Editor in chief सुभाष मिश्र की कलम से-प्रेम की नई मार्केटिंग-सखी बसंत आया

सुभाष मिश्र
बाजार, पूंजी, टेक्नालॉजी, मीडिया और मार्केटिंग के जरिए अब हमारे तीज-त्यौहार तेजी से इवेंट में तब्दील होते जा रहे हैं। ये समय आस्था, श्रद्धा और धर्मपरायणता को महाउत्सव में तब्दील करने का समय है जहां पैसों के साथ लोगों की धार्मिक आस्थाओं और उनके भीतर के डर और मोक्ष प्राप्ति की भावना को भुनाने का भी समय है। प्रेम, सौंदर्य और प्रकृति की महिमा के उत्सव के रूप में प्रकटीकरण का त्यौहार है बसंत उत्सव जिसे बसंत पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। यह ज्ञान और कला की देवी सस्वती की उपासना का भी पर्व है। इसी के साथ बहुत सी जगह पर मदनोत्सव भी मनाया जाता है, जो प्रेम और कामना का उत्सव है अब इसी तर्ज पर वैलेंटाइन डे भी मनाया जाना लगा है।
बाजार की संभावनाओं ने प्रेम को उत्पाद बनाकर प्रस्तुत किया है। बसंत उत्सव मदन उत्सव चूंकि भारत तक सीमित है और इसका बाजार भी बड़ा नहीं ऐसे में वैलेंटाइन डे जो ग्लोबल है और जिसका बाजार बड़ा है। उसके प्रति बाजार का आकर्षण सहज है। प्रेम की नई मार्केटिंग पैकेंजिंग या कहें कि प्रेम को उत्पाद के रूप में तब्दील कर बेचे जाने का यह समय है। प्रेम, अनुभव, एहसास और संवेदना की चीज है किन्तु अब ये बाजार और पूंजी का हिस्सा बन रहा है। ग्रीटिंग कार्ड अब प्रासंगिक हो गए हैं। अब प्रेम को डिजिटल तरीके से व्यक्त करने के लिए इवेंट आयोजित हो रहे हैं।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता है-
सखि, वसंत आया।
भरा हर्ष वन के मन,
नवोत्कर्ष छाया।
किसलय-वसना नव-वय-लतिका
मिली मधुर प्रिय-उर तरु-पतिका,
मधुप-वृंद बंदी—
पिक-स्वर नभ सरसाया।
लता-मुकुल-हार-गंध-भार भर
बही पवन बंद मंद मंदतर,
जागी नयनों में वन—
यौवन की माया।
आवृत सरसी-उर-सरसिज उठे,
केशर के केश कली के छुटे,
स्वर्ण-शस्य-अंचल
पृथ्वी का लहराया।
भारत में विभिन्न पर्वों के माध्यम से प्रेम, सौंदर्य और प्रकृति की महिमा का गुणगान किया जाता है। ये पर्व केवल मौसम

