Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – महिलाओं और युवाओं की राजनीतिक भागीदारी : आधी हक़ीक़त, आधा फंसाना

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

राजनीति में महिला और युवाओं की भागीदारी बढ़ाने की वकालत हर कोई कर रहा है। अभी छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान समेत 5 राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, कुछ महीनों के बाद देश का आम चुनाव होना है। सभी राजनीतिक दलों ने महिला आरक्षण बिल जिसे लोकसभा और राज्यसभा में नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023 कहा गया, पारित करते हुए बड़ी-बड़ी बातें कहीं। लगा कि ये बिल पारित होते ही महिलाओं को कम से कम 33 प्रतिशक की हिस्सेदारी तो मिल ही जायेगी। युवाओं को भी पचास फ़ीसदी हिस्सेदारी देने की बात कही जा रही थी, किन्तु ज़मीनी सच्चाई इससे उलट है या ये कहें कि इस मामले में दिल्ली अभी दूर है। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिनके लिए कहा जाता है कि मोदी है तो मुमकिन है, वे भी अपनी पार्टी से 33 प्रतिशत महिलाओं को इन पांच राज्यों में टिकिट नहीं दिला पाये। वहीं प्रियंका गांधी जिन्होंने उत्तर प्रदेश चुनाव में 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकिट देते हुए ये नारा दिया था कि लड़की हूँ लड़ सकती हूँ, वे भी अपनी पार्टी में 33 प्रतिशत टिकिट नहीं दिला पाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए सदन के प्रथम सत्र के प्रथम भाषण में कहा कि आज का यह दिवस इतिहास में नाम दर्ज करने वाला है। हम सबके लिए यह गर्व का पल है। अनेक वर्षों से महिला आरक्षण के संबंध में बहुत चर्चाएं हुई हैं, बहुत वाद-विवाद हुए हैं। महिला आरक्षण को लेकर संसद में पहले भी प्रयास हुए हैं। 1996 में पहली बार बिल पेश हुआ था। अटल जी के कार्यकाल में कई बार महिला आरक्षण बिल पेश किया गया लेकिन उसे पास कराने के लिए आंकड़े नहीं जुटा पाए, इस कारण वो सपना अधूरा रह गया। पीएम ने आगे कहा, ईश्वर ने शायद ऐसे कई पवित्र काम के लिए मुझे चुना है। एक बार फिर हमारी सरकार ने कदम बढ़ाया है। कल ही कैबिनेट में महिला आरक्षण वाले बिल को मंजूरी दी गई है। इस दौरान सदन में मौजूद महिला सांसद काफी उत्साहित दिखीं। महिलाओं के नेतृत्व में विकास के अपने संकल्प इस विधेयक का लक्ष्य लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी का विस्तार करना है। नारी शक्ति वंदन अधिनियम के माध्यम से हमारा लोकतंत्र और मजबूत होगा। मोदी ने कहा कि 19 सितंबर की ये तारीख इसलिए इतिहास में अमरत्व को प्राप्त करने जा रही है। आज जब महिलाएं हर सेक्टर में तेजी से आगे बढ़ रही हैं, नेतृत्व कर रही हैं तो बहुत आवश्यक है कि नीति निर्धारण में हमारी माताएं-बहनें, हमारी नारी शक्ति अधिकतम योगदान दे। योगदान ही नहीं, वे महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं।

अब जब हम छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में हुए टिकिट वितरण की पड़ताल करते हैं तो यहां स्थिति वैसी नहीं है। विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रमुख पार्टियों द्वारा इन्हें कितना स्थान दिया जाता है ये बहुत अहम बात है। हाल ही में महिला आरक्षण बिल यानी नारी शक्ति वंदन बिल-2023 संसद में पास हो गया है। जो 2029 से लागू किया जाएगा लेकिन इसका असर 2023 के विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिल रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य की बात करें तो इस बार कांग्रेस ने 18 तो बीजेपी ने 15 महिला प्रत्याशियों को टिकट दिया है। केवल 3 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जिनमें प्रदेश की 2 बड़ी पार्टियों ने महिलाओं को आमने-सामने किया है। जिससे ये ज़ाहिर होता है कि प्रदेश की महिला प्रत्याशियों पर पार्टियों को दांव लगाने से गुरेज़ नहीं है और कहीं न कहीं उन्हें भरोसा है कि वे बतौर विनिंग कैंडिडेट चुनावी रण में उतर रहीं हैं।

छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जहां प्रतिशत अनुसार वर्तमान में सबसे ज्यादा महिला विधायक है। प्रदेश में फिलहाल 16 महिला विधायक हैं। इनमें सबसे ज्यादा कांग्रेस की 11 और 1-1 भाजपा, बसपा और जेसीसीजे की है। 2018 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस ने 13 महिलाओं को टिकट दिया, जिसमें से 10 को जीत मिली, वहीं भाजपा ने 14 महिला उम्मीदवार खड़े किए पर 1 को ही जीत मिली। इसी तरह बहुजन समाज पार्टी की 5 प्रत्याशियों में 1 और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ की 3 प्रत्याशियों में से 1 को जीत मिली। 2003 से लेकर 2018 तक के चुनाव की बात करें तो भाजपा और कांग्रेस ने 56 महिलाओं को टिकट दिया है। इनमें से 38 महिला प्रत्याशी ने ही जीत दर्ज की है। हालांकि साल दर साल महिलाओं की भागीदारी में बढ़ोतरी हुई है और महिला उम्मीदवारों पर पार्टियों ने भरोसा भी दिखाया है।
इस बार 2023 का चुनाव दिलचस्प है। प्रदेश में कुल 1 करोड़ 20 लाख महिला वोटर्स हंै, जबकि पुरुष वोटर्स 1 करोड़ 10 लाख है। साथ ही प्रदेश में 59 प्रतिशत सीटों पर महिलाओं का वर्चस्व है, जो प्रत्याशियों के जीत दजऱ् कराने में निर्णयाक साबित होगा। इसके अलावा 53 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा है। इसके बावजूद दोनों बड़ी पार्टियों ने केवल 33 महिलाओं को चुनावी रण में उतारा है। ये फैसला कितना कारगर है, ये 3 दिसंबर को चुनाव परिणाम आने के बाद ही साबित होगा।

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर सत्तारूढ़ भाजपा और कांग्रेस ने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। इस बार दोनों ने महिलाओं को 13 फीसद टिकट ही दिए हैं। मध्य प्रदेश के विगत तीन विधानसभा चुनावों की बात की जाए तो 2013 में गठित 14वीं विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या 32 थी। हालांकि, 15वीं विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या घटकर 32 से 21 हो गई। वहीं 2008 में 24 महिलाएं विधानसभा पहुंचने में कामयाब हुई थीं। महिलाओं को उम्मीदवार बनाए जाने के मामले में भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे को पछाड़ते रहे हैं। साल 2008 में कांग्रेस ने 37 महिलाओं पर दांव लगाया था। जिनमें से आठ को सफलता मिली थी। वहीं, भाजपा ने 25 महिलाओं को टिकट दिया था, लेकिन 14 को ही जीत मिली थी।

इसी तरह राजनीति में युवाओं की भागीदारी की बात करें तो एक दौर में छत्तीसगढ़ इस मामले में काफी समृद्ध रहा है। आज के सीनियर लीडर एक दौर में युवा कोटे से सियासी गलियारे में कदम रखे थे। इनमें भूपेश बघेल, बृजमोहन अग्रवाल, रविन्द्र चौबे, मो. अकबर जैसे नाम का जिक्र कर सकते हैं। इन नामों ने बाद में प्रदेश की राजनीति को अलग दिशा दी। लेकिन अभी के दिनों में इस तरह के नेताओं की कमी है, विजन नहीं है। कुछ दिनों पहले हमारी बृजमोहन अग्रवाल से मुलाकात हुई थी तो उन्होंने उनके दौर आज की तुलना करते हुए कहा था कि तम परिश्रम से नेता बना जाता था और आज परिक्रमा (चापलुसी) कर नेतागिरी की जा रही है। अगर युवा नेतृत्व का यही हाल रहा तो सोचना पड़ेगा। युवाओं के मुद्दे पर राजनीति जमकर होती है लेकिन उन्हें भागीदारी देने में अभी भी उतना उत्साह राजनीतिक दलों में नजर नहीं आता।

यहां सवाल यह है कि जो महिलाएं-युवा राजनीति में आ रहे हैं उन्हें किस तरह की भूमिका दी जा रही है या वे किस तरह की भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं। क्या वे पार्टी के भीतर रणनीतिकार, पॉलिसी मेकर और जुझारू नेता के रूप में अपनी भूमिका निभा पा रहे हैं। केवल संख्या बल के आधार पर वर्तमान हालात में सुधार संभव नहीं होगा।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

MENU