छत्तीसगढ़ 1 नवंबर 2025 को अपना 25 वां जन्मदिन मना रहा हैं। रजत जयंती वर्ष पर छत्तीसगढ़ सरकार जश्न की तैयारी में जुटी हुई हैं। इससे पहले आत्ममंथन का भी मौका है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने राज्य के अफसरों के साथ तीन दिवसीय मैराथन समीक्षा बैठक का सिलसिला शुरू किया। जिसमें सरकार ने अपराध, साइबर क्राइम, ट्रैफिक समेत पर्यावरण पर चर्चा की। कॉन्फ्रेंस की खास बात ये रही कि सरकार ने हाथियों और मानव के बीच द्वंद की चर्चा, इस कॉन्फ्रेंस में की। इससे साफ जाहिर होता है कि सरकार वन्य जीवों और उसकी रक्षा के लिए प्रतिबंध हैं। हाल में कुछ जिलों में बढ़े अपराध को लेकर सीएम सख्त दिखें और अफसरों पर नाराजगी भी जताई। साथ ही इसमें जल्द सुधार करने की सख्त हिदायत भी दिया। मुख्यमंत्री ने साफ किया कि प्रदेश में अपराध अब बिल्कुल बर्दाश्त नहीं हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा हैं कि क्या अफसर सीएम के निर्देश का सख्ती से पालन करते हुए, अपने अपने जिलों में होने वाले अपराध पर लगाम लगाएंगे।
पहले दिन सीएम ने कलेक्टर्स तो दूसरे दिन एसपी की क्लास लीं। जिसमें अफसरों को जमकर फटकार भी लगाई गई। जिसने पूरे प्रशासनिक ढांचे में हलचल मचा दी। जिसमें अफसरों के कार्यप्रणाली की बारीकी से समीक्षा की। इस दौरान सरकार ने साफ संदेश दिया कि सुशासन केवल घोषणा से नहीं, अनुशासन और जवाबदेही से आता है।
मुख्यमंत्री साय ने स्पष्ट संदेश दिया कि, अपराधियों में कानून का भय और जनता के प्रति सुरक्षा की जवाबदेही हो। जिससे जनता में सुरक्षा का अहसास हो और पुलिसिंग के प्रति भरोसा जनता में जागे। यह वाक्य इस पूरे संवाद का मूल मंत्र बनकर उभरा। उन्होंने अफसरों को चेतावनी दी कि कानून-व्यवस्था के मामले में किसी भी प्रकार की लापरवाही कतई बर्दाश नहीं किया जाएगा और लापरवाही को ‘प्रशासनिक उदासीनता’ मानी जाएगा। ऐसे में सरकार ने सख्त कार्रवाई की चेतावनी भी दी। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि जिन जिलों में कलेक्टर और एसपी के बीच समन्वय मजबूत है, वहां न केवल अपराधों पर नियंत्रण हुआ है बल्कि सरकारी योजनाओं के बेहतर परिणाम भी सामने आए हैं। हालांकि, महासमुंद, धमतरी और राजनांदगांव के पुलिस अफसर को फटकार भी मिली है। क्योंकि हाल में ही तीनों जिलों में अपराध का ग्राफ तेजी से बढ़ा हैं।
बैठक में अपराध नियंत्रण, मादक पदार्थों की तस्करी, सडक़ सुरक्षा, साइबर अपराध और वन-प्रशासन तक को लेकर समीक्षा की गई। मुख्यमंत्री ने नशाखोरी को अपराध का जड़ बताया और कहा कि, नशे का व्यापार केवल कानून-व्यवस्था को नहीं, बल्कि सामाजिक सुरक्षा का भी प्रश्न है। उन्होंने एनडीपीएस एक्ट के तहत दर्ज मामलों में तय समय सीमा में कार्रवाई सुनिश्चित करने के अलावा सीमावर्ती जिलों में निगरानी बढ़ाने और एनकॉर्ड अभियान के माध्यम से राज्यव्यापी कार्रवाई के निर्देश दिए।
साय ने स्पष्ट किया कि, नशे के खिलाफ केवल पुलिस नहीं बल्कि समाज को भी जागरूक बनाना होगा। उन्होंने युवाओं के बीच ‘नशा मुक्त छत्तीसगढ़’ के लिए जनजागरूकता अभियान चलाने की बात कही। कानून-व्यवस्था के समानांतर मुख्यमंत्री ने सडक़ सुरक्षा को लेकर भी सख्त निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि, हेलमेट, सीट बेल्ट, नशे में वाहन चलाने जैसी लापरवाहियों पर ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति अपनाई जाए। ब्लैक स्पॉट की पहचान कर सुधार कार्य किए जाएं और रात 10 बजे के बाद लाउडस्पीकर या डीजे के उपयोग पर रोक हो। सडक़ पर आवारा पशुओं से हो रही दुर्घटनाओं को रोकने के लिए भी विशेष अभियान चलाने को कहा गया। मुख्यमंत्री का यह संदेश साफ था ‘सुरक्षा, कानून का पहला चिह्न है।’
डिजिटल युग में अपराधों का चेहरा बदल चुका है। इस चुनौती को पहचानते हुए मुख्यमंत्री ने साइबर क्राइम पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि , ‘हर दिन साइबर अपराध के तरीके बदल रहे हैं, इसलिए पुलिस को निरंतर तकनीकी प्रशिक्षण दिया जाए।’ साथ ही साइबर हेल्पलाइन नंबर के व्यापक प्रचार और जनजागरूकता पर बल दिया गया। मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया कि, हर जिले में साइबर अपराधों से बचाव के लिए अभियान चलाया जाए ताकि आम नागरिक ऑनलाइन ठगी या फिशिंग जैसे अपराधों से सुरक्षित रह सकें।
