Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – हार को जीत में बदलने की रणनीति

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

From the pen of Editor-in-Chief Subhash Mishra – Strategy to convert defeat into victory

 

– सुभाष मिश्र

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी सामूहिक नेतृत्व और मोदी लहर के भरोसे रहेगी। दरअसल, मध्यप्रदेश में हाल ही में जारी प्रत्याशियों की लिस्ट में जिस तरह पार्टी ने सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारा है उससे अंदाजा लग रहा है कि मध्यप्रदेश जैसे राज्य में भी अब पार्टी सामूहिक नेतृत्व का दांव चला सकती है। छत्तीसगढ़ में फिलहाल भाजपा इसी पैटर्न में आगे बढ़ रही है। यहां जारी पार्टी प्रत्याशियों की पहली सूची में एक वर्तमान सांसद विजय बघेल को टिकट दिया है, साथ ही पूर्व सांसद रामविचार नेताम को भी मैदान में उतारा है। जो भाजपा कुछ साल पहले तक एकल चेहरे की बात कहती थी और कांग्रेस पर इस बात को लेकर तंज कसा करती थी कि इनके पास कोई नाम नहीं है इसलिए ये चुनाव के पहले कोई चेहरा या नाम मुख्यमंत्री पद के लिए घोषित नहीं कर पा रही है, वो भाजपा अचानक ये यू-टर्न क्यों लेती है और सिंगल चेहरे के दांव को छोड़कर कॉमन फेस पर चुनाव लडऩे जा रही है। हालांकि उनके पास अभी भी मतदाताओं को रिझाने के लिए पीएम मोदी का चेहरा सबसे बड़ी ताकत है।

सामूहिक नेतृत्व की रणनीति बनाने के पीछे पार्टी क्षेत्रीय नेताओं की महत्वाकांक्षाओं और आपसी द्वंद को नियंत्रण में रखने और पार्टी व्यक्ति से ऊपर के सिद्धांत को मजबूत करने का प्रयास है। बीजेपी को उम्मीद है कि बड़े नाम वाले कैंडिडेट उन सीटों पर जीत हासिल करने में सफल रहेंगे जहां वह कमजोर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील से पार्टी चुनाव का एक और दौर जीतेगी और मुख्यमंत्री पद का खुला रहना क्षेत्रीय नेताओं को कड़ी मेहनत करने के लिए प्रोत्साहित करने का काम करेगा। बताया जा रहा है कि पार्टी की योजना भाई-भतीजावाद को रोकने और वंशवाद की राजनीति से बचने की भी है।

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी ने केंडिडेट्स की दूसरी लिस्ट में 39 उम्मीदवारों के नाम हैं। इस लिस्ट में तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत 7 सांसदों को टिकट दिया गया है। केंद्रीय मंत्रियों में मुरैना की दिमनी सीट से नरेंद्र सिंह तोमर, नरसिंहपुर से प्रह्लाद पटेल और निवास से फग्गन सिंह कुलस्ते को प्रत्याशी बनाया गया है। वहीं बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को इंदौर विधानसभा क्रमांक 1 से टिकट दिया गया है। भाजपा ने 17 अगस्त को जारी पहली लिस्ट में भी 39 नामों का ऐलान किया था। बीजेपी जिन चार सांसद को विधानसभा चुनाव लड़ा रही है, उनमें जबलपुर पश्चिम से राकेश सिंह, सतना से गणेश सिंह, सीधी से रीति पाठक और गाडरवारा से उदय प्रताप सिंह के नाम शामिल हैं। बीजेपी ने दूसरी लिस्ट में जिन 39 सीटों पर नामों का ऐलान किया है उनमें से 36 सीटें 2018 के चुनाव में हारी हुई हैं। 3 सीटें बीजेपी के कब्जे में हैं। इनमें मैहर से नारायण त्रिपाठी, सीधी से केदारनाथ शुक्ला और नरसिंहपुर से जालम सिंह पटेल का टिकट काटा गया है।

इसी तरह राजस्थान में प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया की लगातार कोशिशों और मांग के बावजूद पार्टी ने अभी तक चुनावों में उनकी भूमिका तय नहीं की है। वसुंधरा राजे सिंधिया के विरोधी गुट के कई दिग्गज यहां तक कि केंद्रीय मंत्री भी सार्वजनिक रूप से यह कह चुके हैं कि बीजेपी के पास मुख्यमंत्री पद के योग्य कई व्यक्ति हैं और मुख्यमंत्री पद का फैसला चुनाव बाद बीजेपी का संसदीय बोर्ड तय करेगा। बात छत्तीसगढ़ की करें तो यहां भी भाजपा के कुछ सांसदों को दावेदार के तौर पर देखा जा रहा है। इनमें पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव, संतोष पांडेय रेणुका सिंह और सुनील सोनी का नाम प्रमुख हैं। पार्टी के पास पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का चेहरा था लेकिन अभी तक आम कार्यकर्ताओं को सामूहिक नेतृत्व का ही मैसेज दिया जा रहा है। वहीं बात कांग्रेस की करें तो यहां वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के काम और चेहरा पर ही चुनाव लड़ेगी लेकिन चुनाव के पहले जिस तरह से टीएस सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बनाया गया है उससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि कहीं न कहीं पार्टी प्रदेश के नेतृत्व के बीच संतुलन स्थापित करने की रणनीति पर चल रही है। पार्टी के आदिवासी चेहरे के रूप में भरे बस्तर सांसद और पीसीसी अध्यक्ष दीपक बैज ने भी चुनाव लडऩे की इच्छा जाहिर कर दी है। इस तरह छत्तीसगढ़ में चुनाव और दिलचस्प होने की उम्मीद है। हो सकता है ये चुनाव भाजपा की ओर से क्षेत्रीय छत्रपों को उभरने का मौका देने वाला साबित हो। खैर, किसका सूरज उदय होगा ये तो वक्तही बताएगा।

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