Baby Born In Space : अंतरिक्ष में पैदा होने वाला पहला बच्चा हमसे बिल्कुल अलग होगा, सिर बड़ा होगा और रंग पारदर्शी…जानिए और क्या कुछ रहेगा अलग
Baby Born In Space : अंतरिक्ष में पैदा हुआ बच्चा धरती के बच्चों से बहुत अलग होगा। इसका कारण है वहां गुरुत्वाकर्षण का न होना और हर जगह खतरनाक रेडिएशन।

Baby Born In Space : इस बात की संभावना है कि पेल्विक फ्लोर फटने के कारण जन्म देने के तुरंत बाद मां की मृत्यु हो सकती है। दूसरे जीवों पर प्रयोग करते हुए वैज्ञानिकों का मानना है कि डीएनए में बदलाव से ही स्पेस बेबी का सपना साकार हो सकता है।
लंबे समय से वैज्ञानिक पृथ्वी के अलावा अन्य ग्रहों पर जीवन की खोज कर रहे हैं। एलन मस्क ने तो यहां तक घोषणा कर दी है कि वो साल 2050 में मंगल ग्रह पर इंसानों की बस्ती बनाएंगे.

नासा समेत कई और संस्थाएं भी इस पर बात करती रहीं, लेकिन ये तभी मुमकिन होगा, जब इंसान का जन्म भी अंतरिक्ष में हो सके.
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तो क्या जीरो ग्रेविटी में बच्चे का जन्म संभव है? यदि ऐसा होता है, तो क्या माँ सुरक्षित रूप से बच पाएगी, और क्या पूरी तरह से अलग वातावरण और विकिरण अंतरिक्ष के बच्चे को एक एलियन जैसा बना देगा! जानिए इन सवालों के जवाब।
अंतरिक्ष में मानव उपस्थिति बनी हुई है
वर्ष 2000 से लेकर अब तक अंतरिक्ष में लगातार मानव की आवाजाही होती रही है। इस पूरी अवधि में किसी न किसी देश का कोई न कोई अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में रहा होगा।

तो यह तय हो गया कि हमारे लिए अंतरिक्ष में जाना इतना मुश्किल नहीं है, लेकिन फिलहाल हम इस निष्कर्ष के करीब भी नहीं पहुंचे हैं कि अगर अंतरिक्ष में बच्चा पैदा हुआ तो क्या होगा। या हो सकता है, या न हो।
क्या कठिनाइयाँ आएंगी
अंतरिक्ष में संबंध बनने पर एक महिला अंतरिक्ष यात्री गर्भवती हो सकती है, लेकिन अंतरिक्ष का चरम वातावरण भ्रूण के साथ खिलवाड़ कर सकता है, या इससे जन्म के दौरान मृत्यु भी हो सकती है।
इन्हीं कारणों को देखते हुए नासा की आधिकारिक नीति फिलहाल अंतरिक्ष में संबंध बनाने की इजाजत भी नहीं देती है।
इसके बाद भी हम एक बार समझने की कोशिश करते हैं कि अगर कोई महिला गर्भवती हो जाती है तो क्या-क्या दिक्कतें आ सकती हैं।
चूहों पर प्रयोग किया
अंतरिक्ष गर्भधारण से पहले वैज्ञानिकों ने यह जांचने की कोशिश की थी कि वहां के रेडिएशन का स्पर्म पर क्या असर होता है। इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन चूहों के फ्रीज-ड्राइड स्पर्म को अपने साथ ले गया और 6
साल बाद उन्हें वापस लाकर धरती पर फर्टिलाइज किया। वैज्ञानिकों ने कुल 168 चूहों के जन्म के बाद जांच की और पाया कि किसी पर रेडिएशन का कोई असर नहीं हुआ।
यह अध्ययन पिछले साल के अंत में साइंस एडवांसेज जर्नल में प्रकाशित हुआ था। इससे यह तय हुआ कि अंतरिक्ष पर कॉस्मिक किरणों का असर चूहों पर नहीं पड़ेगा, लेकिन इससे भी जन्म की संभावना नहीं बनती।
अगर अंतरिक्ष में गर्भ ठहर भी जाता है तो जीरो-ग्रेविटी सबसे ज्यादा मुश्किल देगी।
अंतरिक्ष यात्रियों की हड्डियों का घनत्व तेजी से घटता है, यानी हड्डियां कमजोर होती चली जाती हैं। यह प्रक्रिया इतनी तेज है

