Badal entrance ceremony बादल प्रवेशोत्सव समारोह में शामिल हुए प्रभारी मंत्री

Badal entrance ceremony

Badal entrance ceremony  बादल अकादमी में प्रवेश ले रहे नए छात्र को दी शुभकामनाएं

Badal entrance ceremony  जगदलपुर !  इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ से संबद्धता के उपरांत बस्तर एकेडमी ऑफ डांस आर्ट एंड लिटरेचर (बादल) को परीक्षा केन्द्र की मान्यता मिली है, जिसमें अध्ययनरत विद्यार्थियों के उत्साह एवं ज्ञानवर्धन के लिए प्रवेशोत्सव का कार्यक्रम आयोजित किया गया है।

Badal entrance ceremony  उद्योग एवं प्रभारी मंत्री  कवासी लखमा ने बादल अकादमी में प्रवेश ले रहे नए छात्र को शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री के घोषणा से बादल संस्था की स्थापना हुई। बादल के माध्यम से बस्तर की कला, संस्कृति, भाषा को संरक्षित कर नई पीढ़ी को हस्तांतरित करने का कार्य किया जा रहा है। संस्था को खैरागढ़ के कला विश्वविद्यालय से जुड़ने पर यहां अध्ययन करने वाले बच्चों को लाभ होगा।

Badal entrance ceremony मंत्री  लखमा ने कहा कि बस्तर को विकास में आगे लेकर जाना है। लोक परंपरा, देवगुड़ी के लिए सरकार ने विकास का कार्य किया। बस्तर के दरभा में काॅफी, पपीता का भी उत्पादन की बात अब दिल्ली में भी होने लगा है।

Badal entrance ceremony  बस्तर के महुआ का भी बिक्री अब विदेशों में होने लगा है, देश में कपड़ा के क्षेत्र में भी बस्तर को पहचान मिला है। मुख्यमंत्री ने बस्तर के विकास में हर संभव प्रयास किया है। अब बादल अकादमी के माध्यम से कला संस्कृति को भी अलग पहचान दिलाने का प्रयास किया जाना है।

Badal entrance ceremony  इस अवसर पर बस्तर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष  लखेश्वर बघेल ने कहा कि बस्तर की रीति,नीति,परम्परा, संस्कृति को बढ़ाने में बस्तर के लोक कलाकरों के साथ समाज प्रमुखों और बस्तर नागरिकों को मिलकर प्रयास करने की अवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि बस्तर की लोक संस्कृति को संरक्षित और संवर्द्धित करने के लिए बस्तर आदिवासी क्षेत्र विकास प्राधिकरण के प्रस्ताव पर मुख्यमंत्री ने घोषणा किए और जिला प्रशासन ने बादल अकादमी का निर्माण किया। उन्होंने बादल को इंदिरा कला विश्वविद्यालय से सम्बद्ध होने और कक्षायें प्रारम्भ करने पर सभी को शुभकामनाएँ दी।

इंद्रावती विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष  राजीव शर्मा ने सम्बोधित करते हुए कहा कि चार वर्ष में सरकार ने सभी वर्ग के उत्थान के कार्य किए साथ ही संस्कृति, परम्परा, कला के उत्थान में अमूल्य योगदान दिया। बस्तर को अलग पहचान दिलाने नवा छत्तीसगढ़, नवा बस्तर की संकल्पना की। कार्यक्रम को कर्माकर मंडल के सदस्य  बलराम मौर्य ने भी सम्बोधित किया।

कार्यक्रम में महापौर  सफीरा साहू, अक्षय ऊर्जा के अध्यक्ष  मिथलेश स्वर्णकार, नगर पालिक निगम के अध्यक्ष  कविता साहू बस्तर विश्वविद्यालय के कुलपति  मनोज कुमार श्रीवास्तव सहित विभिन्न समाजों के प्रतिनिधि व अन्य अतिथिगण उपस्थित थे। कार्यक्रम में अतिथियों ने संस्था में प्रवेश लिए विद्यार्थियों का स्वागत तिलक और बैच लगाकर किए। साथ ही बादल संस्था द्वारा प्रकाशित (द्वितीय अंक) बादल पत्रिका का विमोचन किए। कार्यक्रम में बादल अकादमी के कलाकारों के द्वारा सांस्कृतिक प्रस्तुति भी दी गई।

