Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – इलेक्ट्रॉनिक निगरानी से जूझता निजता का अधिकार

Editor-in-Chief

-सुभाष मिश्र

एक समय था जब आपके किसी भी कार्य को लेकर कहा जाता था भले ही इंसान देखे या न देखे, भगवान सब कुछ देख रहा है, लेकिन आज हम कहते हैं आप कैमरे की निगरानी में हैं। मतलब कैमरा आप पर सतत नजऱ जमाए हुए है। इतना ही नहीं आपके साथ हर वक्त रहने वाला मोबाइल भी आपकी गतिविधियों पर नजऱ जमाए हुए है। मोबाइल में ऐसे सॉफ्टवेयर हैं जो आपके सभी महत्वपूर्ण डाटा को इधर से उधर करने में सक्षम हैं। बात करते समय आपको इसकी भनक भी नहीं लगती कि आपका फ़ोन टेप हो रहा है। सोशल मीडिया में भी व्यक्ति कितना सुरक्षित है कहा नहीं जा सकता। यहां आपकी नकली पहचान बनकर आपके दोस्तों, रिश्तेदारों से कोई अंजान संपर्क करता है और आपको भनक तक नहीं लग पाती है। तीसरी आँख की नजऱ किसी न किसी रूप में हर वक्त हमारा पीछा करती है।
डिजिटल संचार क्रांति के इस दौर में सूचनाएं साझा करना एक आम बात है। लेकिन ये सूचनाएं कब हमारी निजी जानकारियों को सार्वजनिक कर दे, पता ही नहीं चलता। वैसे तो तो संचार प्रौद्योगिकियों का न केवल हर व्यक्ति के जीवन में, बल्कि सरकारी और प्रशासनिक कामकाज में क्या महत्व है, यह किसी से छिपा नहीं है। इस प्रकार, जिन तकनीकी प्लेटफार्मों पर दुनिया की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक जीवन आज निर्भर है, वे न केवल व्यापक इलेक्ट्रॉनिक निगरानी के लिए अतिसंवेदनशील हैं, बल्कि व्यक्तिकी निजता में भी दखल देने में सक्षम हैं।
आज व्यक्ति का जीवन मोबाइल और अन्य इलेक्ट्रॉनिक गैजेटों से जुड़ा हुआ है। ये गैजेट जीवन में इतने महत्वपूर्ण हो गए हैं कि इनके बिना जिंदगी में कामकाज असंभव सा बनता जा रहा है। धीरे-धीरे संचार प्रौद्योगिकी हमारे जीवन में इस कदर प्रवेश कर गई है, इसके कई नकारात्मक पक्षों का पता हमे तब चलता है, जब हम इसके शिकार हो जाते हैं। आज हम इस प्रौद्यागिकी के उस पक्ष पर बात करेंगें जिसने निजता का अधिकार को प्रभावित किया है।
दरअसल, छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले के पथरिया क्षेत्र का एक ऐसा मामला सामने आया जिसने निजता को लेकर कई सवाल खड़े किये हैं। हुआ यूँ कि कुछ महीने पहले मुंगेली के तात्कालिक शिक्षा अधिकारी ने जिले के सभी 500 स्कूलों में शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए उनके मोबाइल फोन को जीपीएस से कनेक्ट करने के निर्देश दिए। उन्होंने शिक्षकों के मोबाइल पर एक निजी कंपनी द्वारा संचालित एप डाउनलोड कराया। शिक्षकों को सुबह 10 बजे और शाम 4 बजे क्यूआर कोड स्कैन कर उपस्थिति दर्ज करनी पड़ती थी। इस दौरान उनके मोबाइल का जीपीएस भी चालू रहता था। इस एप को डाउनलोड करने के बाद शिक्षकों के मूवमेंट की सभी जानकारी ऐप में दर्ज होने लगी। यह तक तो सब ठीक था लेकिन परेशानी तब शुरू हुई जब शिक्षकों के फोन पर लगातार बिजनेस और टेलीमार्केटिंग से संबंधित कॉल आने लगे। इसकी वजह थी जिस कंपनी का एप शिक्षकों के मोबाइल में डाउनलोड थे, उसके माध्यम से निजी जानकारियां लीक होने लगी। इस बात की जानकारी डीईओ को देने के बाद भी एप को बंद नहीं कराया गया।
अनचाहे फोन कॉल से परेशान होकर आखिऱकार शिक्षकों ने न्यायालय की शरण ली। शिक्षकों ने इसे निजता का हनन बताते हुए इसे बंद करने की मांग की थी। बिलासपुर हाईकोर्ट में दायर इस याचिका पर सुनवाई करते हुए करते हुए न्यायालय ने शिक्षकों के पक्ष में फैसला सुनाया है। इस मामले में सुनवाई के बाद छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने जिला शिक्षा अधिकारी को आदेश दिया था कि शिक्षकों की शिकायत जल्द दूर की जाये। न्यायालय के निर्देश के बाद सरकार ने इस व्यवस्था को बंद करा दिया। निजता के अधिकारों के हनन से संबंधित कई मामले अब तक अलग-अलग उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट में आ चुके है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक निर्णय में