buildings : अधिकारी के बंगलों में वीवीआईपी रेनोवेशन, इधर कर्मचारी जर्जर भवनों में रहने को मजबूर

dilapidated buildings अधिकारी के बंगलों में वीवीआईपी रेनोवेशन, इधर कर्मचारी जर्जर भवनों में रहने को मजबूर

buildings :अधिकारी के बंगलों में वीवीआईपी रेनोवेशन, इधर कर्मचारी जर्जर भवनों में रहने को मजबूर

 buildings: भानुप्रतापपुर के पूर्व वनमंडल का मामला

( buildings) भानुप्रतापपुर। पूर्व वनमंडल के डीएफओ जाधव कृष्ण बिना अनुमति के अपने नए बंगले को तोड़फोड़ कर 50 लाख से अधिक कि राशि से महाराष्ट्र के कारीगर बुलवाकर भवन में वीवीआईपी रेनोवेशन करवा रहे हैं,

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(buildings )वही वन विभाग के अन्य कर्मचारी वर्षो से जर्जर मकान में अपनी व परिवार की जान जोखिम में डालकर पॉलीथिन लगाकर रहने को मजबूर है।

इनके द्वारा भवन मरम्मत के लिए कई बार आवेदन दिया गया लेकिन आज पर्यन्त तक भवन की मरम्मत नही हो पाई है। बड़े साहब अपनी शान-ओ-शौकत के लिए

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(buildings) सभी नियम कायदे को दर किनार करते हुए मनचाहे ढंग से अपने बंगले को रेनोवेट करवा लेते हैं जबकि निचले स्तर के कर्मचारियों के लिए बजट आभाव का बाहना बना लिया जाता हैं।

( buildings) इसका उदाहरण पूर्व वनमंडल भानुप्रतापपुर में देखा जा सकता है।

ज्ञात हों कि कुछ माह पूर्व स्थानांतरण पर पूर्व वनमंडल में आये नये डीएफओ जाधव कृष्णा साहब को बंगले का इंटिरियर पसंद नहीं आया। उन्होंने बेवजह तोड़फोड़ कर 50 लाख से अधिक खर्च करते हुए बंगले में वीवीआईपी रेनोवेशन करवा दिया। जबकि बिना उच्च अधिकारियों के आदेश के बंगले में तोड़फोड़ कर भवन का स्वरूप नही बदला जा सकता,

( buildings) लेकिन उनके द्वारा नियमो की अवहेलना करते हुए मन मुताबिक काम करवा लिया गया। बता दे कि डीएफओ साहब लगभग दो माह वन विभाग के विश्राम गृह में रूके रहे उसी बीच भवन को तोड़फोड़ कर नए रूप रंग में ढाल दिया गया। इस कार्य के लिए छत्तीसगढ़ नही बल्कि महाराष्ट्र से कारीगर बुलाये गए।

( buildings )सूत्रों से पता चला है कि बंगले में उपयोग किये गए सामग्री भी महाराष्ट्र से लाई गयी हैं। इससे यह भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्थानीय स्तर पर सामग्री क्रय करने से कहीं यह बात उजागर न हों जाये इसलिए ऐसा किया गया।

विभागीय तौर से इतने बड़ी रकम के लिए न कोई बजट है और न ही स्वीकृति आदेश और न कोई अधिकारी अपने वेतन से खर्च करते, क्योंकि कोई भी बड़े अधिकारी अधिकतम दो से तीन साल ही एक जगह पर रुकते है इसके बावजूद लाखो खर्च किये जाना समझ से परे है। सूक्ष्मता से जांच की जाय तो भवन में खर्च की गई लाखो की राशि कहा से की गई है उजागर हो सकती है।

(buildings )वन विभाग के छोटे कर्मचारीयों के मकान में 10 वर्षो से अधिक समय से भवन की मरम्मत नही कराई गयी है, जबकि इसके लिए प्रति वर्ष बजट स्वीकृत होती हैं। विभाग के एक कर्मचारी ने बताया कि चार साल पहले से भवन मररमत के लिए विभाग के अधिकारीयों को आवेदन दिया जा रहा है, तीन माह पूर्व भी आवेदन दिया गया था

लेकिन आज पर्यन्त तक कोई मररमत नही कराया गया। फिलहाल छत के ऊपर व नीचे पॉलीथिन लगाकर काम चला रहे है। बारिश के दिनों में कई जगह से पानी टपकता है, सीपेज होने से छत से सीमेंट का गिरना व करेंट का खतरा हर हमेशा बना रहता है। खिड़की व दरवाजा भी टूट चुके है।

( buildings )एक तरह से भवन में रहना चुनौती से कम नही है, पर यहां रहना भी हमारी मजबूरी है। कर्मचारी ने बताया कि प्रति वर्ष शासन से भवन मरम्मत के नाम से राशि जारी होती है लेकिन यह राशि से कभी भी भवन के मरम्मत नही किया जाता है।
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