Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – सेक्स, सहमति और समाज

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

– सुभाष मिश्र

सेक्स संबंधों को लेकर समाज लगातार बदलाव आ रहा है। सहमति से बने संबंध की मान्यता को लेकर अब अदालतें भी अपनी खास टिप्पणी कर रही हैं ऐसे में नियमों और सामाजिक तानेबाने पर फिर से विचार का समय आ गया है।
बॉम्बे हाईकोर्ट की जस्टिस भारती डांगरे की एकल पीठ ने संसद को एक महत्वपूर्ण सलाह दी है, और एक बार फिर संविधान के संघीय ढांचा के दो प्रमुख स्तंभ विधायिका और न्यायपालिका जनता से जुड़े मुद्दों को लेकर सामने आये हैं। दरअसल यह पूरा मामला यौन संबंधों की सहमति की उम्र को लेकर उठाया गया है और मुंबई हाई कोर्ट ने इसकी उम्र सीमा को कम करने की सलाह संसद को दी है। गौरतलब है साल 2021 में लड़कियों की शादी या विवाह करने की उम्र सीमा को 18 से बढ़ाकर 21 किया गया है। एक विशेष अदालत के फरवरी 2019 के आदेश को 25 वर्षीय युवक ने चुनौती दी थी दरअसल विशेष अदालत ने उसे 17 वर्षीय लड़की से दुष्कर्म करने के लिए दोषी ठहराया था, जिसकी बात युवक ने अपील दायर करके दावा किया कि वह और लड़की सहमति से इस रिश्ते में थे। वह इस मामले में जस्टिस भारतीय डांगरे ने विशेष अदालत के दोष सिद्धि के आदेश को रद्द किया और आरोपी को बरी कर दिया। साथ ही रेप के आरोपी को जेल से तत्काल रिहा करने के आदेश भी दिए हैं। मुंबई हाई कोर्ट के इस आदेश में यौन स्वायत्तता में वांछित यौन गतिविधि में शामिल होने का अधिकार और वांछित यौन आक्रामकता से सुरक्षित रहने का अधिकार दोनों को शामिल किया है। दरअसल इस मामले में हाईकोर्ट ने संसद को सलाह देते हुए यह दलील दी है कि कई देशों में अलग-अलग कानूनों के जरिए सहमति से सेक्स करने की उम्र बढ़ाई गई है जिससे भारत को भी सीख लेना चाहिए। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि अधिकांश देशों ने सहमति से संबंध बनाने की उम्र को 14 से 16 वर्ष के बीच रखा है। इसी तरह मेघालय हाई कोर्ट ने साल 2021 से जुड़े एक मामले को रद्द कर दिया और तर्क दिया कि 16 साल की लड़की शारीरिक संबंध बनाने को लेकर खुद फैसला लेने में सक्षम है। याचिकाकर्ता के मुताबिक, 16 साल की लड़की उसकी गर्लफ्रेंड थी और वो दोनों एक-दूसरे से प्रेम करते थे। याचिकाकर्ता ने ये भी कहा कि इस मामले को यौन हिंसा के तौर पर न देखा जाए क्योंकि कोर्ट में लड़की ने अपने बयान में बताया कि वो लड़के की प्रेमिका है। याचिकाकर्ता के मुताबिक लड़की ने ये भी पुष्टि की कि शारीरिक संबंध दोनों की मर्जी से बने हैं और इसमें कोई भी जबरदस्ती नहीं की गई है। इस पूरे मामले के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया और इस केस को रद्द कर दिया। इतना ही नहीं कोर्ट ने ये भी कहा कि 16 साल की लड़की अपने सेक्सुअल रिलेशनशिप से जुड़े फैसले लेने में सक्षम है। इससे पहले पॉक्सो एक्ट पर दिल्ली हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी की थी। अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि पॉक्सो एक्ट का मकसद बच्चों को यौन शोषण से बचाना है, न कि युवा वयस्कों के बीच सहमति से बने रोमांटिक संबंधों को अपराध बनाना। अदालत ने ये टिप्पणी 17 साल के एक लड़के को जमानत देते हुए की। लड़के पर 17 साल की एक