कि अगर आप 6 महीने तक अंतरिक्ष में रहें तो भी आपकी 12 प्रतिशत तक हड्डियों की सघनता खत्म हो जाएगी। ऐसे में डिलीवरी के दौरान पेल्विक फ्लोर पर बढ़ते दबाव के कारण गर्भवती महिला की हड्डियां
चटक सकती हैं या टूट सकती हैं या आंतरिक रक्तस्राव हो सकता है। बता दें कि पेल्विक फ्लोर शरीर का वह हिस्सा होता है, जिसमें गर्भाशय, योनि, मलाशय और मूत्राशय शामिल होते हैं।
ये चीजें प्रभावित करेंगी
मान लीजिए ये सब सही है तो अंतरिक्ष का बच्चा धरती पर पैदा हुए इंसानों से अलग होगा, इसकी पूरी संभावना है. जैसे बिना गुरुत्वाकर्षण के विकास के कारण उसका शरीर अलग हो सकता है।
खासकर उसका सिर बड़ा होगा, इसकी प्रबल संभावना है। यह संभावना तब और बढ़ जाती है जब मानव जन्म लगातार अंतरिक्ष में होने लगते हैं क्योंकि तब उनका जन्म मां की बर्थ कैनाल से नहीं, बल्कि सर्जरी से होगा।
यहां समझें कि बिना ग्रेविटी के नॉर्मल डिलीवरी संभव नहीं है, ऐसे में बच्चे का जन्म नॉर्मल तरीके से बर्थ कैनाल यानी मां के गर्भाशय ग्रीवा, वल्वा से होकर नहीं होगा, बल्कि ऑपरेशन से ही होगा।
बच्चे की त्वचा भी प्रभावित हो सकती है
पृथ्वी पर सूर्य की पराबैंगनी किरणों से बचाव के लिए हमारे भीतर मेलानिन बनता है, जिससे हमारा रंग गहरा या हल्का हो जाता है।
लेकिन अंतरिक्ष में कॉस्मिक किरणों से बचने के लिए गर्भवती महिला को वाहन के अंदर ही रहना होगा। इससे पैदा होने वाले बच्चे का रंग काफी हल्का हो सकता है क्योंकि उसके अंदर मेलेनिन नहीं होगा।
क्या डीएनए में बदलाव की जरूरत है?
यह भी हो सकता है कि अंतरिक्ष में पैदा हुआ बच्चा धरती के बच्चों से इतना अलग हो कि वह बिल्कुल एलियन यानी हमसे अलग दिखाई दे।
इसके बाद एक समस्या यह भी उत्पन्न होगी कि क्या वह पृथ्वी के वातावरण में जीवित रह पाएगा या नहीं। फिलहाल वैज्ञानिक भी इस दिशा में सोच रहे हैं कि अंतरिक्ष में जन्म लेने के लिए हमें अपना डीएनए भी बदलना पड़ सकता है।
पोलिश वैज्ञानिकों ने भी इस पर शोध शुरू कर दिया है, जिसका पहला पेपर साइंस डायरेक्ट जर्नल में ‘लॉन्ग टर्म मार्स बेस में मानव प्रजनन की जैविक और सामाजिक चुनौतियां’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ था।
अध्ययन में शामिल यूनिवर्सिटी ऑफ आईटी एंड मैनेजमेंट के शोधकर्ताओं का मानना है कि मंगल ग्रह पर मानव बसाना तभी संभव है,
जब हमारे डीएनए को भी इसके अनुकूल बनाया जा सके, ताकि हम पर रेडिएशन का कम से कम असर हो. वास्तव में अंतरिक्ष विकिरण इतना खतरनाक है कि पूरी तरह से सुरक्षित वातावरण में रहने के बाद भी
प्रशिक्षित अंतरिक्ष यात्री इसके प्रभाव से बच नहीं सकते हैं। ऐसे में कम से कम अभी तो जन्म के बाद भ्रूण का सुरक्षित और स्वस्थ रहना असंभव सा लगता है।