नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन अब किसी साइंस फिक्शन की कहानी नहीं, बल्कि धरती के सामने खड़ी गंभीर हकीकत है। तापमान में लगातार बढ़ोतरी से ग्लेशियर पिघल रहे हैं और समुद्र का स्तर तेजी से बढ़ रहा है। इसी कारण मालदीव, किरिबाती और तुवालु जैसे द्वीप देशों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है।
कितना गंभीर है खतरा
ऑस्ट्रेलियाई थिंक टैंक इंस्टीट्यूट फॉर इकनॉमिक्स एंड पीस की एक रिसर्च के अनुसार, अगले 25 वर्षों में दुनिया भर में करीब 1.2 अरब लोग जलवायु शरणार्थी बन सकते हैं। इनमें कई ऐसे भी होंगे जिनका पूरा देश ही डूबने की कगार पर है।
सबसे ज्यादा प्रभावित देश
- मालदीव: समुद्र तल से कुछ ही ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां के कई द्वीप डूबने की आशंका में हैं।
- किरिबाती: प्रशांत महासागर का यह छोटा देश पहले से ही तटीय कटाव और बाढ़ से जूझ रहा है।
- तुवालु: समुद्र का बढ़ता स्तर इसे लगातार संकट में डाल रहा है।
- मार्शल आइलैंड और बांग्लादेश का हिस्सा: दोनों ही जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ की मार झेल रहे हैं।
खतरे की जड़
धरती का बढ़ता तापमान और ग्लोबल वार्मिंग के चलते समुद्र का स्तर हर साल ऊपर जा रहा है। समुद्री तूफानों की आवृत्ति भी बढ़ गई है। छोटे द्वीपीय देशों के पास न तो ऊंचे पहाड़ हैं और न ही बड़े भूभाग, इसलिए जल स्तर बढ़ते ही वे डूबने लगते हैं।
कानूनी पहलू
अगर पूरा देश ही समुद्र में समा जाए तो सवाल उठता है कि उसके नागरिकों की कानूनी स्थिति क्या होगी। क्या वे देशविहीन (Stateless) माने जाएंगे या अंतरराष्ट्रीय कानून में इसके लिए कोई विशेष व्यवस्था होगी? यह मुद्दा वैश्विक बहस का विषय बन चुका है।
तुवालु की डिजिटल पहल
तुवालु ने इस संकट से निपटने के लिए कदम उठाए हैं। देश ने ऑस्ट्रेलिया के साथ समझौता किया है जिसके तहत उसके नागरिकों को ऑस्ट्रेलिया में बसाया जा रहा है। साथ ही, कानूनी रूप से तुवालु का अस्तित्व बरकरार रहेगा, भले ही उसका भूभाग पूरी तरह डूब जाए। यही कारण है कि तुवालु दुनिया का पहला डिजिटल देश बनने की तैयारी कर रहा है।