Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – सियासत में क्या उम्र की सीमा हो ?

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से - सियासत में क्या उम्र की सीमा हो ?

From the pen of Editor-in-Chief Subhash Mishra – Should there be an age limit in politics?
– सुभाष मिश्र

महाराष्ट्र में चाचा-भतीजे के बीच टकराव ने एनसीपी को तोड़कर रख दिया है। सत्ता विवाद के बीच बाग़ी भतीजे 63 वर्षीय अजित पवार ने 83 साल के क़द्दावर नेता अपने चाचा शरद पवार से राजनीति में आगे न बढऩे की सलाह देते हुए कहा है कि आप 83 साल के हो गये हैं। कभी रूकेंगे या नहीं? मैं भी सीएम बनना चाहता हूँ, तभी राज्य के भले के बारे में सोच पाऊँगा। आईएएस अधिकारी 60 साल में रिटायर हो जाते हैं। भाजपा नेता 75 साल में रिटायर हो जाते हैं। आप लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी का उदाहरण देखिए। इससे नई जनरेशन को आगे आने का मौक़ा मिलता है। एनसीपी का भाजपा के साथ गठबंधन बनाने वाले अजित पवार की सलाह के अनुसार तो अब 17 दिसम्बर 1950 को जन्मे 73 वर्षीय देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दो साल बाद अडवाणी और जोशी जी की तरह मार्गदर्शक मंडल में शमिल हो जाना चाहिए? क्या वाक़ई में मोदी जी दो साल बाद अजित पवार की सलाह मानकर सक्रिय राजनीति से रिटायर हो जायेंगे? अजित पवार की सलाह से इतर शरद पवार गुट के नेता और उनकी सांसद बेटी सुप्रिया सुले ने कहा है कि 83 साल का शेर अभी जि़ंदा हैं। जब 80 वर्षीय अमिताभ बच्चन पूरी सक्रियता से फि़ल्मों में जनता की पूरी स्वीकार्यता के साथ काम कर सकते हैं तो फिर शरद पवार क्यों नहीं? मेरे पिता को घर बैठने की सलाह देने वालों को मैं बताना चाहूँगी की उम्र सिफऱ् आंकड़ा है। वैसे शरद पवार ने भी भतीजे अजित को जवाब देते हुए कहा कि उम्र 82 हो या 92 फर्क नहीं पड़ता, ये बात सही है की अब उम्र एक नम्बर गेम होकर रह गई है। जो आदमी शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ है वह किसी भी उम्र तक किसी भी फिल्ड में सक्रिय रह सकता है। अभी हाल ही में मीडिया में खबर आई है कि 83 वर्षीय हालीवुड अभिनेता अल पचिनो ने अपने से बहुत छोटी 29 वर्षीय अपनी प्रेमिका नूर अल्लफल्लाह से एक बेटे को जन्म दिया है। यदि हम भारतीय राजनीति और इतिहास की बात करें तो हमारे यहाँ अलग-अलग पार्टियों में बहुत से उम्रदराज नेता हैं। येदियुरप्पा, ममता बैनर्जी, नवीन पटनायक जैसे नेताओं की रिटायरमेंट उम्र तय होनी चाहिए?
सुप्रिया सुले और उनके भाई अजित पवार दोनों मायानगरी मुम्बई में रहते हैं। वे अच्छी तरह से जानते हैं की बॉलीवुड कहे जाने वाले हिन्दी सिनेमा के सुपर स्टार कहे जाने वाले अधिकांश हीरो चाहे वे शाहरुख़ खान, सलमान खान, आमिर खान, अक्षय कुमार, अजय देवगन हों सब 55 पार हैं पर सिने सत्ता स्क्रीन पर अपनी से बहुत छोटी हीरोइन के साथ रोमांस करते दिखते हैं।
भाजपा ने अघोषित रूप से सक्रिय राजनीति की एक उम्र या समय सीमा तय कर दी है। पिछले लोकसभा में चुनाव में लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी का टिकट काट दिया है। इसके साथ ही पार्टी ने हिमाचल प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार का टिकट भी काट दिया। मई, 2014 में जब नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा लोकसभा चुनाव जीत गई तो सरकार के गठन से पहले यह बिल्कुल साफ हो गया था कि 75 से अधिक उम्र के किसी भी नेता को सरकार में शामिल नहीं किया जाएगा। पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा भी इसी नियम के शिकार हुए थे। उन्हें न तो चुनाव में टिकट और न ही सरकार में जगह नहीं दी गई थी। गुजरात में आनंदीबेन पटेल को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा भी इसी नियम की वजह से देना पड़ा था। साथ ही केंद्र की मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे कलराज मिश्र को इसी वजह से मंत्री पद छोडऩा पड़ा था। वहीं नजमा हेपतुल्ला को भी बढ़ती उम्र के कारण केंद्रीय मंत्रालय से ड्रॉप कर दिया गया था। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा इसके अपवाद हैं। इन्हें पार्टी ने कर्नाटक में अभी सक्रिय राजनीति में बनाये रखा है।
अभी भी कांग्रेस में अध्यक्ष के रूप मल्लिकार्जुन खडग़े सक्रिय है, वहीं कांग्रेस छोड़कर अलग हुए गुलाम नबी आज़ाद भी। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 17वीं लोकसभा में सांसदों की औसत आयु घटकर 54 वर्ष हो गई है, जिसमें 12 प्रतिशत सांसद 40 से नीचे हैं। चुनाव विश्लेषक, अकादमिक और स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष, योगेन्द्र यादव कहते हैं कि केवल इसके लिए युवा नेतृत्व की मांग करना मूर्खतापूर्ण है। यह मान लेना कि सिर्फ इसलिए कि किसी के बाल घने हैं, वह नए विचारों, नए दृष्टिकोण और ज्ञान का स्त्रोत होगा, निराधार है। हाँ, हमें राजनीति में नए खून की ज़रूरत है, और युवा होना एक गुण है बशर्ते कि वह युवा किसी दृष्टिकोण में दिखाई दे।
कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन खेड़ा का मानना है कि राजनीति में सभी आयु समूहों के लिए जगह है। एक और पहचान-आधारित ध्रुवीकरण पैदा करना व्यर्थ है। वहीं इस मामले में शशि थरूर का विचार थोड़ा अलग है। उनके अनुसार सैद्धांतिक रूप से हां, सभी राजनेताओं को पता होना चाहिए कि कब शालीनता से अलग हटने और नए लोगों के लिए रास्ता बनाने का समय आ गया है। सवाल ये है कि क्या 75 साल की आयु पूरे होते ही अजित पवार की नजऱ में सबसे योग्य प्रधानमंत्री अपने दायित्वों से मुक्त होकर योगी आदित्य नाथ, अमित शाह को अपनी विरासत सौंप देंगे या फिर पर उपदेश कुशल बहुतेरे…जैसा कथन सच साबित होगा।

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