क्षत्रिय धर्म की रक्षा से जुड़ी है यह जयंती
सहस्रार्जुन जयंती आज यानी 08 नवम्बर 2024 को है। यह जयंती क्षत्रिय धर्म की रक्षा और क्षत्रियों के उत्थान के लिए मनाई जाती है। कार्तिक शुक्ल के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को सहस्रबाहु जयंती मनाई जाती है। भागवत पुराण में भगवान विष्णु व लक्ष्मी द्वारा सहस्रबाहु महाराज की उत्पत्ति की जन्मकथा का वर्णन है। साथ ही सहस्त्रबाहु के बल और शौर्य की गाथाएं भी लिखी गई हैं। सहस्त्रबाहु ने भगवान की कठोर तपस्या करके 10 वरदान प्राप्त किए थे। इसके बाद उन्होंने चक्रवर्ती सम्राट की उपाधि धारण कर ली। कुछ स्थानों पर सहस्त्रबाहु को भगवान विष्णु का 24वां अवतार माना गया है, हालांकि इस कथन को प्रमाणित करने के लिये हमें किसी ग्रंथ का कोई संदर्भ नहीं मिलता। चंद्रवंशी क्षत्रियों में हैहय वंश सर्वश्रेष्ठ उच्च कुल का क्षत्रिय माना गया है। चन्द्र वंश के महाराजा कृतवीर्य के पुत्र होने के कारण उन्हें कार्तवीर्य-अर्जुन भी कहा जाता है। उनका जन्म महाराज हैहय की 10वीं पीढ़ी में माता पद्मिनी के गर्भ से होना बताया जाता है। सहस्रबाहु जन्म नाम एकवीर तथा सहस्रार्जुन भी है। सहस्रबाहु भगवान दत्तात्रेय के भक्त थे और दत्तात्रेय की उपासना करने पर उन्हें सहस्र भुजाओं का वरदान मिला था इसीलिए उन्हें सहस्रबाहु अर्जुन के नाम से भी जाना जाता है। महाभारत, वेद ग्रंथों तथा कई पुराणों में सहस्रबाहु की कई कथाएं पाई जाती हैं।
कौन थे भगवान दत्तात्रेय के भक्त सहस्रबाहु अर्जुन
पौराणिक ग्रंथों एवं पुराणों के अनुसार कार्तवीर्य अर्जुन के हैहयाधिपति, सहस्रार्जुन, दषग्रीविजयी, सुदशेन, चक्रावतार, सप्तद्रवीपाधि, कृतवीर्यनंदन, राजेश्वर आदि कई नाम होने का वर्णन मिलता है।
भगवान सहस्त्रबाहु अर्जुन को जीतने की अभिलाषा के साथ रावण भी आया था नर्मदा के तट पर
– वाल्मीकि रामायण के अनुसार, जब राक्षसराज रावण ने सभी राजाओं को जीत लिया, तब वह महिष्मती नगर (वर्तमान में महेश्वर) के राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन को जीतने की इच्छा से उनके नगर गया।
– उस समय सहस्त्रबाहु अर्जुन अपनी पत्नियों के साथ नर्मदा नदी में स्नान कर रहे थे। रावण को जब पता चला कि सहस्त्रबाहु अर्जुन नगर में नहीं है तो वह युद्ध की इच्छा से वहीं रूक गया।
– नर्मदा की जलधारा देखकर रावण ने वहां भगवान शिव की पूजा करने का विचार किया। जिस स्थान पर रावण भगवान शिव की पूजा कर रहा था, वहां से थोड़ी दूर सहस्त्रबाहु अर्जुन अपनी पत्नियों के साथ जलक्रीड़ा में मग्न था।
– सहस्त्रबाहु अर्जुन की एक हजार भुजाएं थीं। उसने खेल ही खेल में नर्मदा का प्रवाह रोक दिया, जिससे नर्मदा का पानी तटों के ऊपर चढ़ने लगा। जिस स्थान पर रावण पूजा कर रहा था, वह भी नर्मदा के जल में डूब गया।
– नर्मदा में आई इस अचानक बाढ़ के कारण को जानने रावण ने अपने सैनिकों को भेजा। सैनिकों ने रावण को पूरी बात बता दी। रावण ने सहस्त्रबाहु अर्जुन को युद्ध के लिए ललकारा। नर्मदा के तट पर ही रावण और सहस्त्रबाहु अर्जुन में भयंकर युद्ध हुआ।
– अंत में सहस्त्रबाहु अर्जुन ने रावण को बंदी बना लिया। जब यह बात रावण के पितामाह (दादा) पुलस्त्य मुनि को पता चली तो वे सहस्त्रबाहु अर्जुन के पास आए और रावण को छोड़ने के लिए निवेदन किया। सहस्त्रबाहु अर्जुन ने रावण को छोड़ दिया और उससे मित्रता कर ली। सहस्रार्जुन जयंती क्षत्रिय धर्म की रक्षा और क्षत्रियों के उत्थान के लिए मनाई जाती है। पुराणों के अनुसार प्रतिवर्ष सहस्रबाहु जयंती कार्तिक शुक्ल सप्तमी को दीपावली के ठीक बाद मनाई जाती है। इसका हिंदू धर्म में बहुत महत्व है।