Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से- संघ और भाजपा के बीच क्या बढ़ रही खाई ?

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

– सुभाष मिश्र

क्या वाकई राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा के बीच कुछ दूरी बन गई है। क्या लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद संघ का रुख भाजपा के प्रति आक्रमक है। ऐसे कई सवाल मीडिया में और राजनीतिक जानकारों के बीच घूम रही हैं। इस मामले को कुछ प्रमुख लोगों के बयान ने और हवा दी है, लोगों को कयास लगाने का मौका दिया है। इसमें पहला बयान भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का था। नड्डा ने बीच चुनाव में कहा भाजपा को अब आरएसएस की बैसाखी की जरूरत नहीं। पहले कभी होती भी थी, पर अब नहीं। संघ की पृष्ठभूमि से भाजपा में आए कार्यकर्ताओं के लिए यह कंफ्यूजन पैदा करने वाला बयान था। साथ ही संघ-भाजपा को साझा कर देखने वाले हिंदू मतदाता भी भ्रमित हो गया। सबसे बड़ी बात ये थी कि इस बयान के बाद भाजपा के दूसरे बड़े नेता की ओर से कोई बयान नहीं आया। किसी ने बताया नहीं की आखिर नड्डा को इस तरह बयान देने की क्या जरूरत पड़ गई। हो सकता है नड्डा भाजपा की मजबूती के बारे में बात कर रहे हों। लेकिन इसके लिए संघ का उल्लेख करना बताता है कि पर्दे के पीछे कुछ न कुछ पक रहा है। नतीजे आने के बाद भाजपा भले गठबंधन सरकार बनाने में कामयाब रही लेकिन उसकी खुद की सीट काफी कम हो गई है। इसके बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत ने बिना किसे के नाम लिए राजनीति में सुचिता और मर्यादा की बात कही।
भागवत ने कहा कि जो मर्यादा का पालन करते हुए काम करता है। गर्व करता है लेकिन अहंकार नहीं करता, वही सही अर्थों में सेवक कहलाने का अधिकारी है। माना जा रहा है कि ये बात उन्होंने भाजपा के कुछ बड़े नेताओं के हालिया बयानों के जवाब में कही है। उन्होंने मणिपुर में हो रही हिंसा का भी जिक्र किया और कहा कि कर्तव्य है कि इस हिंसा को अब रोका जाए। चुनाव नतीजों के बाद मोहन भागवत का भाषण कई मायनों में अहम था। इसकी चर्चा देश भर की मीडिया में हुई। मामला यहीं नहीं रुका आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजऱ ने भी बीजेपी और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की आलोचना की। ऑर्गनाइजऱ ने लिखा कि लोकसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के अति आत्मविश्वासी नेताओं और कार्यकर्ताओं को आईना हैं। हर कोई भ्रम में था।
इस पूरे एपिसोड में एक और बात काबिले गौर है कि मोहन भागवत सार्वजनिक रूप से दो बार बोलते हैं, एक विजयदशमी पर और दूसरे संघ के कार्यकर्ता विकास कक्षाओं के बाद, हालांकि इन कक्षाओं में कभी राजनीतिक सलाह या बयान नहीं देते। लेकिन, इस बार उन्होंने चुनाव नतीजों के तुरंत बाद कार्यकारी विकास वर्ग-2 के समापन भाषण में परोक्ष रूप से वरिष्ठ भाजपा नेताओं को नसीहत दी। उन्होंने मणिपुर के जरिए हिंसा रोकने पर जोर दिया। साथ ही सेवक शब्द का इस्तेमाल करते हुए कहीं न कहीं पीएम मोदी को संदेश देने की कोशिश की। भागवत ने कहा कि देश को निस्वार्थ एवं सच्ची सेवा की ज़रूरत है। जो मर्यादा का पालन करता है उसमें अहंकार नहीं होता और वह सेवक कहलाने का हक़दार होता है। राजनीति के जानकार लोगों का मानना है कि यह अप्रत्यक्ष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए कहा गया था।
अभी भागवत के बयानों पर मंथन जारी ही था कि संघ के वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेश का बयान ने भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी इंद्रेश कुमार ने जयपुर में कहा कि 2024 में राम राज्य का विधान देखिए, जिनमें राम की भक्ति थी और धीरे-धीरे अहंकार आ गया, उन्हें 240 सीटों पर रोक दिया। उनके इस बयान ने विपक्ष को भी भाजपा पर निशाना साधने का मौका दिया। हालांकि एक दिन बाद वे अपने बयान को बदलते हुए कहा कि देश नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल में दिन दुगनी और रात चौगुनी तरक्की करे। इस तरह भाजपा और आरएसएस के बीच तत्कालिक रूप से खाई नजर आ रही है। इस खाई की वजह भाजपा को संचालित करने में आए बदलाव को भी जिम्मेदार माना जा रहा है। भाजपा जिस तरह से अब दो लोगों के द्वारा चलाई जा रही है, पहले ऐसा नहीं था, कहीं न कहीं ये नया समीकरण संघ को नहीं जंच रहा है। हालांकि इससे पहले भी संघ और भाजपा के रिश्तों में तल्खी दिखी है। 2004 के चुनाव में भाजपा की हार के बाद संघ के तत्कालीन प्रमुख के एस सुदर्शन ने अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की खुलकर आलोचना की थी। बहरहाल कुछ मामलों में मतभेद हो सकता है लेकिन भाजपा औऱ संघ वैचारिक रूप से करीब हैं। फिलहाल भाजपा नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की तलाश में है। नए अध्यक्ष से भी संघ और बीजेपी के मौजूदा रिश्तों का अंदाज़ा लगेगा।

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