धीरेंद्र शास्त्री के पत्रकारों संबंधी बयान पर विवाद, प्रेस की स्वतंत्रता पर सवाल

दुर्ग। कथावाचक धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के पत्रकारों को “खुजली” से जोड़कर सवाल पूछने की टिप्पणी ने देशव्यापी बहस छेड़ दी है। इस बयान को असंवेदनशील एवं लोकतांत्रिक मर्यादाओं के विरुद्ध माना जा रहा है।

पत्रकारिता का मूल उद्देश्य सत्ता एवं प्रभावशाली व्यक्तियों से सवाल पूछकर जनता तक सच पहुंचाना है। प्रेस वार्ता में सवाल पूछना संविधान प्रदत्त कर्तव्य का निर्वहन है। आलोचकों के अनुसार, सवालों को “खुजली” कहना पेशे का अपमान एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर चोट है।

विडंबना यह है कि सार्वजनिक व्यक्ति अपने संदेश पहुंचाने के लिए मीडिया का सहारा लेते हैं, लेकिन असहज सवालों पर व्यंग्यात्मक एवं अपमानजनक भाषा का प्रयोग करते हैं। इससे संदेश जाता है कि केवल प्रशंसा स्वीकार्य है, सवाल नहीं। लोकतंत्र में सवाल जवाबदेही तय करने का सशक्त माध्यम हैं। आस्था के नाम पर आलोचना से बचना लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करता है।

बुद्धिजीवी एवं पत्रकार संगठनों का कहना है कि प्रभावशाली व्यक्तियों के शब्दों का सामाजिक प्रभाव होता है। भाषा की मर्यादा एवं संवेदनशीलता आवश्यक है। पत्रकारों का अपमान संवाद संस्कृति को कमजोर करता है। यह मामला प्रेस स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आजादी एवं लोकतांत्रिक संवाद से जुड़ा है। सवाल पूछना लोकतंत्र की सेहत का संकेत है। सम्मान एकतरफा नहीं होता तथा सवालों को स्वीकार करना परिपक्व समाज की पहचान है।

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