प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से -चुनाव पास आते ही रोजगार की बात

From the pen of editor-in-chief Subhash Mishra – talk of employment as soon as the elections are near

– सुभाष मिश्र

चुनाव पास आते ही अचानक से देश में रोजगार को लेकर चर्चा तेज हो गई है, वैसे तो हमारे देश में बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है, लेकिन चुनाव के पहले इसको लेकर वादों की झड़ी लगना आम बात है, हर चुनावी सभाओं में रोजगार पर चर्चा होती है. आज हम इस मुद्दे पर इसलिए बात कर रहे हैं, क्योंकि इन दिनों देश के प्रधानमंत्री से लेकर प्रदेश की सरकारें सभी नौकरी देने के दावे-वादे करते नजर आ रहे हैं…। मीडिया में विज्ञापन के ज़रिए रोज़गार देने की बात खूब प्रचारित , प्रसारित की जा रही है ।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 22 अक्टूबर को 10 लाख कर्मियों को नियुक्त करने के लिए रोजगार मेला भर्ती अभियान की शुरुआत की। इस दौरान पहली किश्त में 75,000 नए नियुक्त लोगों को नियुक्ति पत्र सौंपा गया। वैसे इस तरह के नियुक्ति पत्र सौंपने का पहला समारोह झारखंड सरकार ने इसी साल जुलाई माह में निजी क्षेत्र में 75 फीसदी आरक्षण की नीति को धरातल पर उतारने के लिए किया गया था.

रोजगार देने के मामले में हाल के दिनों में छत्तीसगढ़ सरकार ने बेहतर काम किया है. ग्रामीण अर्थव्यवस्था और परंपरागत व्यावस्था को लागू कर सरकार ने बड़े पैमाने में लोगों को नियमित काम पर लगाया है और इसके बदले लोगों को मुनाफा भी हो रहा है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार सितम्बर माह में छत्तीसगढ़ में बेरोजगारी दर 0.1 फीसदी दर्ज की गई है. जबकि सितंबर माह में देश में बेरोजगारी दर का यह आंकड़ा 6.43 फीसदी रहा है ।

क्यों बना हुआ है सरकारी नौकरी का आकर्षण-
इस दौर में जहा लगभग हर सेक्टर में खासतौर पर सरकारी विभागों में नौकरियां कम हो रही हैं, फिर भी हमारे देश में सरकारी नौकरियों को लेकर एक खास तरह का आकर्षण है. इसकी सबसे बड़ी वजह जॉब सिक्यूरिटी है. इसके अलावा सरकारी नौकरी में काम कम थकाऊ होता है, यानि कम प्रोडक्टिवीटी में सुविधाएं अधिक मिलती है, उच्च पदों पर कई तरह के अधिकार भी मिलते हैं, इसका भी एक अलग आकर्षण है… प्राइवेट सेक्टर में मोटी तनख्वाह या बिजनेस से होने वाली कमाई की तुलना में आज भी आईएएस और आईपीएस की नौकरी युवाओं को आकर्षित करती है । इन तमाम कारणों से सरकारी नौकरी के प्रति हमारे समाज में एक अलग ही तरह का झुकाव है.

लेकिन इस बीच एक बात औऱ रोचक है कि जो पार्टी या सरकार कुछ साल पहले तक पकोड़े तलने तक को युवाओं के लिए बेहतर रोजगार बता रही थी वो अचानक ऑफर लेटर क्यों बांटने लगी. अमित शाह ने तो राज्यसभा में बहस के दौरान कहा था कि बेरोजगार रहने से बेहतर है कि युवा पकौड़े बेचें..।

आंकड़ों के मुताबिक मई 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने से लेकर अब तक अलग-अलग सरकारी विभागों में कुल 7 लाख 22 हजार से ज्यादा आवेदकों को सरकारी नौकरी दी गई है. जबकि इन पदों के लिए 22 करोड़ लोगों ने आवेदन किया था. यानी मांग और पूर्ति में दूर दूर तक समानता नहीं है.

अचानक रोजगार की बात बड़े नेताओं द्वारा बड़े मंचों से करने का कहीं न कहीं अने वाले दिनों में हिमाचल, गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनाव फिर 2024 में होने वाला आम चुनाव भी है.
वैसे सरकारी महकमों में गृह मंत्रालय में 1.21 लाख पद रिक्त हैं, रेलवे में 2.91 लाख यूपीएससी और एसएससी में 8.36 लाख (नान गजटेड ग्रुप बी) के पद रिक्त हैं.

राजस्थान की सरकार ने एक लाख दस हज़ार संविदा पर नियुक्त कर्मचारियों को नियमित करने का निर्णय लिया है । चूँकि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है तो छत्तीसगढ़ पर भी ये दबाव बनेगा की वो अपने संविदा कर्मचारियों को भी नियमित करे । छत्तीसगढ़ में सरकारी नौकरी में आरक्षण का प्रतिशत 50 से बढ़ाकर 58 किया गया जिसे हाईकोर्ट के स्टे के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर कोई निर्णय नहीं लिया । यथा स्थिति के कारण छत्तीसगढ़ की सरकार दुविधा में है । छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य राज्य सरकार कभी नहीं चाहेगी की आदिवासी का आरक्षण ज्यादा रहे ।

हालांकि पैमाना सरकारी नौकरी के बजाए उन अवसरों का निर्माण होना चाहिए जिनसे रोजगार पैदा हो या लोग स्वयं रोजगार देने की स्थिति में पहुंचे, उद्यमी बने क्योंकि इतनी बड़ी आबादी अगर सिर्फ सरकारी नौकरी की मुंह ताकेगी तो हम कभी भी बेरोज़गारी की समस्या से उबर नहीं पाएंगे.

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