लड़की के साथ शादी करने और संबंध बनाने का आरोप था और उसे पॉक्सो एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया था। बॉम्बे हाईकोर्ट की सलाह पर संसद क्या कदम उठाती है ये देखने वाली बात होगी। लेकिन जिस देश में मंदिरों में मैथून मूर्तियों को जगह दी गई है, जहां कामसूत्र की रचना हुई है वहां सेक्स को एक टैबू बना दिया गया है। इस पर खुलकर बात करना बेशर्मी मान ली जाती है जबकि कई एक्सपर्ट लगातार इसकी शिक्षा इससे जुड़ी भ्रांतियां दूर करने की वकालत करते हैं। एक तरफ सेक्स को लेकर कथित पर्देदारी की बात समाज करता है दूसरी तरफ इंटरनेट से लेकर वेब सीरीज तक सेक्स बिक रहा है। इससे किशोर मन अलग ही तरह की फैंटेसी और थ्रिल की दुनिया में प्रवेश कर रहा हैं। कहते हैं जिसे जितना दबाने की कोशिश की जाती है उसे पाने की लालसा और बढऩे लगता है। हमारे समाज में सेक्स को लेकर बिलकुल यही स्थिति है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक सेक्स उम्र से ज्यादा मनोवैज्ञानिक परिपक्वता का मामला है। हाल ही में एक रीलीज हुई वेबसीरीज द लस्ट स्टोरी के पार्ट टू सेक्स संबंध को लेकर बेहद बेबाकी से बात करती है। देश के कई जाने माने डायरेक्टर सेक्स और इससे जुड़ी फैंटसी को लेकर इस फिल्म में आते हैं और दर्शकों के मन के घोड़े दौड़ाते हैं। इस फिल्म के एक हिस्से में एक उम्रदराज महिला सेक्स को लेकर खुलकर अपनी बात कहती है और आज की पीढ़ी के कपल को बताती है कि सेक्स शरीर की आम जरूरत है उस पर आप दोनों खुलकर बात कर लीजिए। एक तरफ हमारे सामने लस्ट स्टोरी तो दूसरी तरफ सेक्स को कथित रूप से रहस्य गोपनीय और श्रापित मानने वाले लोग हैं। सेक्स संबंधों के बारे में कब इंसान खुद फैसला ले सकता है, इस पर भले ही कानून कुछ और कहता हो लेकिन देश की कई अदालतों ने परिस्थिति की समीक्षा कर उम्र के बंधन को खत्म किया है और अलग ही तरह से परिभाषित किया है। वैसे भी हमारे यहां सोलह साल को रोमांटिसिजम से जोड़ गया है। गीतकारों और शायरों ने इसे प्रेम करने का उम्र एक दूसरे के आकर्षण में फिसलने का उम्र बताया है। इसीलिए हमारे यहां सोलह श्रृंगार सोलहवां साल का अलग ही महत्व बताया गया है। यौन संबंध इंसान की ज़रूरत और कमज़ोरी दोनों है। इसके बिना ना तो इंसानी नस्ल में इज़ाफ़ा हो सकता है और ना ही इंसान की जिस्मानी और जज़्बाती ज़रूरत पूरी हो सकती है। इसके बावजूद सेक्स हर दौर में हौव्वा रहा है। इसे निजी काम समझ कर पर्दे के पीछे छिपाकर रखा गया। ऐसा भी नहीं है कि जिस्मानी तौर पर एक दूसरे के कऱीब आने की ख्वाहिश सिर्फ मर्द और औरत के दरमियान ही होती है। ये समान लिंग वालों के दरमियान भी हो सकती है। लेकिन इस तरह की ख्वाहिशों का अक्सर विरोध होता रहा है। भारत में आज भी समलैंगिकता को पूरी तरह से मान्यता नहीं हासिल है। आज पूर्ण रूप से व्यस्क हो चुके युवाओं के सेक्स लाइफ को भी उनके माता-पित कंट्रोल करते हैं क्योंकि उनकी शादी नहीं हुई और सेक्स को नैतिकता से जोड़कर देखा जाता है। सेक्स मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताओं की सूची में अपना स्थान रखता है। यह सर्वविदित है अगर मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती हैं तो वह अपना पूर्ण विकास नहीं कर सकता।

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