दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में स्पष्ट किया है कि SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 198 के प्रावधानों का उपयोग किसी बैंक को उसके वैध मॉर्गेज (बंधक) अधिकारों के प्रयोग से रोकने के लिए नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि यदि बैंक ने कानून के तहत संपत्ति को गिरवी रखकर ऋण प्रदान किया है, तो ऐसे लेनदेन को इस अधिनियम की धाराओं के तहत "अत्याचार" नहीं कहा जा सकता।

मामला: एक्सिस बैंक बनाम राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग
यह मामला एक्सिस बैंक लिमिटेड द्वारा दायर याचिका से जुड़ा है, जिसमें बैंक ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) की उस कार्रवाई को चुनौती दी थी, जिसमें आयोग ने बैंक अधिकारियों को SC/ST एक्ट के तहत व्यक्तिगत रूप से तलब किया था।
याचिका की सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की पीठ ने कहा कि SC/ST एक्ट की धारा 3(1)(F) और 3(1)(G) का इस मामले में कोई स्पष्ट आधार नहीं बनता।
बैंकिंग अधिकारों में दखल नहीं
अदालत ने टिप्पणी की, “जब किसी बैंक ने कानूनी रूप से बंधक अधिकार प्राप्त किए हैं, तो उन अधिकारों को लागू करना SC/ST एक्ट के तहत अपराध नहीं माना जा सकता। ऐसा करना न्यायिक प्रणाली और वित्तीय स्थिरता के लिए खतरनाक मिसाल होगा।”
कोर्ट ने मामले में आयोग की कार्यवाही पर अंतरिम रोक लगाते हुए इसकी अगली सुनवाई 5 फरवरी 2026 को निर्धारित की है।
क्या है मामला?
- वर्ष 2013 में एक्सिस बैंक ने सुंदेव अप्लायंसेज लिमिटेड को ₹16.69 करोड़ का ऋण दिया था।
- इसके बदले में महाराष्ट्र के वसई स्थित एक संपत्ति को बंधक रखा गया था।
- ऋण का भुगतान न होने पर 2017 में खाते को एनपीए (Non-Performing Asset) घोषित कर दिया गया।
- इसके बाद बैंक ने SARFAESI अधिनियम, 2002 के तहत कार्रवाई शुरू कर संपत्ति को कब्जे में लेने का प्रयास किया।
- इस पर एक पक्ष ने SC/ST एक्ट की धाराओं 3(1)(F) और 3(1)(G) का हवाला देकर NCST में शिकायत दर्ज की।
- आयोग ने बैंक अधिकारियों को तलब किया, जिसके खिलाफ बैंक ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
SC/ST एक्ट की संबंधित धाराएं क्या कहती हैं?
- धारा 3(1)(F): यदि कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति या जनजाति के सदस्य की भूमि पर अवैध कब्जा करता है, तो यह अपराध है।
- धारा 3(1)(G): अनुसूचित जाति/जनजाति के व्यक्ति को जबरन भूमि से बेदखल करना भी अपराध की श्रेणी में आता है।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि इन धाराओं का उद्देश्य ऐसे मामलों पर लागू होता है जहां ज़मीन पर जबरन और अवैध कब्जा हो, ना कि वैध वित्तीय अनुबंधों या बैंकिंग लेनदेन पर।
कोर्ट की स्पष्ट टिप्पणी
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने कहा:
“SC/ST एक्ट का उद्देश्य ऐसे वर्गों को अत्याचार से सुरक्षा देना है, लेकिन इसे वैध कॉमर्शियल गतिविधियों और वित्तीय अनुबंधों को बाधित करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। SARFAESI जैसे आर्थिक कानूनों को SC/ST एक्ट के जरिए निष्क्रिय नहीं किया जा सकता।”
निष्कर्ष
यह निर्णय भविष्य में उन मामलों के लिए मिसाल बनेगा जहां SC/ST एक्ट का दुरुपयोग कर वैध बैंकिंग प्रक्रियाओं को रोका जा रहा है। दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला वित्तीय संस्थानों को राहत देने वाला है और यह सुनिश्चित करता है कि कानूनी रूप से प्राप्त मॉर्गेज अधिकारों को SC/ST एक्ट की आड़ में चुनौती नहीं दी जा सकती।