Bhopal gas tragedy भोपाल गैस त्रासदी : दर्द का लरजता दरिया

Bhopal gas tragedy

Bhopal gas tragedy पंकज चतुर्वेदी

Bhopal gas tragedy दो दिसम्बर को जब भोपाल में दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी की बरसी पर लोगों की आंखें नम थीं, नगर निगम उस तालाब से सिंघाड़े की फसल नष्ट कर रहा था, जो यूनियन कार्बाइड कारखाने की सीमा में बना है।

हालांकि 2014 में ही सुप्रीम कोर्ट आदेश दे चुका था कि इस तालाब को लेकर यथास्थिति रहे। फिर भी यहां मौत की फसल बोई जाती रही। बताया गया है कि इस तालाब में कारखाने के जहरीले अपशिष्ट की 1.7 लाख टन मात्रा डुबोई गई थी। मामला अकेले इस तालाब का नहीं है। शहर की जमीन-हवा और पानी में इतना जहर जज्ब है कि यहां की पुश्तें इसका कुप्रभाव झेलेंगी। दुनिया की उस सर्वाधिक भयावह रासायनिक त्रासदी की याद से बदन सिहर उठता है, और पता नहीं यूनियन कार्बाइड कारखाने से रिसी गैस अभी और कितने दशकों तक लोगों की जान लेगी। बीते 38 सालों में गैस पीडि़तों की लड़ाई स्वास्थ्य के लिए गौण हो गई। आपराधिक मुकदमे की तो किसी को परवाह नहीं, भोपाल को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए पूरा खोद दिया गया है, लेकिन इसके सीने में दफन मिथाइल आईसोसाइनाइट और जहरीले रसायनों का जखीरा अभी भी लोगों को तिल-दर-तिल खोखला कर रहा है।

Bhopal gas tragedy दो-तीन दिसम्बर, 1984 की रात भोपाल में अमेरिकी कारखाने यूनियन कार्बाइड से रिसी मिथाइल आईसो साईनाइड गैस ने लगभग चार हजार लोगों को सोते से उठने का मौका भी नहीं दिया। जो बच गए, भाग लिए, वे कई शारीरिक व मानसिक रोगों की गिरफ्त में आ गए। शहर के हवा-पानी में जहर घुला और आनुवांशिकी स्तर पर आने वाली पीढिय़ों तक को खोखला कर गया। अनुमान है कि अभी तक गैस प्रभावित 20 हजार लोग दम तोड़ चुके हैं। मौत का सिलसिला जारी है, और औसतन हर हफ्ते पांच लोग उस जहर से मर रहे हैं।

अभी तक इस बात के शोध सतत जारी हैं कि गैस का असर कब तक और कितनी पीढिय़ों तक रहेगा। विभिन्न चिकित्सकों का यह भी कहना है कि उस रात मिक यानी मिथाइल आईसो साईनाइड के अलावा कई अन्य गैस भी रिसी थीं, तभी इतने विषम हालात बने।

Bhopal gas tragedy ये अन्य गैस कौन सी थीं, इसकी जांच अभी तक नहीं हो पाई है। कारखाने में पड़े कई टन जहरीले अपशिष्ट का निबटारा नहीं होना एक नई त्रासदी को जन्म दे रहा है। यहां आथरे डाय क्लोरो बैंजीन, कार्बन टेट्रा क्लोरेट, पारा आदि खुले में पड़ा है। कारखाने से निकले कचरे को तो इसके शुरू होने के साल 1969 से ही जमीन में दबाया जा रहा था और अब यही शहर की 42 कॉलोनियों के भूजल और जमीन पर बस गया है। यहां दो तरह का कचरा है, जो भोपाल की लाखों की आबादी को तिल-दर तिल मौत दे रहा है-एक तो गोदाम में पड़ा 340 मीट्रिक टन रसायन व अपशिष्ट और दूसरा कारखाना परिसर के 68 एकड़ में 21 गड्ढों में दफनाया गया अकूत जहरीला अवशेष। बारिश के साथ ये जहर भूमिगत जल में घुलते रहे हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सॉलजी के वैज्ञानिकों ने कहा है कि कारखाने की करीबी कालोनियों में हैंडपंप के पानी से कैंसर व यकृत की खराबी होना तय है।

