Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – विपक्षी एकता क्या केवल सत्ता के लिए

Editor-in-Chief

From the pen of Editor-in-Chief Subhash Mishra – Opposition unity only for power

– सुभाष मिश्र

हर चीज़ यहां की मरकज़ में
इक जर्रा इधर, इक जर्रा उधर
नफऱत से ना देखो दुश्मन को
शायद वो मोहब्बत कर बैठे

मिशन 2024 के ताज को अपने सिर पर बांधने के लिए विपक्षी पार्टियों का एकजुट होना शुरू हो गया है। इसी कड़ी में 23 जून को पटना में सभी प्रमुख विपक्षी पार्टियों का जमावड़ा होने जा रहा है। एंटी मोदी कैंपेन को आगे बढ़ाते हुए महागठबंधन की बैठक में केंद्र सरकार को उखाड़ फेंकने की रणनीति बनेगी। बिहार में कभी बीजेपी के साथ सत्ता संभालने वाले नीतीश कुमार अब पूरी तरह से बीजेपी के खिलाफ विपक्षी नेताओं को एकजुट कर रहे हैं। बिहार की राजनीति से बाहर निकलकर अब नीतीश कुमार दिल्ली तक की दौड़ लगा रहे हैं। विपक्षी नेताओं से अलग-अलग मुलाकात कर रहे हैं। पिछले दिनों उन्होंने मल्लिकार्जुन खडग़े, राहुल गांधी, शरद पवार, उद्धव ठाकरे के साथ-साथ ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल से मुलाकात भी की और अब उनकी मेहनत शायद रंग भी ला रही है। पटना में 23 जून को एंटी मोदी कैंपेन की पार्टियों का महामंथन होने जा रहा है। बैठक में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, झारखंड के मुख्यवमंत्री हेमंत सोरेन, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, दिल्ली के मुख्यरमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सहमति दी है। इसके अलावा एमके स्टालिन, शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने भी आने पर सहमति दी है।
विपक्षी पार्टियां मोदी सरकार की तानाशाही से छुटकारा पाने के लिए एकजुट हो रही हैं, लेकिन ये जितना आसान दिख रहा है उतना आसान है नहीं। ये सच है कि मोदी सरकार के खिलाफ सभी पार्टियां अलग-अलग तरीके से अपनी लड़ाई लड़ रही है, लेकिन सभी को एक विचारधारा के साथ मिलकर मोदी सरकार के खिलाफ लडऩा थोड़ा मुश्किल है।
90 का दशक गठबंधन काल था तो कुछ वर्षों को छोड़ कांग्रेस महाताकतवर रही। बीजेपी को 303 सीटें पिछले इलेक्शन में मिली। कांग्रेस तो 400 से ज्यादा सीटें पा चुकी है। 1967 में जब विधानसभा और लोकसभा के चुनाव हुए तो कांग्रेस के खिलाफ पहली बार आज वाली विपक्षी एकता की धुन सुनाई दी। भारतीय क्रांति दल, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और जन संघ ने मिलकर मोर्चा बनाया। बिहार, यूपी, राजस्थान, पंजाब, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, मध्य प्रदेश, मद्रास और केरल में कांग्रेस हार गई। जनवरी 1977, देश में इमरजेंसी लगे 19 महीने हो गए थे। इंदिरा गांधी को अपनी गलती और लोगों के गुस्से का एहसास हो गया था इसलिए 18 जनवरी को अचानक से इंदिरा गांधी ने मार्च 1977 में लोकसभा चुनाव कराने का ऐलान कर दिया। इसके 5 दिन बाद ही 23 जनवरी 1977 को 10 विपक्षी दलों ने मिलकर एक पार्टी बनाई। इस पार्टी का नाम था जनता पार्टी। विचारधारा में अलग होने के बावजूद ये पार्टियां स्वतंत्रता सेनानी जयप्रकाश नारायण के कहने पर एकजुट हुई थीं। 5 दल जनता मोर्चा, भारतीय लोक दल, स्वतंत्र पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया और भारतीय जनसंघ शामिल थीं। बाद में जनता पार्टी ने अलग-अलग राज्यों में इंदिरा गांधी को हराने के लिए वहां की क्षेत्रीय पार्टियों से भी गठबंधन किया या उन्हें समर्थन दिया। वन इज टू वन फॉर्मूले के तहत ही जनता पार्टी के खिलाफ कई दलों ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे। इंदिरा गांधी की कांग्रेस पार्टी ने 200 से भी कम सीट जीती, 1989 में इसी फॉर्मूले से राजीव गांधी को हराकर वीपी सिंह पीएम बने। 1989 के लोकसभा चुनाव में दो राष्ट्रीय पार्टियां मैदान में थी। एक कांग्रेस और दूसरी इसी वक्त कई पार्टियों के गठबंधन से नेशनल फ्रंट बना। 1989 के लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की करारी हार हुई। उन्हें केवल 197 सीटें ही मिली। वीपी सिंह देश के 7वें प्रधानमंत्री बने और देवी लाल देश के दूसरे उप प्रधानमंत्री बने।
