Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – शर्मनाक: इस चीरहरण का जिम्मेदार कौन ?

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

– सुभाष मिश्र

हम लाख डंका बजा लें कि हम दुनिया की नई आर्थिक और सामरिक शक्ति बन गए हैं लेकिन मणिपुर में जो घटा है उसकी निंदा करने के लिए हमारे पास शब्द कम पड़ रहे हैं। इस घटना के बाद भी लंबे समय तक चुप्पी बताती है कि जिम्मेदार कितने बेशर्म हो चुके हैं ऐसे में बात को आगे बढ़ाने से पहले – पुष्यमित्र उपाध्याय की कविता की कुछ पंक्तियां हैं जो इस वक्त के हालात को बयां करते हैं।

कब तक आस लगाओगी तुम, बिक़े हुए अखबारों से
कैसी रक्षा मांग रही हो दुशासन दरबारों से
स्वयं जो लज्जाहीन पड़े हैं
वे क्या लाज बचाएंगे
सुनो द्रौपदी ! शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आएंगे…
कल तक केवल अंधा राजा, अब गूंगा-बहरा भी है
होंठ सिल दिए हैं जनता के, कानों पर पहरा भी है
तुम ही कहो ये अश्रु तुम्हारे,
किसको क्या समझाएंगे?
सुनो द्रौपदी! शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आएंगे।।

