद नहीं आती। सनातन धर्म की आलोचना हिंदी क्षेत्र में एक पॉलिटिकल एजेंडा है।
सनातन धर्म को लेकर शुरू हुई बहस नई नहीं है। द्रविड़ आंदोलन की विचारधारा का जन्म ही सनातन धर्म और उस पर आधारित जीवन शैली के विरोध के चलते हुआ है। द्रविड़ आंदोलन और पेरियार के सिद्धांतों पर चलने वाली द्रविड़ राजनीतिक पार्टियों के उदयनिधि स्टालिन जैसे नेता यदि सनातन धर्म का विरोध करते हैं, तो वे कोई नई या चौंकाने वाली बात नहीं कह रहे हैं। पेरियार रामास्वामी नायकर, जस्टिस पार्टी, द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम, अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम आदि की विचारधारा पर ग़ौर करें तो ये सभी सनातन धर्म की वर्णाश्रम प्रणाली और उससे उत्प्रेरित ब्राह्मण वर्चस्व, सामाजिक भेदभाव और असमानता का सतत विरोध करते रहे हैं। बीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक में जस्टिस पार्टी का गठन ग़ैर ब्राह्मणों के असंतोष की राजनीतिक अभिव्यक्ति के रूप में हुआ लेकिन पेरियार तो विवेकवादी थे। उनके चिंतन की धुरी ब्राह्मण विरोध नहीं, तर्कवाद थी। वे सनातन का विरोध तर्क के आधार पर करते थे। यह अजीब बात है कि सिद्धांत के रूप में सनातन की विचारधारा जहाँ संपूर्ण सृष्टि में एकत्व की बात करती थी। वहीं व्यवहार में सामाजिक भेदभाव और आचरण की शुद्धता के नाम पर शूद्रों के प्रति दुराव चलन में था और यह दुराग्रह घृणा का रूप ले चुका था। द्रविड़ विचारधारा ने इसका तीव्र विरोध करती रही है। उदयनिधि भी यही कर रहे हैं। उदयनिधि एम.के. स्टालिन के पुत्र हैं ,जो कि तमिलनाडु के दिग्गज नेताओं में से एक हैं। स्टालिन को करुणानिधि के उत्तराधिकारी के रूप में नामित किया गया। लेकिन भाजपा उनके बयान का राजनीतिक फ़ायदा लेने का प्रयत्न कर रही है। रविशंकर प्रसाद जैसे भाजपा के प्रवक्ता सनातन की अभेद दृष्टि को एकोअहम बहुस्यामि जैसे आप्तवचन के सहारे रेखांकित तो करते हैं लेकिन सनातन के व्यवहार में वर्ण-व्यवस्था, जात-पाँत, रूढिय़ाँ और अंधविश्वास आदि की चर्चा नहीं करते।
सनातन के पैरोकार कहते हैं कि इसने दुनिया को शांति और सहिष्णुता का पाठ पढ़ाया। यह सफेद झूठ है। जहाँ आदमी और आदमी के बीच जात-पाँत की असमानता रहेगी वहाँ शांति और सहिष्णुता आ ही नहीं सकती। सनातनी कहते हैं कि सनातन आदिकाल से है और अंत काल तक रहेगा। इसके प्रमाण में वे मिथक और पुराणों के श्लोक उचारने लगते हैं। सनातन का मतलब है स्थायी, अपरिवर्तनीय। वर्ण-व्यवस्था, जात-पाँत, रूढिय़ाँ और अंधविश्वास। सनातन समर्थक न तो पढ़ते-लिखते हैं, और न इसके समर्थन में ठोस तर्क दे सकते हैं। वे केवल धर्म के नाम पर भड़काना जानते हैं। उदयनिधि स्टालिन ने सनातन को मलेरिया और डेंगू की तरह घातक बताते हुए इसे खत्म करने की बात कही है। यह भी एक अतिवाद है। सनातन को खत्म नहीं करना है। उसमें हमारी सभ्यता और संस्कृति की अच्छी परंपराएँ भी हैं। हमारी पहचान भी उसी से है। पर उसमें मनुष्य के बीच भेद-भाव पैदा करने वाली वर्ण-व्यवस्था, रूढिय़ाँ और परंपराएँ भी हैं। उनका त्याग कर ही सनातन को अधुनातन बनाया जा सकता है। उंगली पर घाव हो जाने से पूरा हाथ ही नहीं काट दिया जाता। मानव सभ्यता के कुछ गुर सनातन के पास भी हैं जिन्हें रूढिय़ों और अंधविश्वासों ने ढँक रखा है। इस आवरण को हटाने से सनातन अधुनातन हो जाएगा। सती प्रथा, विधवा विवाह की मनाही, स्त्रियों और दलितों को शिक्षा की मनाही और जात-पाँत के आधार पर फर्क करना यह सब सनातन के अंतर्गत ही आते थे, जिन्हें हमारे समाज सुधारकों ने दूर करने का प्रयास किया और बहुत हद तक कामयाब भी रहे।
