Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा और आस्था का सैलाब

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

आज का दिन भारत में राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन में ऐतिहासिक महत्व का है। विपक्ष की तमाम राजनीतिक धिक्कार और विरोध के बावजूद राम के प्रति भारतीय बल्कि विश्व की जन आस्था का प्रचंड प्रवाह रोकना अब मुश्किल काम हो गया है। बौद्धिक हलकों से लगाकर राजनीतिक क्षेत्र में भी इस बात को अब समझना जरूरी हो गया है कि राम अब भारतीय जनमानस की भक्तिभाव से आगे जाकर आस्था का विशाल और अखंड पर्वत हो गया है। राम जो भक्ति में श्रद्धा के सोच की तरह थे, वह अब संस्कार में आदर्श की तरह स्थापित है। अयोध्या अब धार्मिक राजधानी हो गई है।

राम लला को लेकर इतिहास और पुराण की बहस अब लगभग खत्म होने की कगार पर है। खासकर मध्य वर्ग के बौद्धिक भारतीय जनमानस में यह द्वंद्व अब खत्म हो चुका है। विपक्ष की राजनीति अब लाख इसे कितनी भी ऊँची आवाज में प्रचारित करे कि यह भाजपा और हिंदू संगठन का राजनीतिक पैंतरा है लेकिन भारत के बहुसंख्यक यानी करोड़ों लोग इसे सदियों बाद भारत की श्रद्धा भक्ति और आस्था की विजय के रूप में देख रहे हैं।

आज वह समय नहीं है, जब राम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा को संशय से देखा जाए। अब रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के उत्सव को भक्ति और श्रद्धा की दृष्टि के साथ देखने का समय है इसे किसी बौद्धिक या आध्यात्मिक बहस में उलझाने की कोशिश बचकानी होगी और गैर जरूरी भी। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को करोड़ों भारतीय आस्था की तरल आँखों से 500 सालों की रामलला की कैद को मुक्ति की तरह देख रहे हैं। यह समय करोड़ों भारतीय लोगों की आस्था के सम्मान का समय है।

आज पूरा देश राममय है। वो कौन सी बातें हैं जो बाक़ी देवी-देवताओं से राम को अलग करती हैं। वो राम तत्व क्या है, ये समझने की ज़रूरत है। भगवान राम की मूर्ति उनके घर पर उनके जन्म स्थान में स्थापित हो रही है। इस अवसर पर पूरी दुनिया की निगाहें अयोध्याधाम स्थित नवनिर्मित राम मंदिर पर है। आखिर मर्यादा पुरुषोत्तम राम समाज के आदर्श क्यों हैं, इसे जानने के लिए जानते हैं क्या है राम तत्व श्रीराम केवल दशरथ के पुत्र ही नहीं हैं, बल्कि रोम-रोम में जो चेतना व्याप्त रही है, रोम-रोम में जो रम रहा है उसका ही नाम है राम।

रमन्ते योगिन: यस्मिन् स राम:।
अर्थात ‘जिसमें योगियों का मन रमण करता है उसी को कहते हैं राम राम तत्व को समझने के लिए हम छोटी सी कथा का सहारा लेते हैं। भगवान राम और रावण की सेना के बीच भीषण युद्ध चल रहा था इस युद्ध में रावण का पुत्र मेघनाथ लक्ष्मण के हाथों मारा जाता है। मेघनाथ की पत्नी को जब पति के निधन की खबर मिलती है तो वो पति के शव को देखना चाहती है जो कि इस वक्त विरोधी दल के कब्जे में था। सुलोचना रावण से अपने पति के शव मंगाने की इच्छा रखती है तब रावण उसे खुद ही विरोधी दल के पास जाकर लाने के लिए कहता है…रावण कहता है जिस समाज में बालब्रह्मचारी श्रीहनुमान, परम जितेन्द्रिय श्री लक्ष्मण तथा एकपत्नीव्रती भगवान श्रीराम मौजूद हैं, उस समाज में तुम्हें जाने से डरना नहीं चाहिए। मुझे विश्वास है कि इन महापुरुषों के द्वारा तुम निराश नहीं लौटाई जाओगी।

रावण जब ये बात अपनी बहु सुलोचना को कह रहे थे तब वहां उनके कुछ मंत्री भी मौजूद थे, वे कहते हैं कि अपने दुश्मन के खेमे में बहु को भेजना ठीक नहीं होगा, एक मंत्री कहता है जिसकी स्त्री आपके कैद में है उसके पास अपनी बहु को भेजना क्या उचित होगा इस प्रसंग में जो जवाब रावण अपने मंत्रियों को देता है वो ये बताने के लिए काफी हैं कि श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों कहा जाता है।

रावण अपने मंत्रियों से कहता है यह तो रावण का काम है जो दूसरे की स्त्री को अपने घर में बंदिनी बनाकर रख सकता है, राम का नहीं।
तो ये है राम तत्व जिसका सम्मान उनके शत्रु भी करते थे..। राम का व्यक्तित्व हमें सद्चरित्र के निर्माण की सीख देता है…।

वाल्मीकि की रामायण के क्षत्रिय राजकुमार रामचंद्र का अस्तित्व अब रामायण के भीतर है और तुलसीदास की रामचरितमानस के मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र अब अयोध्या में सर्वप्रिय राजा राम की तरह पुन: स्थापित हो गए हैं। अब हम सबका कर्तव्य है कि हम मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राजा राम के आदर्शों, न्याय प्रियता और परोपकार की छबि को अपने जीवन में उतारें।

हमारे जीवन मूल्यों में एक दूसरे के प्रति सम्मान हो। सद्भावना हो और किसी भी तरह का शत्रु भाव नहीं होना चाहिए जो लोग समझते हैं कि इसमें राजनीतिक दल का अपने हित में विशेष प्रयोजन है तो वे ईश्वर पर भरोसा करके इसे भगवान रामचंद्र के न्याय पर छोड़ दें। यदि कुछ गलत है तो वह भगवान रामचंद्र देख रहे हैं और इतिहास में दर्ज हो रहा है। विपक्ष या जो लोग प्राण प्रतिष्ठा के इस महोत्सव से असहमत हैं वे भी तुलसीदास की इस बात पर भरोसा रखें कि होई है वही जो राम रचि राखा जो भगवान रामचंद्र ने तय कर रखा है अंतत: वही होगा। भगवान राम की प्राण-प्रतिष्ठा करोड़ों लोगों की आस्था, श्रद्धा और विश्वास के अनुकूल है तो यह असाधारण घटना है। यह भगवान राम के ही नाम का चमत्कार है कि इस महोत्सव की गूँज विदेशों में भी पहुँच रही है। आखिर यह भारतीय आस्था के 500 सालों के संघर्ष का परिणाम है। बाकी जो कुछ भी किंतु परंतु है उसे इतिहास के न्याय पर छोड़ दें। इतिहास का न्याय सबसे तटस्थ और मंगलकारी होता है।

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