Bilaspur News : झोलाछाप से इलाज कराने ग्रामीण मजबूर
Bilaspur News : बिलासपुर। जिले में 500 से ज्यादा झोलाछाप सक्रिय हैं, जो इलाज के नाम पर ग्रामीणों के जीवन से खिलवाड़ कर रहे है। इन्हें रोकने के लिए इनके खिलाफ कोई ठोस कदम भी नहीं उठाया जा रहा है, क्योंकि जिले के ग्रामीण क्षेत्र में सही स्वास्थ्य सुविधा दिलाने में स्वास्थ्य विभाग फेल हो गया है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिले में पांच सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 44 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 194 उप स्वास्थ्य केंद्र हैं। लेकिन यहां के लिए सिर्फ 63 जूनियर डाक्टर के साथ महज 11 एमडी डाक्टर पदस्थत हैं। वहीं 194 उप स्वास्थ्य केंद्र को आरएचओ (रुरल हेल्थ आफिसर) के सहारे छोड़ दिया गया है। ये भी अक्सर इन केंद्रों से नदारत ही मिलते हैं। साफ है कि ग्रामीणों को सही स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल पा रहा है और बीमार होने की दशा में उन्हें क्षेत्र के झोलाछाप के पास जाकर इलाज कराने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है।
जिले के कोटा ब्लाक में मलेरिया का कहर चल रहा है। इससे अब तक चार बच्चों की मौत हो गई है। जांच में यह बात सामने आई है कि बच्चों का इलाज झोलाछाप कर रहे थे। इससे जिला प्रशासन सकते में आ गया। झोलाछाप से इलाज याने सीधे तौर पर मरीजों की जान से खिलवाड़ करना होता है। लेकिन इसमें यह बात भी सामने आई है कि स्वास्थ्य विभाग के पास इतने चिकित्सक नहीं है कि वे ग्रामीण क्षेत्र के स्वास्थ्य केंद्रों में सेवा दे सकें। हालांकि ग्रामीण क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधा देने के लिए बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर बनाया गया है, बावजूद इन केंद्रों में डाक्टर पदस्थ नहीं किया जा सक रहा है। सेटअप पर गौर करें तो पांच सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के लिए 35 सीनियर डाक्टर होने चाहिए, लेकिन सिर्फ 11 डाक्टर ही कार्यरत हैं। इसी तरह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में 64 डाक्टर के सेटअप में 63 डाक्टर पदस्थत हैं। वहीं 194 उप स्वास्थ्य केंद्रों में डाक्टर ही नहीं है।
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Bilaspur News : वहां की जिम्मेदारी आरएचओ को सौंप दिया गया है, जिन्हें सिर्फ सर्दी-बुखार की दवा देने व इंजेक्शन व स्लाइन चढ़ाना का काम दिया जाता है। वही ज्यादातर में ये आरएचओ रोजाना पहुंचते नहीं है। ऐसे में जब भी कोई ग्रामीण बीमार पड़ता है, तो वह उप स्वास्थ्य केंद्र में जाता है। यहां पर अधिकतर समय आरएचओ मिलते ही नहीं है। ऐसे में ग्रामीणों को आसपास के झोलाछाप के पास इलाज कराने जाना पड़ता है।
इसी वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में झोलाछाप फल-फूल रहे हैं और बीच-बीच में इनके इलाज से मरीज की मौत हो जाने के मामले भी सामने आते रहते हैं। साफ है कि ग्रामीण क्षेत्र में चिकित्सकीय सुविधा होने के बाद भी चिकित्सकों का न होना और यदि हैं तो सही तरीके से काम न करने की वजह से ग्रामीणों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल रहा है। एक तरह से यह स्वास्थ्य विभाग की नाकामी है, इसी वजह से झोलाछापों का धंधा जोरों पर चल रहा है।