Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – जल है तो कल है …

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

सदियों पहले रहीम जैसे कवि ने भविष्य की स्थितियों को भांपते हुए ही कहा होगा-रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून… आज पूरी दुनिया पानी की समस्या से जूझ रही है। जल संकट भविष्य के लिए एक गंभीर चुनौति बन रही है इस समस्या को हल्के में लेना मानवता के लिए घातक बनता जा रहा है।

एक आंकड़े के अनुसार, हर साल कऱीब 12 लाख लोग पीने के पानी की कमी के कारण मर जाते हैं। हर दो मिनट में दूषित जल से होने वाली बिमारियों के चलते एक नवजात की मौत हो जाती है। हम एक ऐसे गंभीर दौर से गुजर रहे हैं जिसके प्रति अभी भी पर्याप्त जागरुकता नजर नहीं आ रही है। करीब दो दशक पहले पानी की अहमियत को लेकर दुनियाभर में मुहिम शुरू हुई, लेकिन इसको लेकर वास्तविक गंभीरता की कमी नजर आ रही है। इसके चलते कई आज दुनिया के कई देश जल संकट की चपेट में है। दक्षिणी अफ्रीका और नाइजीरिया जैसे अफ्रीका महाद्वीप के देशों की हालत बहुत खऱाब है। भारत में भी महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु और झारखंड जैसे राज्य इस संकट से काफ़ी समय से पीडि़त हैं। विश्व भर के पर्यावरणविद यह चेतावनी दे रहे हैं कि निकट भविष्य में जल संसाधनों पर क़ब्ज़े के लिए दुनिया भर में बड़े युद्ध भी हो सकते हैं। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि तीसरा महायुद्ध पानी पर क़ब्ज़े के लिए होगा। हमारे देश में भी कई शहरों में ये समस्य़ा दिनों दिन अपना रूप विकराल कर रही है।

मौजूदा समय में पानी की कमी भी विभिन्न देशों के बीच संघर्ष का कारण बन रही है। 2020 में अमेरिका और मैक्सिको के बीच रियो नदी को लेकर एक बड़ा मसला खड़ा हो गया था, जब मैक्सिको के किसानों ने 1944 के समझौते के तहत अमेरिका को जाने वाले पानी को रोकने के लिए नदी के बांध पर क़ब्ज़ा कर लिया था। इराक़ और ईरान में टिंगरिस नदी के पानी के इस्तेमाल को लेकर काफ़ी तीखे विवाद हैं। निकट भविष्य में यह विवाद दोनों के बीच झड़प का कारण भी बन सकता है। अफ्रीका और दुनिया में सबसे लंबी नदी नील पर इथियोपिया द्वारा बनाई जा रही एक परियोजना के कारण इथियोपिया, मिस्र और सूडान के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं। इथियोपिया नील नदी पर एक बांध बना रहा है, जिसके कारण मिस्र और सूडान में पानी के प्राकृतिक बहाव में रुकावट आ सकती है इसलिए सूडान में हिंसक विरोध प्रदर्शन भी हो चुके हैं। पृथ्वी पर कुल जल का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि कुल जल का 97.3 प्रतिशत खारा जल है और पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल का केवल 2.07 प्रतिशत ही शुद्ध जल है जिसे पीने योग्य माना जा सकता है।

अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो दुनिया के दो अरब लोगों को पीने के लिये स्वच्छ जल नहीं मिल पाता है जिससे उन्हें हैजा, आंत्रशोध आदि जानलेवा बीमारियों के होने का खतरा रहता है। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में सुपेबेड़ा इसका ज्वलंत उदाहरण है जहां पानी के चलते सैकड़ों लोगों को किडनी की बीमारी का सामना करना पड़ा है। यहां करीब 100 से ज्यादा लोगों की तो मौत भी हो चुकी है। इसी तरह बस्तर के बड़े इलाके में फ्लोराइड युक्त पानी के चलते लोग शारीरीक रूप से विकलांग हो रहे हैं। इस तरह हमारे प्रदेश में ही पेयजल संकट का सामना करना पड़ा रहा है। सुपेबेड़ा में पिछले एक दशक से ये समस्या है कई नेताओं ने यहां की तस्वीर बदलने की बात कही लेकिन समस्या आज भी जस की तस बनी हुई है।

इस साल गर्मी की दस्तक के साथ ही सबसे पहले बंगलुरु से भयावह तस्वीर सामने आई, जहां पीने के पानी के साथ ही निस्तारी के लिए भी पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। बेंगलुरु में 14 हजार बोरवेल हैं जिनमें से 6 हजार 900 सूख चुके हैं। जलस्रोतों पर या तो अतिक्रमण हो गया है या वे सूख गये हैं। पिछले वर्ष की तुलना में हिमाचल प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश, त्रिपुरा, राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना और तमिलनाडु सहित कई अन्य राज्यों ने भी कम भंडारण स्तर की सूचना दी है। छत्तीसगढ़ के प्रमुख बांध गंगरेल भी सूखे का शिकार नजर आ रहा है। हालात ऐसे हैं कि दूसरे बांधों से पानी लाकर इसे भरा जा रहा है। गंगरेल के अलावा कई ऐसे बांध हैं जहां पचास फीसदी से कम जलभराव है। ऐसे में अप्रैल और मई के महीने में स्थिति और गंभीर हो सकती है। महानदी के पानी को लेकर छत्तीसगढ़ और ओडिशा सरकार के बीच विवाद पिछले कई सालों से जारी है। जल संकट एक गंभीर समस्या है लेकिन इसके बावजूद सही प्रबंधन नहीं होने से बड़ी मात्रा में वर्षा का जल समुद्र में चला जाता है जबकि यह मानवता के लिए उपयोग में लाया जा सकता है।

इस पर शकेब जलाली कहते हैं-
साहिल तमाम अश्क-ए-नदामत से अट गया
दरिया से कोई शख़्स तो प्यासा पलट गया।।

एक समय जब हम ट्रेनों में सफऱ करते थे, तब साथ में पानी की सुराही लेकर चलते थे। हर स्टेशन पर यात्रियों को पानी पिलाने के लिए रेलवे के कर्मचारी होते थे, जो मुफ़्त में यात्रियों की सुराहियों को भरते थे। स्टेशनों पर भी यात्रियों के पानी पीने की व्यवस्था होती थी। पानी खऱीदकर पीने की तो उस समय किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी, लेकिन आजकल स्टेशनों पर साफ़ पानी न मिलने के कारण अब लोग पानी की बोतलों पर निर्भर हो गए हैं। रेलवे ख़ुद पानी की बोतलों को बेचकर लाखों-करोड़ों का व्यवसाय कर रहा है। इस व्यवसाय में बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां तक आ गई हैं जो बिलकुल मुफ़्त मिलने वाले पानी को 10 रुपए लीटर से लेकर 60-70 रुपए लीटर तक बेच रही है। भारत में बोतलबंद पानी का बाज़ार साल 2021 में 20 हज़ार करोड़ रुपए का था। इसमें केवल बिसलेरी की ही हिस्सेदारी करीब चार से पांच हज़ार करोड़ रुपए है। दिल्ली जैसे महानगरों में जहां पर व्यापक भूगर्भ दोहन से पानी का स्तर बहुत ही नीचे चला गया है, वहां पर भी ढेरों कंपनियां वैध-अवैध रूप से बड़े-बड़े मोटरों से पानी खींचकर स्वच्छ पानी के नाम पर इसे घर-घर पहुंचा रही हैं तथा बोतलबंद करके बेच रही हैं। कमोबेश यही हालात आज देश के सभी नगरों-महानगरों के हो गए हैं। मुनाफे की होड़ में भूमिगत जल बहुत तेज़ी से ख़त्म हो रहा है और अगर यही हालात बने रहे तो भविष्य में स्थितियां और भी भयानक हो सकती है।
क्या करे समुद्र
क्या करे इतने सारे नमक का
कितनी नदियाँ आईं और कहाँ खो गईं
क्या पता
कितनी भाप बनाकर उड़ा दीं
इसका भी कोई हिसाब उसके पास नहीं
फिर भी संसार की सारी नदियाँ
धरती का सारा नमक लिए
उसी की तरफ़ दौड़ी चली आ रही हैं
तो क्या करे
कैसे पुकारे
मीठे पानी में रहने वाली मछलियों के
प्यासों को क्या मुँह दिखाए
कहाँ जाकर डूब मरे
ख़ुद अपने आप पर बरस रहा है समुद्र
समुद्र पर हो रही है बारिश
नमक किसे नहीं चाहिए
लेकिन सबकी ज़रूरत का नमक वह
अकेला ही क्यों ढोए
क्या गुरुत्त्वाकर्षण के विरुद्ध
उसके उछाल की सज़ा है यह
या धरती से तीन गुना होने की प्रतिक्रिया
कोई नहीं जानता
उसकी प्राचीन स्मृतियों में नमक है या नहीं
नमक नहीं है उसके स्वप्न में
मुझे पता है
मैं बचपन से उसकी एक चम्मच चीनी की
इच्छा के बारे में सोचता हूँ
पछाड़ें खा रहा है
मेरे तीन चौथाई शरीर में समुद्र
अभी-अभी बादल
अभी-अभी बफऱ्
अभी-अभी बफऱ्
अभी-अभी बादल।।

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