मणिपुर में सरेआम युवतियों के साथ हुए इस बर्ताव का किसी भी समाज में कोई स्थान नहीं है, लेकिन ज्यादा शर्मिंदगी की बात तो इस तरह के अपराध के बाद भी चुप्पी साधे रखना है। बताया जा रहा है कि मई माह में एक समाज की युवतियों के साथ इस तरह की दरिंदगी हुई, सामूहिक बलात्कार हुए उसके बाद जब जुलाई माह में सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों पर जब इसके वीडियो वायरल हुए तब देशभर में आक्रोश फैल गया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, वायरल वीडियो में जिन दो महिलाओं को नग्न करके घुमाया जा रहा है, वो कुकी समुदाय की हैं। यह वीडियो चार मई का बताया जा रहा है, जब हिंसा शुरुआती चरण में था। महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने का आरोप मैतई समुदाय के लोगों पर लगा है। इस पर बयान देते हुए पीएम मोदी ने कड़ी कार्रवाई की बात कही, गृह मंत्री अमित शाह ने मणिपुर के सीएम से बात की, संसद के मानसून सत्र में भी इस पर जोरदार हंगामा हुआ। प्रधानमंत्री ने अपने बयान में कहा कि मैं राज्यों के मुख्यमंत्रियों से आग्रह करता हूं कि वे अपने राज्य में कानून-व्यवस्था को और मजबूत करें। खासकर हमारी माताओं-बहनों की रक्षा के लिए कठोर से कठोर कदम उठाएं। चाहे वह राजस्थान हो, छत्तीसगढ़ हो, मणिपुर हो या देश का कोई भी हिस्सा हो, कानून व्यवस्था बनाए रखना और महिलाओं का सम्मान करना किसी भी राजनीतिक बहस से ऊपर रखा जाना चाहिए। मैं देशवासियों को विश्वास दिलाता हूं कि किसी भी गुनाहगार को बख्शा नहीं जाएगा। कानून अपनी पूरी शक्ति से एक के बाद एक कदम उठाएगा। प्रधानमंत्री द्वारा अपने बयान में छत्तीसगढ़ का नाम लिए जाने पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि मणिपुर के हालात के साथ छत्तीसगढ़ का नाम जोडऩा गलत है। मुख्यमंत्री बघेल ने कहा कि पिछले 3 महीने से मणिपुर जल रहा है, लेकिन पीएम मोदी ने एक वक्तव्य भी नहीं दिया। आज मणिपुर के साथ राजस्थान और छत्तीसगढ़ को भी जोड़ दिया। मणिपुर से छत्तीसगढ़ की तुलना प्रदेश का अपमान है।
मणिपुर में पिछले कुछ महीनों से जल रहा है उस पर लगातार चुप्पी बताती है कि सरकार की प्राथमिकता में उत्तर-पूर्व के इलाके वहां के लोग कितने हैं। अभी हाल में प्रधानमंत्री मोदी ने अगले चुनाव के मद्देनजर सहयोगी दलों की एक बैठक दिल्ली में बुलाई थी। इसमें बड़ी संख्या में नॉर्थ ईस्ट के दल शामिल हुए थे। पीएम मोदी की अगुवाई में भाजपा 2024 में सत्ता में वापसी के लिए इन सेवन सिस्टर्स राज्यों पर नजर जमाए हुए, लेकिन वहां के हालात वहां की समस्या से उस तरह का जुड़ाव फिलहाल नजर नहीं आया है।
मणिपुर में हालात बिगडऩे के जो प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं उनमें मैतेई ट्राइब यूनियन पिछले कई सालों से मैतेई समुदाय को आदिवासी दर्जा देने की मांग कर रही है। मामला मणिपुर हाईकोर्ट पहुंचा। इस पर सुनवाई करते हुए मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से 19 अप्रैल को 10 साल पुरानी केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय की सिफारिश प्रस्तुत करने के लिए कहा था। इस सिफारिश में मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के लिए कहा गया है। कोर्ट ने मैतेई समुदाय को आदिवासी दर्जा देने का आदेश दे दिया। अब हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। इसके अलावा सरकार की अवैध अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई ने आरक्षण विवाद के बीच आग में घी डालने का काम किया। मणिपुर सरकार का कहना है कि आदिवासी समुदाय के लोग संरक्षित जंगलों और वन अभयारण्य में गैरकानूनी कब्जा करके अफीम की खेती कर रहे हैं। ये कब्जे हटाने के लिए सरकार मणिपुर फॉरेस्ट रूल 2021 के तहत फॉरेस्ट लैंड पर किसी तरह के अतिक्रमण को हटाने के लिए एक अभियान चला रही है।
वहीं, आदिवासियों का कहना है कि ये उनकी पैतृक जमीन है। उन्होंने अतिक्रमण नहीं किया, बल्कि सालों से वहां रहते आ रहे हैं। सरकार के इस अभियान को आदिवासियों ने अपनी पैतृक जमीन से हटाने की तरह पेश किया, जिससे आक्रोश फैला। इधर हिंसा के बीच कुकी विद्रोही संगठनों ने भी 2008 में हुए केंद्र सरकार के साथ समझौते को तोड़ दिया। दरअसल, कुकी जनजाति के कई संगठन 2005 तक सैन्य विद्रोह में शामिल रहे हैं। मनमोहन सिंह सरकार के समय, 2008 में तकरीबन सभी कुकी विद्रोही संगठनों से केंद्र सरकार ने उनके खिलाफ सैन्य कार्रवाई रोकने के लिए सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन यानी एसओएस एग्रीमेंट किया था जो कि इस हिंसा की आग में राख हो गई।
युवतियों को नग्न कर घूमाने के मामले में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ कहते हैं कि हम सरकार को कार्रवाई करने के लिए थोड़ा समय देंगे, नहीं तो हम खुद इस मामले में हस्तक्षेप करेंगे। हमारा विचार है कि अदालत को सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से अवगत कराया जाना चाहिए ताकि अपराधियों पर हिंसा के लिए मामला दर्ज किया जा सके। बताया जा रहा कि इस कांड के प्रमुख आरोप को गिरफ्तार कर लिया गया है। लेकिन वहां पूरी तरह शांति स्थापित करना अब केन्द्र सरकार की जिम्मेदारी है। साथ ही युवतियों का अपमान करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करनी चाहिए जिससे समाज में एक संदेश जा सके। हम जानते हैं कि द्रौपदी के चीर हरण के जिम्मेदार दु:शाषन के साथ ही सभा में मौजूद नामी गिरामी दिग्गज भी थे, जिन्होंने इस पाप के सामने चुप्पी साध रखी थी। मणिपुर मामले में ऐसा सरकार ना करें।

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