बढ़ा खतरा गुलमोहर, अमलताश और पेल्टाफार्म पर
राजकुमार मल
भाटापारा-गुलमोहर, अमलताश और पेल्टाफार्म। यह तीन शोभाकारी वृक्ष, पत्तियां विहीन हो रहें हैं। असमय आ रहे इस बदलाव के कारणों की खोज में यह जानकारी मिली है कि इन वृक्षों में सेमीलूपर कैटरपिलर नामक घातक कीट का अटैक हो चुका है।
सितंबर मध्य में बारिश नहीं होने का असर फसलों पर ही नहीं, वानिकी वृक्षों पर भी पड़ा है। नतीजे जो सामने आ रहे हैं, उसने वानिकी वैज्ञानिकों को इसलिए चिंता में डाल दिया है क्योंकि पहली बार गुलमोहर और अमलताश जैसे वृक्ष इस कीट के घातक हमले का शिकार हो चले हैं। रोड साइड में लगे पेल्टाफॉर्म जैसे वृक्षों पर भी असर देखा जा रहा है।
है अटैक पहले चरण में
गुलमोहर, अमलताश और पेल्टाफार्म। रोडसाइड के लिए आदर्श वृक्ष माने जाते हैं। इनमें पत्तियां समय से पहले गिरने लगीं हैं। आशंका थी इस स्थिति की क्योंकि सितंबर मध्य में आशा के अनुरूप बारिश नहीं हुई। लिहाजा वानिकी वैज्ञानिकों ने सूक्ष्मता से जांच की, तब सेमिलूपर कैटरपिलर के अटैक का खुलासा हुआ। हांलाकि यह पहले चरण में ही है लेकिन समय पर बचाव के उपाय नहीं किए गए तो बड़ी संख्या में इन वानिकी वृक्षों की असमय मौत हो जाएगी।
प्रभावी उपचार इनसे
वानिकी वृक्षों में कैटरपिलर के हमले से बचाव के लिए प्रणालीगत कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए। यह कीटनाशक कीड़ों के केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर प्रभावी असर डालता है। इन कीटनाशकों में क्लोरोपायरीफास व साइबरमेथ्रीन को असरदार माना गया है। नीम पत्तियों को पानी के साथ पीसकर स्प्रे करने से भी हमले को निष्प्रभावी किया जा सकता है। कीटग्रस्त वृक्षों के नीचे नियमित सफाई भी हमले को कमजोर करती है। समय-समय पर वानिकी वैज्ञानिकों से सलाह भी ली जानी चाहिए।
जानिए सेमीलूपर को
सेमीलूपर कैटरपिलर नामक कीट की वयस्क मादा अपने अंडे इन्हीं वृक्षों की पत्तियों पर देतीं हैं। पीले और नीले रंग वाले अंडों से अगले दो-तीन दिन बाद लार्वा या कैटरपिलर निकल जाते हैं। पांच चरणों में वृद्धि करने वाले इस कीट की लंबाई 7 सेमी तक होती है। शरीर पर सफेद धब्बेदार धारियां होती हैं। पत्तियों को भोजन के रूप में ग्रहण करने के बाद अपने चारों ओर रेशमी धागे बनाकर प्यूपा अवस्था में चले जाते हैं। 10 दिवस बाद इसमें से वयस्क कीट निकलते हैं और अटैक को पहले से ज्यादा घातक बनाते हैं।
तेजी से नष्ट करता है वृक्षों को
सेमीलूपर कैटरपिलर की मादा एक बार में 450 अंडे देती है, जिसमें से दो-तीन दिन में लार्वा या कैटरपिलर निकल आते हैं। यह कैटरपिलर शरीर को आधा लूप के रूप में मोड़कर गति करता है, जिस कारण इसे सेमीलूपर कहते हैं। वृक्षों में आक्रमण कर यह तेजी से वृक्ष की पत्तियों को चट कर जाती है। पत्तियों के न होने से प्रकाशसंश्लेषण की क्रिया बाधित होने के कारण पौधे कमजोर होकर कीट- व्याधि के संपर्क में आकर मरने लगते हैं।