Editor-in-chief सुभाष मिश्र की कलम से – भागवत की नसीहत

Editor-in-chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

सेवक कौन है, राजनीति में किस तरह व्यवहार हो इन तमाम मुद्दों पर बात करते हुए आज के राजनेताओं को काफी कुछ नसीहत दी। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने लोकसभा चुनाव, देश की राजनीति, राजनीतिक दलों के व्यवहार और जीवन-मूल्यों पर टिप्पणी की। उन्होंने पूर्वोत्तर भारत की स्थिति पर भी सबका ध्यान दिलाया। भागवत ने कहा-चुनाव खत्म हो चुके हैं और अब ध्यान राष्ट्र निर्माण पर केंद्रित होना चाहिए। उन्होंने एनडीए और इंडी एलायंस के चुनावी कैंपेन के तरीकों की भी आलोचना की और नई सरकार और विपक्ष को सलाह भी दी कि चुनाव और शासन दोनों के प्रति नजरिये में बदलाव होना चाहिए।
भागवत ने मणिपुर की स्थिति का जिक्र करते हुए शांति बहाली की अपील की। उन्होंने कहा कि मणिपुर एक साल से शांति की राह देख रहा है, इससे पहले 10 साल शांत रहा और अब अचानक जो कलह वहां उपजी या उपजाई गई, उसकी आग में मणिपुर अभी तक जल रहा है इस पर कौन ध्यान देगा? उन्होंने कहा कि इस समस्या को प्राथमिकता के साथ सुलझाया जाना चाहिए।
मोहन भागवत ने कहा कि जब भी चुनाव होते हैं, मुकाबला जरूरी होता है। इस दौरान दूसरे को पीछे भी धकेलना होता है, लेकिन इसकी एक सीमा होती है। ये मुकाबला झूठ पर आधारित नहीं होना चाहिए। इस बार चुनाव ऐसे लड़ा गया, जैसे ये युद्ध हो, चुनाव में एक दूसरे को लताडऩा, टेक्नोलॉजी का गलत इस्तेमाल और झूठ प्रसारित करना सही बात नहीं है ये अनुचित आचरण है, क्योंकि चुनाव सहमति बनाने की प्रक्रिया है। उन्होंने कहा कि इस बार अनावश्यक रूप से तकनीक का इस्तेमाल कर के झूठ फैलाया गया, सरासर झूठ। क्या तकनीक और ज्ञान का मतलब एक ही है? जिस तरह चीजें हुईं, जिस तरह से दोनों पक्षों ने कमर कस कर हमला किया, इससे विभाजन होगा। सामाजिक और मानसिक दरारें बढ़ेंगी। संघ प्रमुख ने कहा, संसद में दो पक्ष जरूरी है। देश चलाने के लिए सहमति जरूरी है। संसद में सहमति से निर्णय लेने के लिए बहुमत का प्रयास किया जाता है, लेकिन हर स्थिति में दोनों पक्ष को मर्यादा का ध्यान रखना होता है। संसद में किसी प्रश्न के दोनों पहलू सामने आएं, इसलिए ऐसी व्यवस्था बनाई गई है।
मोहन भागवत ने कहा कि विपक्ष को विरोधी पक्ष की जगह प्रतिपक्ष कहना चाहिए। अगर कोई आपसे सहमत नहीं है, तो उसे विरोधी कहना बंद कीजिए। विरोधी के बजाय प्रतिपक्ष कहिए। इस देश के लोग भाई-भाई हैं, इस बात को हमें अपने विचारों और अपने कामों में लाना होगा। लोगों ने अपना जनादेश दे दिया है। हर चीज उसके हिसाब से होनी चाहिए। कैसी होगी? कब होगी? इन सबमें संघ नहीं जाता है, क्योंकि समाज परिवर्तन से ही व्यवस्था परिवर्तन होता है। उन्होंने कहा कि इस बार भी हमने अपने लोकमत जागरण का काम किया है। वास्तविक सेवक मर्यादा का पालन करते हुए चलता है। अपने कर्तव्य को कुशलतापूर्वक करना आवश्यक है। काम करें, लेकिन इसे मैंने करके दिखाया,इसका अहंकार हमें नहीं पालना चाहिए। जो ऐसा करता है। वही असली सेवक है।
भागवत ने कहा कि ऋग्वेद के ऋषियों को मानव मन की समझ थी इसीलिए उन्होंने स्वीकार किया कि 100 प्रतिशत लोगों की राय एक जैसी नहीं हो सकती। इसके बावजूद जब समाज आम सहमति से काम करने का फैसला करता है तो वह सह-चित्त बन जाता है। बाहरी विचारधाराओं के साथ समस्या यह है कि वे खुद को सही होने का एकमात्र संरक्षक मानते हैं। भारत में जो धर्म और विचार आए, कुछ लोग अलग-अलग कारणों से उनके अनुयायी बन गए, लेकिन हमारी संस्कृति को इससे कोई समस्या नहीं है। हमें इस मानसिकता से छुटकारा पाना होगा कि सिर्फ हमारा विचार ही सही है, दूसरे का नहीं।
उन्होंने कहा कि डॉ अंबेडकर ने भी कहा था कि किसी भी बड़े परिवर्तन के लिए आध्यात्मिक कायाकल्प आवश्यक है। हजारों वर्षों के भेदभावपूर्ण व्यवहार के परिणामस्वरूप विभाजन हुआ है, यहां तक कि किसी प्रकार का गुस्सा भी। हमने अर्थव्यवस्था, रक्षा, खेल, संस्कृति, प्रौद्योगिकी जैसे कई क्षेत्रों में प्रगति की है। इसका मतलब यह नहीं है कि हमने सभी चुनौतियों पर विजय प्राप्त कर ली है। पूरा विश्व चुनौतियों से मुक्ति के लिए किसी न किसी रूप में प्रयास कर रहा है और भारत ही इसका समाधान दे सकता है। अपने समाज को इसके लिए तैयार करने के लिए स्वयंसेवक संघ शाखा में आते हैं।

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