निजता को व्यक्ति का मौलिक अधिकार (स्नह्वठ्ठस्रड्डद्वद्गठ्ठह्लड्डद्य क्रद्बद्दद्धह्ल) माना है। वर्ष 2017 में डेटा की सुरक्षा और प्राइवेसी के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिये नौ जजों की संविधान पीठ ने सामूहिक सहमति से फैसला दिया था। न्यायालय ने कहा था कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को जीने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता यानी निजता का अधिकार है। इसे संविधान के भाग-ढ्ढढ्ढढ्ढ द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के हिस्से के रूप में संरक्षित किया गया है।
इस अधिकार को केवल राज्य कार्रवाई तभी की जा सकती है जब ऐसी राजकीय कार्रवाई के लिये एक विधायी जनादेश हो। इसे एक वैध राजकीय उद्देश्य का पालन करना चाहिये। साथ ही यह यथोचित होनी चाहिये अर्थात् ऐसी राजकीय कार्रवाई प्रकृति और सीमा में समानुपाती होनी चाहिये। एक लोकतांत्रिक समाज के लिये आवश्यक होनी चाहिये तथा किसी लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु उपलब्ध विकल्पों में से सबसे कम अंतर्वेधी होनी चाहिए। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किसी एक नागरिक की वजह से दूसरे नागरिक के साथ किसी भी प्रकार से समझौता नहीं होना चाहिए। इसी तरह से देश के नागरिकों को एक और अधिकार प्रदान किया जाता है, जिसे निजता या निजी स्वतंत्रता के अधिकार के नाम से जाना जाता है। इसके अंतर्गत किसी व्यक्ति के जीवन में किसी अन्य व्यक्ति की ज़बरदस्ती के हस्तक्षेप पर रोक भी लगाई जा सकती है। इसमें किसी भी व्यक्ति की निजी, पारिवारिक, हॉनर, रेपुटेशन आदि भी सम्मिलित होती है।
यदि किसी भी प्रकार के दस्तावेज में किसी व्यक्ति की निजी जानकारियों में किसी भी प्रकार की त्रुटि हो गई है, या कोई आवश्यक जानकारी छूट गई है, तो वह व्यक्ति उस जानकारी को संशोधित करने के लिए आवेदन कर सकता है और बिना किसी परेशानी के अपने दस्तावेजों को संशोधित करा सकता है। बिना किसी क़ानूनी नोटिस या समन के जिसमें न्यायालय द्वारा किसी बड़े मुद्दे को हल करने के लिए अपनी कुछ निजी जानकारी साझा करने का आदेश हो सकता है, तो ऐसे आदेश के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति या संस्था के सामने अपनी निजी जानकारी व्यक्त न करने की स्वतंत्रता भी इस अधिकार के अंतर्गत देश के प्रत्येक नागरिक को प्राप्त होती है।
बीती अगस्त 2017 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने देश के लिए एक सबसे अहम फैसला लिए। जिसमें निजी स्वतंत्रता के अधिकार को भारतीय संविधान के भाग 3 में वर्णित मौलिक अधिकारों की श्रेणी दी गयी। निजता को तीन जोन में बांटा जा सकता है। जिसमें पहला है, आंतरिक जोन, जिसके अंतर्गत शादी, बच्चे पैदा करना आदि मामले आते हैं। दूसरा है, प्राइवेट जोन, जहां हम अपनी निजता को किसी अन्य व्यक्ति या संस्था से साझा नहीं करना चाहते, जैसे अगर बैंक में खाता खोलने के लिए हम अपना डेटा देते हैं, तो हम चाहते हैं कि बैंक ने जिस उद्देश्य से हमारा डेटा लिया है, उसी उद्देश्य से तहत वह उसका इस्तेमाल करे, किसी अन्य व्यक्ति या संस्था को वह डेटा न दे। वहीं, तीसरा होता है, पब्लिक जोन। इस दायरे में निजता का संरक्षण न्यूनतम होता है, लेकिन फिर भी एक व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक निजता बरकरार रहती है। वहीं, चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने टिप्पणी की थी, कि अगर किसी व्यक्ति से कोई ऐसा सवाल पूछा जाता है, जो उसके प्रतिष्ठा और मान-सम्मान को ठेस पहुंचाता है तो वह निजता के मामले के अंतर्गत आता है। चीफ जस्टिस के मुताबिक, दरअसल स्वतंत्रता के अधिकार, मान-सम्मान के अधिकार और निजता के मामले को एक साथ कदम दर कदम देखना होगा। स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में मान-सम्मान का अधिकार आता है, और मान-सम्मान के दायरे में निजता का मामला आता है।

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