बैठक में मुख्यमंत्री ने एक और संवेदनशील विषय जिसमें माओवादियों के पुनर्वास पर भी चर्चा की गई। उन्होंने कहा कि आत्मसमर्पित माओवादियों को न केवल सुरक्षा बल्कि सम्मानजनक जीवन और आजीविका का अवसर देना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। उन्होंने अफसरों को निर्देश दिया कि पुनर्वास नीति को जन-आस्था और विश्वास के साथ लागू करें, ताकि कोई भी व्यक्ति फिर से हिंसा की राह न चुने।
तीसरे सत्र में मुख्यमंत्री ने वन विभाग और डीएफओ से संवाद किया। जिससे साफ जाहिर होता है कि साय सरकार ‘सुशासन’ को केवल कानून-व्यवस्था तक सीमित नहीं रख रही, बल्कि इसे आजीविका, पर्यावरण और ग्राम विकास से जोड़ रही है। तेंदूपत्ता संग्राहकों को 7 से 15 दिनों के भीतर भुगतान, भुगतान की एसएमएस सूचना व्यवस्था और संपूर्ण प्रक्रिया को कंप्यूटरीकृत करने की पहल की घोषणा इसी दिशा में एक बड़ा कदम है।
वनों से आजीविका को सशक्त करने के लिए लघु वनोपज आधारित स्टार्टअप, वन धन केन्द्रों का सुदृढ़ीकरण और छत्तीसगढ़ हर्बल एवं संजीवनी उत्पादों को ब्रांडिंग के प्रयासों पर भी चर्चा हुई। मुख्यमंत्री ने कहा कि ‘गांवों की अर्थव्यवस्था तभी मजबूत होगी, जब जंगल की संपदा का मूल्य वहां के लोगों को मिले। बैठक में औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा देने की योजना पर भी विस्तृत विमर्श हुआ। धमतरी, मुंगेली और जीपीएम जिलों में इस दिशा में प्रयोगात्मक प्रयासों का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री ने इसे परम्परागत ज्ञान और आधुनिक आजीविका का संगम बताया। औषधीय पादप बोर्ड के सीईओ ने इस क्षेत्र में संभावनाओं की जानकारी दी और कृषि-उद्यानिकी विभाग के सहयोग से इसे विस्तार देने की बात कही।
वन विभाग के सत्र में ’मानव-हाथी संघर्ष एक अहम विषय रहा। ‘गज संकेत एलीफेंट ऐप’ के जरिये हाथियों की वास्तविक समय में ट्रैकिंग की पहल ने इस दिशा में आशा की नई किरण जगाई है। मुख्यमंत्री ने बताया कि इस ऐप के सफल उपयोग के कारण अब छह अन्य राज्यों में भी इसे लागू किया जा रहा है। 14 वनमंडलों में इसका उपयोग शुरू हो चुका है और जल्द ही पूरे प्रदेश में इसका विस्तार होगा। ऐप की सबसे बड़ी विशेषता है कि कम नेटवर्क वाले क्षेत्रों में भी यह काम करता है, जिससे ग्रामीणों को क्षेत्रीय भाषाओं में समय पर सूचना मिल सकेगी और मानव-हाथी संघर्ष से होने वाले जान-माल के नुकसान को कम किया जा सकेगा।
इसी बैठक में मुख्यमंत्री ने ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान की भी चर्चा की। जो अब तक 6 करोड़ से अधिक पौधारोपण का रिकॉर्ड बना चुका है। उन्होंने कहा कि इस अभियान ने पर्यावरण संरक्षण को भावनात्मक जुड़ाव के साथ जोड़ा है। इसके साथ ‘माइक्रो अर्बन फॉरेस्ट’ और ‘इको टूरिज्म’ को स्थानीय रोजगार से जोडऩे पर भी जोर दिया गया। राज्य के 240 नैसर्गिक पर्यटन केंद्रों से लगभग दो हजार परिवार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आजीविका कमा रहे हैं, जो बताता है कि सुशासन अब केवल कार्यालय की फाइलों में नहीं, बल्कि जंगलों, सडक़ों और गांवों तक पहुँच चुका है।
तीन दिनों की इस समीक्षा बैठक के बाद यह कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री विष्णु देव साय एक ऐसे प्रशासनिक ढांचे की नींव रख रहे हैं जहाँ कानून का राज केवल दफ्तरों में नहीं बल्कि जनता के विश्वास में बसे। कांग्रेस इस पूरी कवायद को ‘डायलॉग पढ़वाने की नौटंकी’ कह रही है और अवैध रेत उत्खनन को लेकर सरकार पर सवाल उठा रही है, लेकिन यह भी सच है कि मुख्यमंत्री साय ने उन मुद्दों को सीधे प्रशासनिक एजेंडे में रखा है जिन पर वर्षों से केवल बयानबाजी होती रही है।
मोदी की ‘गारंटी’ की तर्ज पर अब छत्तीसगढ़ की ‘जवाबदेही’ तय हो रही है।
एक नवंबर को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रायपुर में राज्य स्थापना दिवस समारोह में राज्य के दो साल का लेखा-जोखा देखेंगे, तब यह समीक्षा बैठकें एक तैयारी भर नहीं होंगी, बल्कि यह बताएंगी कि छत्तीसगढ़ अब जंगल राज नहीं, बल्कि कानून के राज की ओर बढ़ रहा है।