1996 में पहले एचडी देवगौड़ा और फिर 1997 में इंद्रकुमार गुजराल के पीएम पद से इस्तीफे तक थर्ड फ्रंट ने सरकार चलाई, लेकिन कांग्रेस की बैसाखी से उसके बाद तो जनता ने तौबा कर लिया। अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और अब नरेंद्र मोदी, 1997 के बाद अब तक के 25 साल में सिर्फ तीन पीएम हुए हैं। इस बीच सीपीएम की अगुवाई में 2009 में थर्ड फ्रंट का लिटमस टेस्ट हुआ जो बुरी तरह फेल साबित हुआ। अब मोदी को हराने के लिए थर्ड फ्रंट का फॉरमेशन कितना कारगर होगा कहना मुश्किल है। हां, राहुल को हुई सजा ने इस बात की संभावना बढ़ा दी है कि कोई रीजनल पार्टी या थर्ड फ्रंट आपस में मिलकर नेता तय कर लें और कांग्रेस उसको सपोर्ट करें। 9 साल तक सत्ता में रहने वाली बीजेपी का हर पार्टी के साथ अलग-अलग सामना हो चुका है और महागठबंधन का सामना वो पहले भी कर चुकी हैं। ऐसे में 2024 के लिए बनते नए समीकरण पर भी बीजेपी की नजर रहने ही वाली है। हिमाचल औऱ कर्नाटक में हार के बाद बीजेपी दोगुनी ताकत से अपनी रणनीति में बदलाव कर रही है, ऐसे में 2024 की सियासी जंग काफी दिलचस्प होनी वाली है।
मिशन 2024 के लिए बीजेपी ने अब कॉमन सिविल कोड पर काम करना शुरू कर दिया है। ऐसा माना जा रहा है कि 2024 के सियासी जंग के लिए बीजेपी इसे सबसे बड़ा हथियार बनाने जा रही है। जैसे-जैसे 2024 का लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, लोग बीजेपी के अधूरे बचे, आखिरी बड़े मुद्दे की चर्चा करने लगे हैं। कॉमन सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता पर सोशल मीडिया से लेकर चाय पे चर्चाओं में भी इस मुद्दे पर जिक्र हो रहा है। कॉमन सिविल कोड का मतलब देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून बनाना है। यह बिना किसी धर्म, जाति या लैंगिक भेदभाव के लागू होगा। सरल शब्दों में समझिए तो सभी धर्मों के लोगों का कानून एक होगा। अभी हिंदू, ईसाई, पारसी, मुस्लिम जैसे अलग-अलग धार्मिक समुदाय विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने के मामलों में अपने-अपने पर्सनल लॉ का पालन करते हैं। हालांकि, आपराधिक कानून एक समान है। बीजेपी ने कॉमन सिविल कोड पर अभी से काम करना शुरू कर दिया है। भारत अलग-अलग धर्मों को एक साथ लेकर चलने वाला देश है, लेकिन अब बीजेपी की पहल से इसको लेकर काम शुरू हो गया है। हर चुनाव से पहले बीजेपी लोगों से बड़े-बड़े वादे करती है। बीजेपी का दावा है कि पिछले चुनावों में किए गए वादों में से ज्यादातर वादे पूरे किए जा चुके हैं। अब 2024 के लिए बीजेपी हिंदू-राष्ट्र के मुद्दे को लेकर आगे बढऩे वाली है। इसी में से एक है कॉमन सिविल कोड है। पटना में विपक्षी एकता के महामंथन में इस मुद्दे पर भी विपक्षी पार्टियों का एक होना बहुत जरूरी है, लेकिन अलग-अलग विचारधारों की पार्टियों में कॉमन सिविल कोड को लेकर आपसी सहमति कितनी बन पाएगी ये देखने वाली बात होगी। बहरहाल मिशन 2024 के लिए मोदी के सामने टकराने के लिए विपक्षी पार्टियों का एक होना जरूरी तो है लेकिन उसके लिए मुद्दों पर भी सहमति उतनी ही जरूरी है।

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