Bhopal gas tragedy  इस कचरे के कारण यूनियन काबाइड के कई किमी. क्षेत्रफल के भूजल में डायक्लोरो बैंजीन, पलीन्यूक्लियर एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन्स, मरकरी जैसे लगभग 20 रसायन घुल गए। इनके कारण फेफड़े, यकृत, गुर्दे के रोग हर घर में हुए। भारतीय विष विज्ञान शोध संस्थान की एक रिपोर्ट बताती है कि यूनियन कार्बाइड कारखाने के कचरे का सर्वाधिक और दूरगामी नुकसान आर्गनोक्लोरिन से हो रहा है। इसकी मात्रा भूजल के अधिकांश नमूनों में निर्धारित से कई सौ गुना अधिक मिली है। यह रसायन लंबे समय तक अपनी विषाक्तता बनाए रखता है, और इसके शरीर में जमा होने से मस्तिक, जिगर, गुर्दे के साथ-साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता, अंत:स्त्राव, प्रजनन और अन्य तंत्रों पर पड़ता है। कोई 43 कोलोनियों में अब यह जहर हर घर में पहुंच गया है। एक बार सुप्रीम कोर्ट ने कहा तो कुछ बस्तियों में नल से पानी दिए जाने लगा लेकिन जब उस जल की जांच हुई तो पता चला कि 70 फीसदी जल नमूने में सीवर मिला था जिससे फीकल कोलीफर्म बैक्टीरिया तय मानकों से 2400 गुना अधिक हो गया। अंतरराट्रीय संस्था यूनेप का प्रस्ताव था कि भारत सरकार चाहे तो वह इस जहरीले कूड़े को हटा सकती है, लेकिन सरकार ने इस कार्य में किसी विदेशी एजेंसी के सहयेग से इंकार कर दिया।

Bhopal gas tragedy  झीलों का शहर कहलाने वाले भोपाल में दर्द के दरिया की हिलौरें यहीं नहीं रुकी हैं, 68 फीसदी लोग ब्लड प्रेशर के शिकार हैं। युवाओं और महिलाओं में हार्ट अटैक का आंकड़ा आसमान की तरफ है। बढ़ते गुस्से, अधीरता का कारण मिक के खून में घुलने से हार्मोन में आए बदलाव को माना जा रहा है। शहर में छोटी-छोटी बातों पर खूनी जंग हो जाना मनोवैज्ञानिक बीमारी बन गया है। गैस के कारण शरीर काम नहीं कर रहा है, भौतिक सुखों की लालसा बढ़ी है, और आय न होने की कुंठा या धन कमाने के शॉर्ट-कट का भ्रम लोगों को जेल की ओर ले जा रहा है। यह भी सरकारी रिपोर्ट में दर्ज है कि हर साल आम लोगों की अपेक्षा गैस पीडि़तों की बीमारियों के कारण मौत का आंकड़ा 28 प्रतिशत अधिक है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि सामान्य लोगों की अपेक्षा गैस पीडि़तों में बीमारियां 63 फीसदी अधिक होती हैं।

Bhopal gas tragedy  कई शोधों में यह बात सामने आ चुकी है कि भोपाल में महिलाओं में असमय माहवारी और अत्यधिक रक्तस्रव की समस्या के साथ जन्म लेने वाले बच्चों की शारीरिक और मानसिक वृद्धि में रुकावट आम समस्या हो गई है। खांसी, सीने में दर्द, आंखों में जलन, हाथ-पैर में दर्द, आम हो गए हैं। बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है, जो कुछ मीटर चलने पर ही हांफने लगते हैं। कोरोना वायरस के प्रभाव ने कमजोर फैफड़ों वाले भोपालियों को गहरी चोट पहुंचाई है। कोविड भले ही टल गया हो लेकिन आज भी गैस के शिकार लोगों के फैफड़ों पर इसका असर कम नहीं हो रहा है। सरकार के राहत शिविर, रोजगार योजनाएं और अस्पताल बंद हो चुके हैं। भले ही यहां के बड़े तालाब की लहरें दूर तक लहराती हों लेकिन लेगों के दिल में तो गैस से उपजे दर्द का ही दरिया लरजता है।

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