Editor-in-Chief सुभाष मिश्र कलम से – भारतीय राजनीति में एक नये युग का शुभारंभ

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र कलम से - भारतीय राजनीति में एक नये युग का शुभारंभ
-सुभाष मिश्र

आपने विष्णु का वामन अवतार सुना होगा, किंतु यहां विष्णु का सीएम अवतार देखने को मिल रहा है। विष्णुदेव साय जनजाति समुदाय से आते हैं। उनका किसी राज्य का मुख्यमंत्री बनना भारतीय राजनीति में नए युग का शुभारंभ है। रामधारी सिंह दिनकर की कविता ‘ रश्मि रथी में कर्ण की व्यथा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि  कौन जन्म लेता किस कुल में? आकस्मिक ही है यह बात, छोटे कुल पर, किन्तु यहाँ होते तब भी कितने आघात! हाय, जाति छोटी है, तो फिर सभी हमारे गुण छोटे, जाति बड़ी, तो बड़े बनें, वे, रहें लाख चाहे खोटे। भारतीय राजनीति में बल्कि कहें विश्व राजनीति में यह बौद्धिक दम्भ हमेशा से रहा है कि दलित, आदिवासी या हाशिये पर ठहरे वर्ग सेआने वाला व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न नहीं होता है और राजनीति में बड़े पद के लायक नहीं होता है। यही कारण है कि एक लंबे समय तक मुख्यमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर सवर्णों का ही कब्जा रहा है। राजनीति में यह धारणा इतनी पत्थर से मजबूत हो गई थी कि सवर्णों के अलावा कोई दूसरा गोया बड़े पद की राजनीति कर ही नहीं सकता है। उसके छोटी जाति या आदिवासी होना ही उसकी राजनीतिक अयोग्यता हो जाती थी। अपवाद छोड़ दिया जाए तो भारतीय राजनीति में आदिवासी के लिए आदिवासी राज्य में भी मुख्यमंत्री का पद दुर्लभ रहा है। आदिवासी की विनम्रता को ही उसकी राजनीतिक और प्रशासनिक दुर्बलता मान ली जाती थी। आदिवासी व्यक्ति के स्वभाव की सरलता को राजनीति में दुर्बलता माना जाता रहा है। स्वभाव की इस सरलता को यह मानकर चलते थे कि वे निर्णय लेने में सक्षम नहीं होते हैं। प्रशासनिक क्षमता नहीं होती है। शासन चलाने का कौशल नहीं होता है। राजनीतिक कुटिलता को राजनीतिक चतुराई और कुशलता मानने का चलन बहुत पुराना रहा है। जबकि होता यह है कि आदिवासी नेता अपने स्वभाव की सरलता और विनम्रता के चलते राजनीति और शासन-प्रशासन में सभी को साथ लेकर चलने में विश्वास करता है।  जनता के प्रति उसके भीतर जिम्मेदारी का एहसास और लोगों से ज्यादा होता है। वह इस वर्ग से आता है इसलिए वह आदिवासियों के दुख-दर्द को न सिर्फ भली-भांति समझता है, बल्कि उसे दूर करने के लिए उसके भीतर बड़ी सोच और कारगर योजनाएँ होती हैं। आदिवासी नेता जमीन से जुड़ा हुआ होता है। आदिवासियों के हित में क्या निर्णय लिए जा सकते हैं, वह और लोगों की अपेक्षा भली भांति जानता है। आदिवासियों के हित में बनने वाली योजनाओं में वह अफसर के भरोसे नहीं रहता है और उन योजनाओं में उचित दखल देकर उन्हें ज्यादा कारगर और सामाजिक हित में असरदार बना सकता है। आदिवासी व्यक्ति ज्यादा धैर्यवान और लगनशील होते हैं। ऐसे वर्ग से आने वाला राजनीतिज्ञ अपनी गहरी संवेदनशीलता के चलते लेट लतीफी के लिए बदनाम प्रशासनिक मशीनरी की संवेदनहीनता को जल्दी दूर कर सकता है। इस बात में तो कोई दो मत हो नहीं सकते और ना कोई तर्क की गुंजाइश है कि आदिवासी वर्ग से आया हुआ राजनीतिज्ञ इस तरह का महत्वाकांक्षी नहीं होता है कि आगे बढऩे के लिए वह अपने ही वर्ग अपने ही राज्य का अहित करता हुआ आगे बढ़ता जाए। वह अपने आदिवासी वर्ग का अहित कभी नहीं सोच पाएगा।  