के बदलाव का प्रतीक नहीं होते, बल्कि ये हमारे अंदर प्रेम, सद्भावना और आत्मिक सशक्तिकरण की भावना को भी उजागर करते हैं।
हिन्दू संस्कृति में मदन देव को प्रेम और कामना का देवता माना जाता है। ब्रज क्षेत्र में विशेष रूप से कृष्ण और राधा के प्रेम की महानता को मनाने के लिए मदन उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। मदनोत्सव काम कुंठाओं से मुक्त होने का प्राचीन उत्सव है, जिसमें प्रेम को शारीरिक सुख से ज्यादा मन की भावना से जोड़ा गया है। मदनोत्सव पर पत्नी अपने पति को अति सुंदर मदन यानी कामदेव का प्रतिरूप मानकर उसकी पूजा करती है।
मदनोत्सव का वर्णन कालिदास ने भी अपने ग्रंथों में किया है। ऋतुसंहार के छठे सर्ग में कालिदास ने बसंत का बड़ा ही मनोहारी वर्णन किया है। कालिदास कहते हैं कि इन दिनों कामदेव भी स्त्रियों की मदमाती आंखों की चंचलता में, उनके गालों में पीलापन, कमर में गहरापन और नितंबों में मोटापा बनकर बैठ जाता है। काम से स्त्रियां अलसा जाती हैं। मद से चलना, बोलना भी कठिन हो जाता है। टेढ़ी भौंहों से चितवन कटीली जान पड़ती है।
वसन्तोत्सव एवं मदनोत्सव एक महीने का उत्सव होता था जिसमें युवक-युवतियां अपना मनपसन्द जीवन साथी चुनते थे और जिन्हें समाज पूरी मान्यता प्रदान करता था। प्राचीन भारत में मदनोत्सव के समय रानी सर्वाभरण भूषिता होकर पैरों को रंजित करके अशोक वृक्ष पर बायें पैर से हल्के से आघात करतीं थीं और अशोक वृक्ष पर पुष्प खिल उठते थे। चारों ओर बसंत और कामोत्सव की दुंदुभी बज उठती। मदनोत्सव की परंपरा का प्रचलन हर्षवर्धन के बाद तक सातवीं-आठवीं शताब्दी तक मनाये जाने का पता चलता है। शांतिनिकेतन में आज भी यह दोलोत्सव के रूप में हर वर्ष मनाया जाता है।
शांति निकेतन में मदनोत्सव की परंपरा को पुनर्जीवित करते हुए गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे ‘दोलोत्सवÓ के रूप में मनाना आरंभ किया। दोलोत्सव, जिसे वसंतोत्सव भी कहा जाता है, होली के अवसर पर शांति निकेतन में बड़े उत्साह और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर छात्र-छात्राएं पारंपरिक वस्त्र पहनकर संगीत, नृत्य और रंगों के माध्यम से वसंत ऋतु का स्वागत करते हैं। यह उत्सव शांति निकेतन की एक विशेष पहचान बन गया है, जहां कला, संस्कृति और प्रकृति का संगम देखने को मिलता है।
यह हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है। इसे सरस्वती पूजन और वसंतोत्सव के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन ज्ञान, संगीत और कला की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है। पीले रंग के वस्त्र धारण करने और पीले भोजन (खिचड़ी, मीठे चावल) का विशेष महत्व होता है। इस दिन पतंगबाजी भी कई स्थानों पर की जाती है।
मदनोत्सव कामदेव और रति के पूजन से जुड़ा हुआ उत्सव है, जिसे प्राचीन काल में बसंत पंचमी या होली के आसपास मनाया जाता था। इसे प्रेम, सौंदर्य और आनंद का त्यौहार माना जाता था। राजा भोज के समय में यह महोत्सव बहुत लोकप्रिय था। कई स्थानों पर यह परंपरा विलुप्त हो चुकी है, लेकिन दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में आज भी इसे मनाया जाता है।
वात्सायन का कामसूत्र ग्रंथ न केवल जीवन में काम के महत्व को अत्यंत शिष्ट रूप में निरूपण करता है वरन दुनिया के लिए महत्वपूर्ण भारतीय धरोहर है।
वैलेंटाइन डे, जो पश्चिमी देशों से उत्पन्न हुआ था। अब भारतीय समाज में भी अपनी जगह बना चुका है। हालांकि, यह दिन सेंट वैलेंटाइन के नाम पर मनाया जाता है, इसका उद्देश्य भी प्रेम और रिश्तों का उत्सव मनाना है। भारतीय समाज में प्रेम और रिश्तों का बहुत महत्व है और वैलेंटाइन डे ने इन भावनाओं को व्यक्त करने का एक और अवसर प्रदान किया है। यह दिन हिन्दू धर्म में राधा और कृष्ण के प्रेम की तरह, भावनाओं को एक-दूसरे के प्रति इज़हार करने का दिन बन गया है।
जिस वैलेंटाइन डे का भारत में विरोध होता है, जिसे भारतीय संस्कृति के खिलाफ बताया जाता है, ऐसा ही कुछ पर्व भारतीय ऋषि चार्वाक 600 साल ईसा पूर्व आयोजित करते थे। वैसे तब भी इसका काफी विरोध होता था। राजदरबार में काफी शिकायतें होती थीं, धर्मशास्त्रियों ने इसे रोकने की तमाम कोशिश करते थे लेकिन चार्वाक को कोई फर्क नहीं पड़ता था। प्यार के इस उत्सव को वो और उनके अनुयायी चंद्रोत्सव कहते थे।
बसंत में प्रेम, मस्ती और मादकता की खुशबू के आधार पर प्राचीन समय से वसन्तोत्सव को मदनोत्सव का रूप प्रदान किया गया एवं मदनोत्सव को कामदेव एवं रति की उपासना का पर्व माना गया है। यही वजह है कि वसंत पंचमी पर सरस्वती उपासना के साथ-साथ रति और कामदेव की उपासना के गीत भारत की लोक शैलियों में आज भी मिलते हैं। मदनोत्सव काम कुंठाओं से मुक्त होने का प्राचीन उत्सव है, जिसमें प्रेम को शारीरिक सुख से ज्यादा मन की भावना से जोड़ा गया है।
अभी हाल ही में हमने देखा कि सदियों से होने वाले महाकुंभ की मीडिया के जरिए हाईप बनाई गई और इसे ग्लोबल बनाकर बाजार में ले जाया गया, इसी तरह हमारे धार्मिक स्थलों और तीज त्यौहारों के साथ भी हो रहा है बाजार अब
तय करता है कि इन्हें किस तरह मनाया जाए, हर पर्व के पहले उसे धार्मिक आस्था की चासनी में लपेटकर यह बताने की कवायद भी लगातार होती है। यह मुहूर्त 100 साल या 200 साल बाद आ रहा है। इसी मुहूर्त में सोना खरीदना महोत्सव है। इसी मुहूर्त में अमृत स्नान का महत्व है इससे सीधे मोक्ष की प्राप्ति होगी, मोक्ष के साथ-साथ धन संपदा में भी बढ़ोत्तरी होगी और सारे पाप धूल जाएंगे। बाजार तरह तरह के रिमिक्स रचता है और लोगों की जेब से इसे बनाने पैसे निकालना चाहता है फिर वह बसंत उत्सव हो, मदन उत्सव हो या फिर मौनी अमावस्या हो या दशहरा दीवाली का कोई पर्व हो। बाजार को पैसे चाहिए और पैसे निकालने के लिए जो भी उपाय है, जायज है। पैसे में हुनर पैदा करने की ताकत होती है और हुनरमंद लोग इसका उपयोग बेहतर तरीके से करना जानते हैं।

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