निजी क्षेत्र के दुग्ध पैकेजिंग यूनिटों को बेचना पड़ रहा
राजकुमार मल
भाटापारा। बेतरह ठंडा है दूध। इतना ठंडा है कि उत्पादन का 50त्न हिस्सा निजी क्षेत्र क दुग्ध पैकेजिंग यूनिट को बेचना पड़ रहा है। हद तो तब, जब दही, मट्ठा, पनीर और खोवा बनाने पर भी विवशता में रोक लगाई जा रही है क्योंकि मांग इनमें भी नहीं है।

ऑफ सीजन नहीं, टोटल ऑफ सीजन जैसी स्थितियों से रूबरू हो रही है जिले की डेयरियां। कल्पना से बाहर थी दूध की मांग में 50त्न की गिरावट की। दही, घी, पनीर बनाकर विक्रय करने जैसें उपाय भी काम नहीं आ रहे हैं क्योंकि इनमें भी मांग नहीं के बराबर ही है। जबकि खोवा से पहले ही दूरी बना ली है।
उत्पादन ज्यादा, मांग कम
उत्पादन 17000 से 20000 लीटर प्रति दिन। मांग महज 8000 से 10000 लीटर रोज। शेष दूध कम कीमत में निजी क्षेत्र की दुग्ध पैकेजिंग करने वाली ईकाइयों को बेचने के लिए विवश है डेयरियां। घरेलू मांग इसलिए ज्यादा बढऩे के आसार नहीं है क्योंकि नियमित उपभोग की मात्रा लगभग तय है। इसके अलावा प्रति लीटर कीमत 50 रुपए को भी ज्यादा मान रहा है यह क्षेत्र।
शांत हैंं यह सामग्रियां
पनीर, दही, मट्ठा और शुद्ध घी का बाजार बेहद शांत है। थोड़ी बहुत मांग पनीर में बनी हुई है लेकिन यह मांग डेयरियों के लिए उत्साहजनक नहीं मानी जा रही जबकि दही में मांग के लिए अभी 2 से 3 माह का इंतजार करना होगा डेयरियों को। ऐसे में जैसा चल रहा है वैसा चलने दो जैसे सूत्र वाक्य पर अमल करने के लिए विवश हैं डेयरियां।
खोवा अब नहीं
स्वीट कॉर्नरों की मांग खोवा में बिल्कुल नहीं रही क्योंकि पैक्ड खोवा और पैक्ड मिठाइयों की खरीदी को उपभोक्ता ज्यादा प्राथमिकता दे रहे हैं। इसलिए खोवा बनाने और बेचने जैसे काम से डेयरियां हाथ खींच रही हैं। माना जा सकता है कि डेयरियों के लिए खोवा अब भरोसेमंद विकल्प नहीं रहा।