कलेक्टर  चंदन कुमार ने बताया कि आदिवासी क्षेत्रों की संस्कृतियों में बस्तर की संस्कृति की अलग ही पहचान है, जिसमें विशेष रूप से लोकगीत, लोकनृत्य, स्थानीय भाषा,लोकसाहित्य एवं बस्तर शिल्पकला प्रमुख है, बादल स्थापना का उद्देश्य बस्तर संभाग के जनजाति संस्कृति ताना-बाना, धार्मिक रीति-रिवाज, त्योहार, लोकगीत, लोकनृत्य, लोककला, बोली-भाषा, शिल्पकला, पारंपरिक वाद्य यंत्र, बस्तरिया व्यंजन, बस्तरिया देवगुड़ी संस्कृति आदि को संरक्षण करना, संवर्धन करना, अगली पीढ़ी तक शुद्ध रूप से हस्तांतरण करना और बस्तर की समृद्धशाली संस्कृति से देश-दुनिया को परिचित कराना प्रमुख है।

यह कार्य आदिवासी समाज के पदाधिकारियों और जानकारों को बादल में जोड़े बिना पूर्ण नहीं हो सकता। इसी को दृष्टिगत रखते हुए पूर्व में संभाग के सभी जनजातियों का बैठक लेकर अपने-अपने समाज के सामाजिक ताना-बाना का अभिलेखीकरण करने हेतु दायित्व दिया गया था जिसे सभी समाजों ने पूर्ण कर लिया है।

इसी तरह बादल के उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए बस्तर जिला के धुरवा समाज, हल्बा समाज, मुरिया समाज, भतरा समाज, कोया समाज, मुण्डा समाज निरंतर कार्य कर रहे है। समय-समय पर बादल मंडई का आयोजन बादल की विशेषता है।

उन्होंने बताया कि इसी कड़ी में बादल में एक और महत्वपूर्ण कार्य प्रारंभ हुआ है, खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय से परीक्षा केन्द्र संचालन हेतु मान्यता प्राप्त होना । जिसके तहत् 1. प्रथमा एवं मध्यमा (गायन एवं तबला) इसके अंतर्गत प्रथमा (एक वर्ष) एवं मध्यमा (एक वर्ष) डिप्लोमा कोर्स सिखाया जायेगा जिसमें शास्त्रीय-सुगम एक वर्षीय एवं द्विवर्षीय शास्त्रीय-सुगम संगीत का पाठ्यक्रम पूरा करा जायेगा। 2. गीतांजलि जूनियर एवं सीनियर इसके अंतर्गत संगीत एवं तबला वादन सिखाया जायेगा।

3. लोकसंगीत  पाठ्यक्रम के अंतर्गत छत्तीसगढ़ एवं बस्तर के लोकसंगीत का प्रशिक्षण दिया जायेगा। 4. चित्रकला आर्ट द्विवर्षीय पाठ्यक्रम के अंतर्गत छत्तीसगढ़ एवं बस्तर के लोकचित्रकला का प्रशिक्षण एप्रीसिएशन कार्स दिया जायेगा।

उक्त सभी पाठ्यक्रमों का अध्यापन खैरागढ़ से डिप्लोमा-डिग्री प्राप्त अनुभवी शिक्षको द्वारा कराया जायेगा। उपरोक्त पाठ्यक्रमों का संचालन बादल एकेडमी में प्रत्येक सप्ताह में शुक्रवार, शनिवार एवं रविवार को निर्धारित समय सारिणी के अनुसार सुचारू रूप से संचालित किया जायेगा। इन विषयों में वर्तमान में लगभग 50 विद्यार्थीयों ने प्रवेश लिया है। जिसमें वर्तमान में बस्तर जिले एवं कोंडागांव जिले के विद्यार्थी शामिल है।

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