बहुत से लोग हिन्दू धर्म को सनातन धर्म से अलग मानते हैं। वे कहते हैं कि हिन्दू नाम तो विदेशियों ने दिया। पहले इसका नाम सनातन धर्म ही था। फिर कुछ कहते हैं कि नहीं, पहले इसका नाम आर्य धर्म था। कुछ कहते हैं कि नहीं, पहले इसका नाम वैदिक धर्म था। यह पंथ सनातन है। समस्त देवता और मनुष्य इसी मार्ग से पैदा हुए हैं तथा प्रगति की है। हे मनुष्यों आप अपने उत्पन्न होने की आधाररूपा अपनी माता को विनष्ट न करें। सनातन का अर्थ है जो शाश्वत हो, सदा के लिए सत्य हो। जिन बातों का शाश्वत महत्व हो वही सनातन कही गई है। जैसे सत्य सनातन है। ईश्वर ही सत्य है, आत्मा ही सत्य है, मोक्ष ही सत्य है और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला धर्म ही सनातन धर्म भी सत्य है। वह सत्य जो अनादि काल से चला आ रहा है और जिसका कभी भी अंत नहीं होगा वह ही सनातन या शाश्वत है। जिनका न प्रारंभ है और जिनका न अंत है उस सत्य को ही सनातन कहते हैं। यही सनातन धर्म का सत्य है।
वैदिक या हिंदू धर्म को इसलिए सनातन धर्म कहा जाता है, क्योंकि यही एकमात्र धर्म है जो ईश्वर, आत्मा और मोक्ष को तत्व और ध्यान से जानने का मार्ग बताता है। मोक्ष का कांसेप्ट इसी धर्म की देन है। एकनिष्ठता, ध्यान, मौन और तप सहित यम-नियम के अभ्यास और जागरण का मोक्ष मार्ग है, अन्य कोई मोक्ष का मार्ग नहीं है। मोक्ष से ही आत्मज्ञान और ईश्वर का ज्ञान होता है। यही सनातन धर्म का सत्य है। सनातन धर्म के मूल तत्व सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान, जप, तप, यम-नियम आदि हैं जिनका शाश्वत महत्व है।
उदयनिधि के भाषण के बाद पूरे देश में खास करके हिन्दी पार्टी के नेताओं द्वारा तीखी बयानबाजी शुरू हो गई है। बीजेपी नेता और पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म के खिलाफ़ न सिर्फ बेशर्मी भरी टिप्पणी की बल्कि उसे फिर से दोहराने का काम भी किया है। उन्होंने कहा, राहुल गांधी दो दिन से क्यों खामोश हैं? राहुल जी कहते हैं कि मैं हिंदू हूं और गोत्र की बात करते हैं। मंदिर-मंदिर घूमते हैं, जल चढ़ाते हैं। हम जो कहते थे कि ये पाखंड करते हैं वोट के लिए, वो साबित हो रहा है। नीतीश कुमार क्यों शांत हैं? तेजस्वी यादव क्यों शांत हैं? पिता जी को लेकर गए थे सिद्धिविनायक के दर्शन करवाने, ये सब दिखावा था क्या?
गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्षी गठबंधन में शामिल पार्टियों पर वोटबैंक और तुष्टीकरण की राजनीति के लिए सनातन धर्म का अपमान करने का आरोप लगाया। कांग्रेस के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा कि हम सर्वधर्म सम्भाव में विश्वास रखते हैं। कांग्रेस इसी विचारधारा में विश्वास रखती है, लेकिन आपको ध्यान रखना होगा कि हर राजनीतिक पार्टी के पास अपने विचार रखने की आज़ादी है। हम सभी की मान्यताओं का सम्मान करते हैं। डीएमके के प्रवक्ता सरवनन अन्नादुरई ने अपने नेता के बचाव में सफाई पेश की है। उन्होंने कहा सबसे बड़ी फर्जी खबरों की फैक्ट्री झूठ फैला रही है कि उदयनिधि स्टालिन ने नरसंहार की बात की है। उन्होंने अमित मालवीय की तरफ इशारा करते हुए कहा कि फेक न्यूज़ फैलाने वाले सबसे बड़े हैंडल ने ट्वीट कर कह दिया कि उदयनिधि नरसंहार की बात कर रहे हैं। उन्होंने सवाल किया कि जब प्रधानमंत्री कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते हैं तो क्या वो नरसंहार की बात करते हैं? तो फिर उदयनिधि किस तरह नरसंहार की बात कर रहे हैं? ये फेक न्यूज़ है और वो हेट स्पीच फैला रहे हैं। फेक न्यूज़ फैलाकर नफरत बढ़ाने के लिए उन्हें क़ानून के सामने जवाबदेह होना होगा। राज्यसभा सांसद और आरजेडी नेता मनोज झा ने कहा कि कभी-कभी हमें प्रतीकों और मुहावरों के भीतर जाकर चीज़ों को समझना चाहिए। उन्होंने कहा कि कबीर अगर आज पैदा हो गए होते और उन्होंने आज वो दोहा कह दिया होता- जो तू वामन वमनीं जाया, तो आने बाट हवे काहे न आया, जो तू तुरक तुरकनीं जाया तो भीतरि खतना क्यूं न कराया। तो क्या आप उन्हें फांसी पर लटका देते?
इस पूरे मामले में हिन्दी पट्टी में होने वाले चुनाव, लोकसभा चुनाव और विपक्षी एकजुटता के बरक्स देखने की ज़रूरत है। भाजपा ऐसा कोई मुद्दा, बयान, आचरण जो उसे हिन्दू हितों का सबसे बड़ा रहनुमा बनाये, छोडऩे वाली नहीं है। बात फिर कांग्रेस नेता राहुल गांधी का लालू प्रसाद यादव के घर उनसे मटन बनाना सिखना हो या फिर उदय निधि का सनातन को लेकर दिया गया बयान।

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