Bhanupratappur चैत्र शुक्ल पक्ष अष्टमी को बताई गई कंस वध,रुकमणी विवाह की कथा

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Bhanupratappur चैत्र शुक्ल पक्ष अष्टमी को बताई गई कंस वध,रुकमणी विवाह की कथा

 

Bhanupratappur  भानुप्रतापपुर। चैत्र शुक्ल पक्ष अष्टमी मंगलवार को श्री राधा कृष्ण, भगवान भोलेबाबा का पूरा विधिविधान से दशा विधि से महास्नान, सायंकाल को भगवान का देव दर्शन हेतु

नगर भ्रमण (शोभा यात्रा) निकाला गया। भक्तजन शोभा यात्रा में झूमते नज़र आये। सातवे दिवस पर श्रीमद्भागवत कथा में व्यासपीठ से पंडित अविनाश महराज ने श्री महारास प्रसंग,श्री कृष्ण मधुरागमन,कंस वध,रुकमणी विवाह की कथा बताई गई।

संगीतमय श्रीमद् भागवत ज्ञान कथा के सातवे दिन व्यास पीठ से पंडित अविनाश महाराज ने श्री कृष्ण व गोपी की प्रेम को आत्मा व परमात्मा का प्रेम बताया गया। श्रीमद्भागवत को भगवान श्रीकृष्ण का सम्पूर्ण स्वरुप बताया गया । पांचवा स्कन्द को भगवान का हृदय स्थल, एवं स्कन्द का पांच अध्याय की कथा को भगवान का पंचधाम बताया गया।

मंगलवार की कथा में कंस वध व रुकमणी विवाह के प्रसंगों का चित्रण किया। बाल व्यास ने बताया कि भगवान विष्णु के पृथ्वी लोक में अवतरित होने के प्रमुख कारण थे, जिसमें एक कारण कंस वध भी था।

कंस के अत्याचार से पृथ्वी त्राह त्राह जब करने लगी तब लोग भगवान से गुहार लगाने लगे। तब कृष्ण अवतरित हुए। कंस को यह पता था कि उसका वध श्रीकृष्ण के हाथों ही होना निश्चित है। इसलिए उसने बाल्यावस्था में ही श्रीकृष्ण को अनेक बार मरवाने का प्रयास किया, लेकिन हर प्रयास भगवान के सामने असफल साबित होता रहा। 11 वर्ष की अल्प आयु में कंस ने अपने प्रमुख अकरुर के द्वारा मल्ल युद्ध के बहाने कृष्ण, बलराम को मथुरा बुलवाकर शक्तिशाली योद्धा और पागल हाथियों से कुचलवाकर मारने का प्रयास किया, लेकिन वह सभी श्रीकृष्ण और बलराम के हाथों मारे गए और अंत में श्रीकृष्ण ने अपने मामा कंस का वध कर मथुरा नगरी को कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिला दी। कंस वध के बाद श्रीकृष्ण ने अपने माता-पिता वसुदेव और देवकी को जहां कारागार से मुक्त कराया, वही कंस के द्वारा अपने पिता उग्रसेन महाराज को भी बंदी बनाकर कारागार में रखा था, उन्हें भी श्रीकृष्ण ने मुक्त कराकर मथुरा के सिंहासन पर बैठाया।

 

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उन्होंने बताया कि रुकमणी जिन्हें माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। वह विदर्भ साम्राज्य की पुत्री थी, जो विष्णु रूपी श्रीकृष्ण से विवाह करने को इच्छुक थी। लेकिन रुकमणी जी के पिता व भाई इससे सहमत नहीं थे, जिसके चलते उन्होंने रुकमणी के विवाह में जरासंध और शिशुपाल को भी विवाह के लिए आमंत्रित किया था, जैसे ही यह खबर रुकमणी को पता चली तो उन्होंने दूत के माध्यम से अपने दिल की बात श्रीकृष्ण तक पहुंचाई और काफी संघर्ष हुआ युद्ध के बाद अंततः श्री कृष्ण रुकमणी से विवाह करने में सफल रहे।

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