Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – प्रदेश की राजनीति में नए पॉवर सेंटर

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

विष्णुदेव साय मंत्रिमंडल के विभागों का बंटवारा हो गया है। मुख्यमंत्री साय ने सामान्य प्रशासन, जनसंपर्क और अबकारी जैसे विभाग को अपने पास रखा है। हालांकि छत्तीसगढ़ में ये एक परंपरा ही बन गई है कि इन विभागों को मुख्यमंत्री अपने पास रखते आए हैं। लंबे समय से वित्त मंत्रालय भी मुख्यमंत्री के पास ही रहता आया है, जो कि इस बार ओपी चौधरी को सौंपा गया है। पूर्व आईएएस अधिकारी ओपी को प्रशासनिक कामकाज का खासा तजुर्बा है। हो सकता है कि इसलिए आर्थिक मामलों जैसे जटिल विषय को इसीलिए सौपा गया है। माना ये भी जा रहा है कि प्रदेश के प्रशासनिक अमले पर भी उन्हीं के चलेगी। इस तरह वे नई सरकार में एक नए पॉवर सेंटर के तौर पर उभर रहे हैं। वैसे भी चुनाव प्रचार के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने
इस मंत्रिमंडल में विभागों के बंटवारे के बाद कवर्धा से विधायक चुने गए उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा का भी कद बढ़ते नजर आ रहा है। उन्हें गृह मंत्रालया की जिम्मेदारी सौंपी गई है। विजय शर्मा भले ही पहली बार विधायक बने हैं लेकिन उनका तेवर दबंग राजनेता जैसा है। युवा मोर्चा से वे जुड़े रहे हैं इसलिए पार्टी के युवाओं में उनकी खासी पैठ दिखती है। कवर्धा में उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता मो अकबर को बड़े अंतर से चुनाव हराकर अपनी ओर ध्यान खींचा था। आलाकमान ने ने उन्हें उप मुख्यमंत्री बनाकर पहले ही संकेत दिया था कि अब भाजपा छत्तीसगढ़ में दूसरी पंक्ति को आगे लाने की रणनीति पर काम कर रही है।
प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अरुण साव को उपमुख्यमंत्री के दर्जे के साथ ही लोक निर्माण विभाग जैसा अहम विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई। वैसे उनका नाम मुख्यमंत्री की रेस में भी शामिल था। लेकिन साव अपने सौम्य व्यव्हार से लोगों के बीच अपनी पैठ बना चुके हैं। साव भाजपा का बड़ा ओबीसी चेहरा है, साहू समाज से वे आते हैं। आने वाले समय में वे भाजपा के बेहद अहम नेता के तौर पर उभर सकते हैं। सरकार में साव भी एक शक्ति केन्द्र के तौर पर देखे जा रहे हैं।
छत्तीसगढ़ की राजनीति के सबसे मंझे हुए खिलाड़ी माने जाने वाले बृजमोहन अग्रवाल को शिक्षा, संस्कृति और धर्मस्य विभाग दिया गया है। हालांकि उनके समर्थक मानते हैं कि बृजमोहन अग्रवाल के लिए विभाग का छोटा-बड़ा होना मायने नहीं रखता क्योंकि वो जिस विभाग में जाते हैं उसे बड़ा बना देते हैं। मीडिया में भी यह धारणा है कि बृजमोहन अग्रवाल के विभाग में गहमागहमी पहले की तरह बने रहेगी। इसका उदाहरण रमन सरकार में देखने को मिलते रहा है। नतीजे आने के बाद जिस तरह उन्होंने आक्रमकता का परिचय दिया और अपनी छवि बुलडोजर वाले नेता की बनाई इससे अंदाजा लग रहा था कि राजधानी की राजनीति की धूरी बृजमोहन बने रहेंगे।
इस मंत्रिमंडल में दो आदिवासी नेता और पहले भी मंत्री रह चुके रामविचार नेताम और केदार कश्यप को भी अहम जिम्मेदारी दी गई है। भाजपा ने अपना प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंहदेव के रूप में बस्तर से चुना है। इसके बाद भी बस्तर में भाजपा की राजनीति का केन्द्र केदार कश्यप होंगे। वैसे भी कश्यप परिवार लंबे समय से बस्तर में भाजपा की कमान संभाले हुए हैं। बीच में विक्रम उसेंडी, लता उसेंडी महेश गागड़ा जैसे नेता सामने आए और खुद को आगे लेकर गए लेकिन एक बार फिर केदार इस मामले में सब पर भारी पड़ते नजर आ रहे हैं। केदार कश्यप अपने पिता की तरह आक्रमक नेता नहीं है लेकिन उन्हे सरकार में रहकर काम करने और कराने का खासा तजुर्बा है।
इसके बाद जो नेता मंत्रिमंडल में शामिल हैं उनमें दयालदास बघेल को ही पहले मंत्री रहने का अनुभव है। बघेल जमीन से जुड़े नेता हैं लेकिन राजनीति रूप से वो किसी तरह के पॉवर सेंटर कभी भी नहीं रहे हैं और अब भी नहीं होंगे। बाकी नेताओं का कद तो बढ़ा है लेकिन उन्हें अपने काम काज से अभी खुद को साबित करने की चुनौती होगी। फिर भी कह सकते हैं कि प्रदेश की राजनीति में कुछ नए पॉवर सेंटर बने हैं और पुराने सेंटर की भूमिका बदल रही है। नए शक्ति केन्द्रों के बीच देखने वाली बात होगी कि भाजपा अपने उन दिग्गज नेताओं को क्या जिम्मेदारी सौंपती है, जो मंत्रिमंडल में जगह नहीं बना पाए। जो चुनाव हार गए हैं लेकिन पिछले पांच सालों में भूपेश सरकार के खिलाफ संघर्ष करने में बढ़चढ़ कर शामिल थे। भाजपा नेतृत्व ने जिस तरह तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री का चयन किया उससे साफ संकेत मिलता है कि केन्द्रीय नेतृत्व की भूमिका पहले से ज्यादा होगी तभी इन राज्यों में नए नामों को मुख्यमंत्री बनाया गया है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

MENU