Durga Puja symbol of Bengali culture : छत्तीसगढ़ की न्यायधानी कहे जाने वाले बिलासपुर समेत पूरा प्रदेश अब ‘पूजो’ के मूड में आने लगा नजर

Durga Puja symbol of Bengali culture :

Durga Puja symbol of Bengali culture :  छत्तीसगढ़ की न्यायधानी कहे जाने वाले बिलासपुर समेत पूरा प्रदेश अब ‘पूजो’ के मूड में आने लगा नजर

 

Durga Puja symbol of Bengali culture :  बिलासपुर ! शक्ति एवं साधना का पर्व तथा बंगाली संस्कृति की परिचायक दुर्गा पूजा को अब छह दिन शेष रह गये हैं और छत्तीसगढ़ की न्यायधानी कहे जाने वाले बिलासपुर समेत पूरा प्रदेश अब ‘पूजो’ के मूड में नजर आने लगा है ।

पारंपरिक हर्षोल्लास और श्रद्धाभाव से मनायी जाने वाली पांच दिवसीय दुर्गापूजा 20 अक्टूबर षष्ठी के दिन शुरु होकर 24अक्टूबर विजयादशमी तक चलेगी।

दुर्गापूजा पर नये कपड़े पहनने का बंगाली परिवारों में आलम यह है कि गरीब से गरीब परिवार भी त्योहार के इन चार दिन नए कपड़े पहनता है।संपन्न वर्ग तो पहर के हिसाब से भी अपना लुक बदलते नजर आते हैं। इसी परंपरा के तहत नये कपड़ों के अलावा आभूषणों तथा सौंदर्य प्रसाधनों की खरीदारी और आदान-प्रदानअब अपने अंतिम चरण में है।

Durga Puja symbol of Bengali culture :  दुर्गापूजा की खरीदारी को लेकर पिछले माह से शबाब पर रही लोगों की खुमारी उतर चुकी है और मॉल और बाजारों में साड़ियां, धोती-कुर्ते, आभूषण, सौंदर्य प्रसाधन,मिठाइयों एवं उपहार सामग्रियों की दुकानों से बंगाली परिवारों की भीड़ छंट चुकी है तथा अब उनके कदम दुर्गापूजा के आनंदोत्सव के लिए पूजा पंडालों की ओर बढ़ने और ढाक की थाप पर धूनी धुलूचि लिए नृत्य की लय के साथ झूमने को आतुर हैं। यह समूचे परिवार और समाज के लिए समारोह एवं खुशियों के आदान-प्रदान का मौका होता है और यही वह समय होता है जब लोग व्यस्तताओं से परे एक दूसरे से मिलने जुलते हैं तथा त्योहार की खुशियों की साझेदारी करते हैं।

Durga Puja symbol of Bengali culture :  दुर्गापूजा का उत्साह शरद ऋतु के आगमन से पहले ही शुरू हो जाता है।दुर्गापूजा की उल्टी गिनती शुरू होने के साथ ही शहर के विभिन्न इलाकों में पूजा पंडाल बनाने के काम में तेजी आ गयी है। कारीगरों और शिल्पकारों ने हजारों की संख्या में पंडालों को खड़ा करने तथा दुर्गा प्रतिमाओं को विभिन्न आयामों में गढ़ने का काम शुरू कर दिया है। ऐतिहासिक स्थलों अथवा तात्कालिक घटनाक्रमों को प्रदर्शित करते भव्य एवं आकर्षक पूजा पंडाल और नयनाभिराम झांकिया दर्शनार्थियों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं। बाहर से आए लोग अक्सर समझ भी नहीं पाते हैं कि ये कोई स्थायी स्थल नहीं है बल्कि शिल्प की संरचना है।

पूजा समितियों की ओर से पंडालों और प्रतिमाओं की प्रतिकृति के जरिए हर वर्ष अनूठे विषयों पर अपनी रचनात्मकता का परिचय देते हैं। इसके अलावा लोकप्रियता और लोगों को आकर्षित करने की होड़ प्रत्येक साल सजावट के कामों में नये-नये थीम का प्रयोग किया जाता है। इन मनोहरी स्थल सज्जा और झांकियों के दर्शन के लिए दुर्गापूजा के चार दिन शहर की सड़कों पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है।

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दुर्गापूजा एवं नवरात्र के मौके पर पर गुजराती समाज के पारंपरिक डांडिया का आयोजन भी एक प्रमुख आकर्षण होता है जिसमें सभी समुदाय के लोग शामिल होते हैं। मां दुर्गा की भक्ति एवं स्तुति को केंद्र में रखते हुये पूरे उल्लास के माहौल में महिला-पुरुष एवं बच्चे भी डांडिया नृत्य में हिस्सा लेते हैं।

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