उसकी प्राथमिकता में हमेशा आदिवासी ही रहेंगे। लेकिन अपनी संवेदनशीलता के चलते यह निश्चित है कि वह पूरे समाज, पूरे राज्य के लिए गंभीर रूप से दायित्व बोध से भरे रहता है। अपने परंपरागत श्रमशील संस्कार के चलते पूरे राज्य के हित के लिए वह अपने संपूर्ण कौशल और श्रम का उपयोग करेगा। भाजपा ने यह प्रयोग चाहे जिस मंशा से किया हो लेकिन एक आदिवासी पर भरोसा करके उन्होंने पूरे आदिवासी समाज की संवेदनशीलता, श्रम और उनके सामाजिक संस्कारों पर भरोसा किया है।  अब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के सामने चुनौती यह है कि वह इस भरोसे को कितनी दूर और देर तक सँभाले रखते हैं। प्रश्न उनकी समझ ,श्रम और संवेदनशीलता का नहीं है बल्कि राजनीति में प्रवेश कर गई उस गुटबाजी और कुटिलता का है जिसके चलते उनके सामने राजनीतिक चुनौतियाँ ज्यादा बड़ी रहेंगी। जिनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं पर कुठाराघात हुआ है, वे ऊपर से चाहे प्रकट न करें लेकिन भीतर से आहत हुए होंगे और किसी न किसी तरह मुख्यमंत्री को नीचा दिखाने या असफल प्रमाणित करने के अवसर छोड़ेंगे नहीं या अवसर जुटाने या पैदा करने में लग जायेंगे। इसलिए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के सामने चुनौतियाँ भी बड़ी हैं। उनकी असफलता की कामना करने वालों को हताश करके मुख्यमंत्री को सफलता की एक लंबी दूरी कायम करना है और ऐसी अनेक लड़ाइयाँ भी जीतना होंगी। भारतीय जनता पार्टी ने राजनीतिक संतुलन और दूसरे बड़े महत्वाकांक्षी नेताओं का कद कम करने के लिए इस तरह का निर्णय संभवत: लिया हो लेकिन परोक्ष में यह आदिवासियों पर बड़ा भरोसा ही नहीं उनकी योग्यता का स्वीकार है। किन्हीं भी राजनीतिक कारणों से लिया गया यह निर्णय भारतीय राजनीति में एक नए शुभारंभ की तरह देखा जाना चाहिए। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साव के लिए यह एक बड़ा अवसर है जब उन्हें अपनी पार्टी के भरोसे पर पूरा उतर के दिखाना है और यह चुनौती भी है कि आदिवासी अपनी निष्ठा ,श्रम और ईमानदारी के लिए ख्यात हैं, इस प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा की रक्षा करते हुए इसे कायम रखना है। अब उनकी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा और उनके वर्ग की प्रतिष्ठा एक दूसरे से जुड़ी हुई है और इसी के साथ उन्हें पूरे राज्य के भरोसे को भी पूरा करना है। इस समय छत्तीसगढ़ राज्य उन्हें उम्मीद के साथ देख रहा है। राज्य ही नहीं बल्कि राजनीति का संसार भी उन्हें उम्मीद और संशय से देख रहा है। आगे आने वाले समय में मुख्यमंत्री असंख्य उम्मीद और आकांक्षाओं की निगाहों के बीच से चलने वाले हैं। इस समय की सफलता पर ही उनकी खुद की सफलता और राज्य की सफलता और समृद्धि निर्भर करती है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

MENU