Concern for democracy लोकतंत्र के लिए चिंता

Concern for democracy

concern for democracy लोकतंत्र के लिए चिंता

Concern for democracy  बाइडेन ने कुछ समय पहले चेतावनी दी थी कि अमेरिकी लोकतंत्र खतरे में है। अब लगभग यही बात मैक्रों ने कही है। उन्होंने जिन लोकतांत्रिक देशों के संकट का जिक्र किया, उनमें अमेरिका शामिल है।

Concern for democracy अगर जो बाइडेन और इमैनुएल मैक्रों कहें कि पश्चिम का उदार लोकतंत्र खतरे में है, तो इस बात को अवश्य ही गंभीरता से लेना चाहिए। दोनों ऐसे देश के राष्ट्रपति हैं, जिनके बारे में समझा जाता है कि आधुनिक लोकतंत्र को स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। बाइडेन ने कुछ समय पहले चेतावनी दी थी कि वहां होते तीखे ध्रुवीकरण के कारण अमेरिकी लोकतंत्र खतरे में है।

Concern for democracy  अब लगभग यही बात मैक्रों ने कही है। उन्होंने भी जिन लोकतांत्रिक देशों के संकट का जिक्र किया, उनमें अमेरिका शामिल है। मैक्रों ने कहा कि वर्षों से अस्थिर करने की जारी कोशिशों के कारण ये स्थिति पैदा हुई है। अपनी ताजा अमेरिका यात्रा के दौरान दिए एक टीवी इंटरव्यू में उन्होंने ये चेतावनी दी। जब अमेरिकी लोकतंत्र के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि यहां की स्थिति हम सबके लिए चिंता का कारण है।

Concern for democracy मैक्रों ने कहा- मेरी राय है कि हमने 18वीं सदी के बाद जो कुछ निर्मित किया, वह आज दांव पर लग गया है। इन बात से आज बहुत कम लोग असहमत होंगे। लेकिन इस हाल की वजह क्या है, जब इस प्रश्न पर चर्चा होती है, तो मतभेद उभर कर सामने आ जा सकते हैँ।

एक आलोचना यह है कि बाइडेन और मैक्रों जैसे नेता जब लोकतंत्र के खतरे में होने की बात करते हैं, तो उनका मतलब यथास्थिति के लिए पैदा हुए खतरे से होता है। जबकि यह खतरा इसलिए पैदा हुआ है, क्योंकि यथास्थिति लोगों की आकांक्षाओँ को पूरा करने में नाकाम रही है। यह स्थिति लोगों की रोजमर्रा की समस्याओं से निजात दिलाना तो दूर, बल्कि उन्हें अधिक गंभीर बनाने का कारण बन गई है।

तो लोग ज्यादातर धुर दक्षिणपंथ और कहीं-कहीं वामपंथ के ध्रुव पर गोलबंद हो रहे हैं। मैक्रों इस वर्ष अप्रैल में दूसरे कार्यकाल के लिए फ्रांस के राष्ट्रपति चुने गए थे। लेकिन जून में वहां हुए संसदीय चुनावों में उनकी पार्टी बहुमत हासिल नहीं कर पाई। इन चुनावों में वामपंथी और धुर दक्षिणपंथी नेताओं को बड़ी सफलता मिली। ऐसा ट्रेंड कई देशों में दिखा है। तो समाधान क्या है, नेताओं को उस पर ध्यान देना चाहिए। वरना, ऐसी चेतावनियों से कुछ हासिल नहीं होगा।

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