Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से -युद्ध से नहीं निकलता हल

Editor-in-Chief

War does not solve

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र
सुप्रसिद्ध कवयित्री रजनी तिलक की कविता की कुछ पंक्तियां-
मैं जीवन की हथेलियों में
दुलारना चाहती हूँ,
मैं अपने बच्चों को
इंसान बनाना चाहती हूँ,
उस देश में भी मेरी सीमाएँ
अपने बच्चों पर अरमान सजाती होंगी
वह भी उन्हें ‘कुछ बनाने की
ललक लिए दुलारती होंगी।
हिरोशिमा की माँओं की सिसक
अभी बाक़ी है।
ये जंग की तलवार
हमारे सिर से हटा दो
बारूद के ढेर पर
क्यों खड़ी हो हमारी दुनिया?
हम जंग नहीं चाहते,
जीना चाहते हैं
हम विनाश नहीं सृजन चाहते हैं
हम युद्ध नहीं
बुद्ध चाहते हैं।
रूस और यूक्रेन के बीच चल रही जंग को एक साल बीत चुके हैं। शुरुआत में कहा जा रहा था कि रूस जैसे सुपर पॉवर के सामने यूक्रेन 1 सप्ताह भी नहीं टिक पाएगा, लेकिन जिस तरह रूस के खिलाफ अमेरिका और पश्चिम के देशों ने यूक्रेन को हथियार और अन्य सहायता देकर उसे मैदान में डटा कर रखा है। दरअसल ये युद्ध जितना खिंच रहा है उससे रूस की आर्थिक स्थिति कमजोर होते चली जा रही है। अमेरिका और उसके सहयोगी देशों की यही चाल भी है और इसी रणनीति के तहत कहीं न कहीं यूक्रेन को युद्ध की विभिषिका में झोंक दिया गया है। इस युद्ध की भयानकता का अंदाजा आप इस तरह लगा सकते हैं- अलग-अलग रिपोर्ट्स के अनुसार, एक साल के अंदर पांच लाख से ज्यादा लोग दोनों तरफ से मारे जा चुके हैं। नॉर्वे चीफ ऑफ डिफेंस की रिपोर्ट के अनुसार, इस युद्ध में 22 जनवरी 2023 तक यूक्रेन के तीस हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। एक लाख बीस हजार से ज्यादा यूक्रेनियन जवान अपनी जान गंवा चुके हैं। वहीं, तमाम रिपोर्ट्स ये दावा करती हैं कि यूक्रेन से ज्यादा रूसी सैनिकों की मौत हुई है। अमेरिका के आंकड़े बताते हैं कि 24 फरवरी 2022 से 16 फरवरी 2023 तक दो लाख से ज्यादा रूसी सैनिक या तो मारे जा चुके हैं या फिर यूक्रेन में बंधक बनाए गए हैं। इसके अलावा करीब सात हजार से ज्यादा रूस का साथ देने वाले यूक्रेनियन अलगाववादी भी मारे जा चुके हैं। दोनों तरफ से दो लाख से ज्यादा जवान और नागरिक लापता हैं।
रूस अब तक यक्रेन के मैरियूपोल, दोनेत्स्क, खेरसॉन, लुहांस्क पर पूरी तरह से कब्जा कर चुका है। युद्ध के बाद रूस ने माइकोलाइव और खारकीव पर भी कब्जा कर लिया था। हालांकि, बाद में यूक्रेनी सेना ने रूस को जोरदार टक्कर देते हुए इन दोनों राज्यों पर वापस कब्जा जमा लिया। अभी भी कई राज्यों में रूस और यूक्रेन के बीच आक्रामक युद्ध जारी है।
युद्ध, कोई नहीं चाहता। यहां तक कि वे फौजी जो युद्ध लड़ते हैं वे भी यही चाहते हैं कि बेवजह शांति भंग न हो, अमन चैन बरकरार रहे। क्योंकि युद्ध होते हैं तो फिर कुछ भी और बाकी नहीं रह जाता। मानवता, प्रकृति सबकुछ युद्ध की कालिख के पीछे छुप जाती है। युद्ध अपने पीछे छोड़ जाते हैं ऐसे जख्म जो आने वाली कई पीढिय़ों तक दर्द देते हैं। बड़ी तादात में बच्चे बेघर या अनाथ हो जाते हैं, घरों और दुकानों के साथ साथ औरतों को भी लूटा खसोटा जाता है, बारूद की गंध और रसायनों से निकले जहरीले अवशेष सालों तक जमीन, हवा और पानी में घुल कर नुकसान पहुंचाते रहते हैं। यानी युद्ध किसी का भी फायदा तो नहीं ही करता। यहां तक कि युद्ध जीतने वाले के हिस्से भी उसकी जीत से ज्यादा लाशों के हिसाब, आर्थिक बदहाली और नुकसान ही आता है।
रूस-युक्रेन युद्ध शुरू होने के कुछ दिन बाद ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में कमोडिटी की कीमतों में उछाल आई। कच्चा तेल 140 डॉलर प्रति बैरल के करीब जा पहुंचा जो 2008 के बाद कच्चे तेल के दामों का सबसे ऊंचा स्तर था। गैस के दामों से लेकर स्टील, एल्युमिनियम, निकेल से लेकर सभी कमोडिटी के दाम आसमान छूने लगे। इसका असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर देखा गया। वैश्विक महंगाई आसमान छूने लगी। युद्ध के चलते सप्लाई चेन पूरी तरह से बाधित हो गई। यूक्रेन पर हमला बोलने के बाद अमेरिका और यूरोपीय देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया जिससे रूस को आर्थिक तौर से नुकसान पहुंचाया जा सके।
एक साल बीत चुका है दोनों तरफ जान-माल की भारी क्षति हो चुकी है। लेकिन दोनों देश फिलहाल सुलह या पीछे हटने को तैयार नजर नहीं आ रहे हैं। एक महाशक्ति के रूप में रूस की छवि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कमजोर पड़ी है।
युद्ध के इस हालात पर निलोत्पल की ये कविता याद आती है-
युद्ध केवल युद्ध नहीं होता
अंत में अधिक हिंसक
अधिक अमानवीय बन जाता है
वह बाज के पंजों में दबी
नन्ही चिडिय़ा का आर्तनाद है
सरहद से जो लौटा नहीं
उस प्रतीक्षा में पथराई आंखें हैं
जो डूब जाएंगी
मैं इनकार करता हूं
दुनिया के सारे युद्धों से
युद्ध करुणा का अंत है।।

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