0 सन 1982 में जिओ टूरिज्म की सूची में मिला था पहला स्थान
संजय दुबे, विशेष संवाददाता
रायपुर /कोरिया। छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में एक ऐसी प्राकृतिक धरोहर है जो पृथ्वी पर जीवन उत्पत्ति के रहस्यों को करोड़ों वर्षों से अपने गर्भ में समेटे और संजोए हुए है। राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर हुए अनेक शोधों में यह जानकारी सामने आ चुकी है कि हसदेव नदी के तट पर गोंडवाना समुद्री जीवाश्म पार्क में मिले फॉसिल्स 25 से 28 करोड़ वर्ष पुराने हैं।
सन् 1982 में भारतीय भू वैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग द्वारा इसे राष्ट्रीय भूगर्भीय धरोहर घोषित करते हुए इस पार्क को जिओ टूरिज्म की सूची में पहला स्थान दिया गया था। तब से इकतालिस साल बीतने के बाद भी यह अमूल्य धरोहर विकसित नहीं हो सकी और पर्यटकों की पहुंच से दूर बनी हुई है।
जानकारों के मुताबिक यह समुद्री जीवाश्म पार्क पूरी तरह अस्तित्व में आने के बाद अनेक सम्भावनाओं के द्वार खोलेगा और विश्व के भूगर्भीय मानचित्र में छत्तीसगढ़ को नई पहचान देगा। यह देश का पांचवा और एशिया का सबसे बड़ा मैरिन फॉसिल्स हैरिटेज पार्क होगा। यहां मिले करोड़ों साल पुराने समुद्री जीवों के फॉसिल्स साबित करते हैं कि उस समय इस क्षेत्र में समुद्र था। विशेषज्ञों की मानें तो करोड़ों साल पहले यह हिस्सा समुद्र के नीचे था और भूगर्भीय हलचल के बाद ऊपर आया होगा।
फॉसिल्स पर्यटन सर्किट की संभावना
गोंडवाना मैरिन फॉसिल्स पार्क में मौजूद जीवाश्म हसिया-हसदेव नदी के संगम स्थल से लेकर रेलवे पुल के पास तक करीब एक किलोमीटर लम्बे दायरे तक फैले हुए हैं।
कोरिया जिले में कला, संस्कृति और पर्यावरण की दिशा में काम कर रही संस्था सम्बोधन साहित्य एवं कला विकास संस्थान के विभागाध्यक्ष बीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि यहां आसपास के करीब 10 एकड़ क्षेत्र को घेरकर विकसित करने की आवश्यकता है। अरुणाचल प्रदेश के सुबांसरी, झारखंड के राजहरा, पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग और सिक्किम के खेमगांव फॉसिल्स पार्क से जोड़ते हुए भूगर्भीय फॉसिल्स पर्यटन सर्किट बनाये जाने की जरूरत है। इससे देश-विदेश के पर्यटकों को जीवन से संबंधित अमूल्य धरोहरों की जानकारी मिल सकेगी।
वैश्विक व राष्ट्रीय महत्व की धरोहर
इस भूगर्भीय धरोहर की खोज 1954 में हुई थी। सन 1973 में ऑस्ट्रेलिया की राजधानी कैनबरा में आयोजित सिंपोजियम में गोंडवाना मैरिन फॉसिल्स पर महत्वपूर्ण चर्चा हुई। वर्ष 1995 में अमेरिका में प्रकाशित पुस्तक गोंडवाना मास्टर बेसिन ऑफ पेनिनसुलर इंडिया में मनेन्द्रगढ़ फॉसिल्स की विस्तृत जानकारी दी गई। वहीं, वर्ष 1997 में कोलकाता में हुई चौथी अंतर्राष्ट्रीय गोंडवाना सिंपोजियम में भी इस फॉसिल्स पार्क पर महत्वपूर्ण चर्चा हुई। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद सन 2013 में प्रकाशित शोध पत्र साइंस एंड टेक्नोलॉजी जर्नलज् में इस फॉसिल्स पार्क में मौजूद अवशेषों पर विस्तार से रिपोर्ट दी गई। इसके अलावा यहां के फॉसिल्स के सम्बन्ध में गहन जानकारी गैरी डी. मिकेंजी की पुस्तक गोंडवाना सिक्स स्पेक्ट्रोग्राफी, सेडिमेटोलॉजी एंड पैलियोनटोलॉजी में भी मिलती है।
फॉसिल्स को संरक्षित करने की जरूरत
मनेन्द्रगढ़ में मौजूद फॉसिल्स को विशेष तौर से संक्षित करने की जरूरत है, ताकि जिज्ञासु इनसे अवगत हो सकें। वर्ष 2013 की एक शोध रिपोर्ट के अनुसार यहां की करोड़ों वर्ष पुरानी गोंडवाना काल की चट्टानों में गैस्ट्रोपॉड मोलास्का अब भी यथावत पाए गए हैं। इसके अलावा यहां 45 अन्य समुद्री प्रजाति के जीवों के अवशेष मिले हैं। यहां के चट्टानों की संरचना अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में प्राप्त चट्टानों से मिलती -जुलती है।
आठ करोड़ का प्रोजेक्ट, वह भी अधूरा
यहां जीवाश्म पार्क बनाने की दिशा में वन विभाग द्वारा 2015 में कार्य शुरू किया गया और फॉसिल्स वाले हिस्सों की घेराबंदी कर संरक्षित करने का प्रयास किया गया। तब से लेकर अब तक इसपर करीब एक करोड़ रूपये की राशि खर्च की जा चुकी है। फॉसिल्स पार्क का स्वरुप देने के लिए विभाग द्वारा करीब 8 करोड़ रूपये का आधा -अधूरा प्रोजेक्ट भी बनाया गया है। इसमें 6 करोड़ रूपये की राशि एसईसीएल द्वारा दी जाएगी।
फिलहाल यहां प्रवेश द्वार, पाथ वे, पुलिया आदि का निर्माण हो रहा है। पार्क अब तक पर्यटकों के लिए नहीं खोला गया है। छत्तीसगढ़ राज्य जैव विविधता बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक विधिवत उद्घाटन होने के बाद ही इसे पर्यटकों के लिए खोला जायेगा।
गोंडवाना मैरिन फॉसिल्स पार्क के भीतर पैगोड़ा जैसा स्ट्रक्चर बनाने की दिशा में भी काम हो रहा है, ताकि शीशे के अंदर रखे फॉसिल्स को पर्यटक अच्छे से देख और समझ सकें। इसके अलावा व्यू पॉइंट आदि के निर्माण की भी योजना है।
-लोकनाथ पटेल, डीएफओ मनेन्द्रगढ़