प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से – बाबाओं का राजनीति शास्त्र!

Editor-in-Chief

– सुभाष मिश्र

आजकल कई बाबा जिन्हें महाराज, पंडित, प्रवचनकर्ता, विश्वगुरू, शास्त्री आदि कहकर संबोधित किया जाता है। ऐसे धर्मशास्त्री राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर बनते नजर आ रहे हैं। इनके कथित दिव्य दरबार में आम श्रद्धालुओं के साथ ही बड़े-बड़े नेता भी बढ़-चढ़कर हाजिरी लगा रहे हैं। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में इस साल चुनाव होने हैं। आए दिन यहां इस तरह के दरबार और पंडाल सजे रहते हैं। जिस तरह से सोशल मीडिया में इन बाबाओं के चमत्कार की कहानियां प्रचारित की गई उससे प्रभावित होकर हजारों-लाखों की संख्या में लोग इस उम्मीद के साथ यहां पहुंच रहे हैं कि शायद उन पर कृपा बरस जाए और इन बाबाओं के चमत्कार से उनका जीवन चमत्कृत हो जाए। हालांकि, यहां माथा टेकने पहुंच रहे नेता ये सब खेल जानते हैं। वो यहां आ रही भीड़ के रंग में रंग कर उन्हें साधने की कोशिश में यहां पहुंचते हैं और महाराज जी को प्रणाम कर खुद को धर्म के ध्वजा वाहक घोषित करने की कोशिश करते हैं। जिससे जनता को लगे कि नेताजी की सोच हमारी जैसी है और वे महराज की शरण में हैं। इस तरह बाबाओं के दरबार से आम आदमी का भला हो न हो इन नेताओं का भला जरूर हो जाता है। इस तरह आजकल धर्म और राजनीति का साथ बना है। जिस तरह बाजार में हर उत्पाद का एक दौर चलता है, जैसे फिल्मों में अलग-अलग समय में अलग-अलग नाम का डंका बजता है, उसी तरह इन प्रवचनकर्ताओं, बाबाओं का दौर चलता है। एक दशक पहले कुछ और थे दो दशक पहले कोई और आदरणीय थे आज कोई और हैं। इन दिनों जो नाम सबसे ज्यादा चल रहे हैं उनमें से एक बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री जो इन दिनों बिहार में हैं। उनके दरबार में भारी तादाद में लोग उमड़ रहे हैं। वे हिंदू राष्ट्र की बात कहते हैं। धर्म ध्वजा फहराया जाए, काली गाय की पूजा करें, रामचरित मानस का पाठ करें, तुलसी की पूजा करने के साथ हिन्दू राष्ट्र की बात करते हैं।
हिंदू राष्ट्र की कल्पना हमारे देश की सहिष्णुता और सामाजिक ताने-बाने के लिए क्या सही है? बिहार सरकार में वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी का कहना है कि यह गांधीवाद को ख़त्म करने की साजि़श है। इधर धीरेन्द्र शास्त्री के मुद्दे पर भाजपा और जदयू आमने-सामने हैं। विजय चौधरी ने कहा कि यह बिहार और पूरे देश से गांधी की विचारधारा को उखाडऩे की साजिश है। इससे पहले आरजेडी प्रमुख लालू यादव ने भी टिप्पणी की थी।
अक्सर कहा जाता है कि हिंदू धर्म ही सबसे ज्यादा समावेशी है। इस पर अशोक वाजपेयी जैसे वरिष्ष्ठ संस्कृति कर्मी और समाज के जानकार कहते हैं कि अगर हिंदू धर्म इतना ही समावेशी था तो बौद्ध, जैन और सिक्ख धर्म कैसे बने। हमारी परंपरा में इन सभी धर्मों ने कुछ न कुछ दिया है। वाजपेयी कहते हैं इन दिनों सड़कें ही चौड़ी नहीं हो रही हैं, दरारें भी चौड़ी हो रही हैं। ये दरारें पहले से थीं लेकिन अब आपस में बढ़ती जा रही हैं। धार्मिक उन्माद पैदा करना, अंधविश्वास फैलाना लोगों को अज्ञानी और क्रूर बनाना, राजसत्ता, धर्म सत्ता और पुरुष सत्ता का पुराना हथकंडा है।
ऐसे कई नाम हैं जिन्होंने धर्म के साथ ही सियासत में अपना खेल दिखाया है। जिस तरह बाबा रामदेव ने 2014 में भाजपा का खुलकर समर्थन किया। ऐसे में समझना होगा कहीं धर्म की आड़ में, आपकी आस्था की आड़ में कहीं आपकी मनोदश आक्रामक न बना दी जाए। कोई अपना काम आपकी भावनाओं को बेचकर पूरा न कर ले।

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