CG News: महाराष्ट्र मंडल रंगभूमि द्वारा शिखंडी और कविता के माध्यम से ‘किन्नर व्यथा’ का हुआ मंचन…

रायपुर: रायपुर, 24 दिसंबर 2024: साहित्य और समाज का संबंध गहरा और अडिग होता है। समाज की सच्चाई को साहित्य अपने भीतर समेटकर उसे प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करता है। इसी संबंध में टीम रंगभूमि का योगदान समाज की संवेदनाओं और विमर्शों को जीवन्त रूप देने में अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा है। इस कड़ी में, 24 दिसंबर को स्थानीय वृंदावन हॉल, सिविल लाइंस में महाराष्ट्र मंडल रंगभूमि ने अपनी बारहवीं और वर्ष 2024 की अंतिम प्रस्तुति ‘किन्नर व्यथा’ का आयोजन किया।

इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य समाज के हाशिए पर पड़े थर्ड जेंडर समुदाय की जीवन स्थितियों और संघर्षों को मुख्यधारा में लाना था। कार्यक्रम में लेखक भरत वेद द्वारा लिखित नाटक ‘शिखंडी’ का मंचन किया गया, जिसमें थर्ड जेंडरों के संघर्ष और उनकी मानसिक स्थिति को बेहद प्रभावशाली तरीके से दर्शाया गया। साथ ही, कवयित्रियाँ विद्या राजपूत और निशा देशमुख ने अपनी कविता के माध्यम से थर्ड जेंडर की व्यथा को जीवंत किया।

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नाटक के माध्यम से लेखक भरत वेद ने किन्नरों की कठिनाइयों, उनके अधिकारों की लड़ाई और समाज में उन्हें मिलने वाले असमान व्यवहार को गहरे और संवेदनशील तरीके से प्रस्तुत किया। वहीं, विद्या राजपूत और निशा देशमुख की कविताओं में थर्ड जेंडर समुदाय की पीड़ा और संघर्ष को विशेष रूप से उजागर किया गया। इस प्रस्तुति ने समाज को यह सोचने पर मजबूर किया कि किस तरह किन्नरों को अपनी जगह बनाने में असंख्य मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

2014 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने किन्नरों को ‘थर्ड जेंडर’ का दर्जा प्रदान किया था, और तब से यह समुदाय अपने अधिकारों को लेकर सजग और जागरूक हो गया है। अब वे अपनी पहचान और अधिकारों के लिए सक्रिय रूप से संघर्ष कर रहे हैं, और समाज में समानता की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। इस कार्यक्रम के माध्यम से रंगभूमि ने इस समुदाय की मानसिकता, संघर्ष, और बदलाव की इच्छा को समाज के सामने रखा।

कार्यक्रम का निर्देशन लोकेश साहू ने किया, और इसके मंचन में लगभग बीस कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति दी। इस प्रस्तुति की परिकल्पना आचार्य रंजन मोड़क ने की थी। आयोजकों ने इस बात पर जोर दिया कि किन्नरों के जीवन में बदलाव तभी संभव है, जब समाज उनके अधिकारों और गरिमा को स्वीकार कर उन्हें सम्मान प्रदान करे।

टीम रंगभूमि की यह प्रस्तुति न केवल थर्ड जेंडर समुदाय के संघर्ष को उजागर करने में सफल रही, बल्कि समाज को यह संदेश भी दिया कि केवल सामूहिक प्रयासों और एकजुटता से हम किसी भी समुदाय को मुख्यधारा में सम्मान प्रदान कर सकते हैं।

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