बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम 1939 से जुड़े एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा कि यदि पति लगातार दो वर्षों तक पत्नी का भरण-पोषण नहीं करता है तो पत्नी को तलाक का अधिकार प्राप्त हो जाता है, भले ही वह मायके में रह रही हो।
यह मामला कोरिया जिले के मनेंद्रगढ़ का है। 30 सितंबर 2015 को मुस्लिम रीति-रिवाज से विवाह हुआ था। विवाह के बाद पत्नी मात्र 15 दिन ससुराल में रही तथा पारिवारिक विवाद के कारण मई 2016 से मायके में रहने लगी। पत्नी ने आरोप लगाया कि पति ने उसके नाम की 10 लाख रुपये की एफडी तुड़वाने का दबाव बनाया। इस आधार पर उसने घरेलू हिंसा, धारा 498ए तथा भरण-पोषण से संबंधित मामले दर्ज कराए थे। फैमिली कोर्ट ने इन तथ्यों पर विवाह विच्छेद का आदेश पारित किया था।
हाईकोर्ट ने सुनवाई में स्पष्ट किया कि मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम 1939 की धारा 2(ii) में कहीं यह शर्त नहीं है कि पत्नी पति के साथ ही रह रही हो। कोर्ट ने रिकॉर्ड के आधार पर माना कि 2016 से लगभग आठ वर्षों तक पत्नी को कोई भरण-पोषण नहीं प्रदान किया गया, जो तलाक का पर्याप्त आधार है।
हालांकि हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के उस निष्कर्ष को खारिज कर दिया जिसमें पति पर पत्नी की संपत्ति हड़पने या उसके कानूनी अधिकारों में बाधा डालने का आरोप स्वीकार किया गया था। कोर्ट ने कहा कि केवल एफडी तुड़वाने की मांग का आरोप पर्याप्त नहीं है, जब तक यह साबित न हो कि वास्तव में संपत्ति का दुरुपयोग किया गया।
अंततः हाईकोर्ट ने भरण-पोषण न देने के आधार पर तलाक के आदेश को बरकरार रखा तथा स्पष्ट संदेश दिया कि मुस्लिम महिलाओं के भरण-पोषण के अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती।