Congress government भानुप्रतापपुर का चुनाव हाईटेक, साख बचाने में लगी है प्रदेश कांग्रेस सरकार

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Congress government चारामा–भानुप्रतापपुर का चुनाव हाईटेक होता जा रहा है। मुख्य चुनाव के पूर्व शायद यह छग का आखिरी उपचुनाव होगा। तभी भाजपा हो या कांग्रेस सभी ने अपनी पूरा ताकत इस चुनाव मे झोक दी है।

Congress government वही आदिवासी समाज के प्रत्याशी के मैदान में उतरने से यह चुनाव किस पाले में जा रहा है, अभी तक समझ से परे है। लेकिन चुनाव में भाजपा कांग्रेस के पुरे छग के कोने कोने के नेताओं के चारामा और भानुप्रतापपुर के एक एक गाँव में ठहरने से यह समझ आ रहा है कि इस चुनाव का महत्व दोनो पार्टियों के लिए कितना अधिक है।

Congress government इस चुनाव में सरकार अपनी साख बचाने में लगी हुई है। तो भाजपा इस चुनाव में जीतकर शायद पुरे छग में यह संदेश देना चाहेगी कि आम जनता मे वर्तमान सरकार के खिलाफ कही न कही आक्रोश है। वही आदिवासी समाज का इस चुनाव में उतरने से भाजपा और कांग्रेस दोनों की मुश्किले बढ़ गई है। लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि आदिवासी समाज के प्रत्याशी का एक एक वोट भाजपा से ज्यादा काग्रेस को नुकसान पहुंचायेगा।

बीते चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा के प्रत्याशी को लगभग 27000 वोट से हराया था। कांग्रेस प्रत्याशी आदिवासी वोट क्षेत्र में शुरू से तगड़ा रहा है। भानुप्रतापपुर विधानसभा में लगभग 60 प्रतिशत आदिवासी मतदाता है और शेष 40 प्रतिशत एससी, ओबीसी और समान्य वर्ग के है। लेकिन एससी, ओबीसी और समान्य वर्ग के जो वोट कांग्रेस और भाजपा को जाते थे उनमें ज्यादा हेर फेर या बदलवा की उम्मीद नहीं है। लेकिन आदिवासी समाज के वोट चुनाव में बदलाव ला सकते है !

Congress government आदिवासी मतदाता के अच्छे मतदान के चलते कांग्रेस पलड़ा हमेशा से विधानसभा चुनाव मे भारी रहा है। और जब से आरक्षण समाप्ति का मुद्दा गरमाया और आदिवासी समाज से प्रत्याशी खड़ा किया गया तब से कांग्रेस की मुश्किले बढ़ने लगी।

क्योकि ऐसा माना जा रहा है कि आदिवासी प्रत्याशी के पक्ष में जो वोट पड़ेगे उनमें भाजपा और कांग्रेस दोनो पार्टी का नुकसान होगा लेकिन ज्यादा नुकसान कांग्रेस पार्टी को होगा अब भाजपा भी अंदर ही अंदर मन से यह चाह रही होगी ,कि निर्दलीय प्रत्याशी अकबर को अधिक से अधिक पोट ओर खीचे, हालाकि आदिवासी समाज उनके निर्दलीय प्रत्याशी के पक्ष में अधिक वोट पड़ने से उनकी जीत को सुनिश्चित बता रहा है और इससे इंकार भी नही किया जा सकता है, लेकिन बीन अन्य तीन वर्गों के सहयोग के चुनाव को एक ही समाज के वोट से जीत पाना आसान नहीं है।

वही भाजपा और काग्रे की रैलियों में उन्हीं आदिवासी समाज के लोगों की संख्या भी बहुतायत में दिखाई दे रही है। यही आदिवासी समाज पूर्व विधायक मनोज सिंह मडावी व समाज के लिए किये गये कार्यों से खुश है और उन्हें आज भी अपने बीच महसुस कर रहा है। यही भाजपा के बन्दानंद के सरल और पूर्व अनुभव का भी मतदाता मुल नही है। और दोनो भले ही पार्टी के चिन्ह से लड़ रहे हो लेकिन है तो आदिवासी ही।

ऐसे मे निर्दलीय प्रत्याशी अकबर कोरोम समाज मतदाताओं को आरक्षण और अन्य मुद्दे से कैसे अपनी ओर खीच पायेंगे ,यह उनके लिए बेहद चुनौती है। लेकिन उपचुनाव जिसे सरकार की ना चुनाव कहाँ जाता है आने वाले दिनों में मुख्यमंत्री की ताबडतोड़ लगातार रैलिया भी है। वह मतदाताओं पर क्या असर करती है वही भाजपा के प्रदेश बड़े बड़े नेता क्या चमत्कार दिखा पाते है। यह तो 05 दिसम्बर के मतदान पर ही पता चल पायेगा।

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