Aaj Ki Jandhara : एक रोटी की भूख
Aaj Ki Jandhara : ‘भूख है तो सब्र कर, रोटी नहीं तो क्या,
आजकल है दिल्ली में जहरे बहस यह मुद्दा
Aaj Ki Jandhara : हमारे देश में आज भी बहुत से लोग भोजन के अभाव में रात में भूखे सोते हैं। वहीं, बहुत से बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। बहुत से लोगों को दो जून की रोटी भी मय्यसर नहीं है सरकार कल्याणकारी है। सरकार किसी को भूख से मरने नहीं देना चाहती है, यही कारण है कि सरकार देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में अनाज दे रही है। यह मुफ्त अनाज की योजना आगामी पांच साल के लिए है, इसलिए सरकार का दावा होता है कि कोई भूख से नहीं मरा है। हमारा देश धर्मपरायण है। लोग सालभर कोई ना कोई त्यौहार मनाते हैं। इन त्योहारों में लोग दान भी करते हैं। हम गाय, पशु-पक्षी तक को खिलाते है। भिक्षा माँगना हमारे यहाँ अपराध है इसी के मद्देनजर बहुत से आश्रम भी बने हैं, ताकि कोई भूखा ना सोये। इसके बावजूद यदि कुछ लोग केवल अपनी भूख के लिए छोटी-मोटी चोरी करते हैं और चोरी करते वे पकडे जाते हैं तो उनके साथ बेरहमी से मारपीट होती है, ऐसे में सवाल यह है कि व्यक्ति का अपराध क्या है? उसका अपराध उसकी भूख है।
भूख पर उसका नियत्रंण नहीं होता है। रायपुर के रेलवे स्टेशन पर भूख से तड़प रहे एक युवक ने बिस्किट का पैकेट चोरी कर लिया। इससे नाराज दुकानदार के शोहदों ने पहले उसे लकड़ी के डंडे से बेरहमी से की पीटा फिर उसे बाँधकर पूरे प्लेटफार्म पर घसीटा गया। इस दौरान रेलवे स्टेशन पर मौजूद किसी यात्री ने इस घटना का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर लोड कर दिया, मगर लोगों की कौन कहे वहां मौजुद आरपीएफ़ के जवानों ने भी मारपीट करने वाले दुकानदार के शोहदों को नहीं रोका।
हम अक्सर देखते हैं कि कहीं भी कोई मारपीट होती है, भले ही कोई पति ही अपनी से मारपीट करता है तो लोग कहते हैं कि उनके घर का मामला है। इसी तरह कभी मोहल्ले में कुछ गुंडे लोगों को परेशान कर रहे हैं तो भी लोग चुप रहते हैं कहीं कोई दुर्घटना का शिकार हो जाए तो लोग उसे सहारा तक देने नहीं जाते हैं, ऐसे तो समाज कहता है कि वह बहुत धर्मपरायण और ईश्वरवादी है और बात-बात में वह ईश्वर की दुहाई देता है पर हर अत्याचार के समय चुप्पी साध लेता है। अन्याय के खिलाफ एक तरह की चुप्पी है और यह चुप्पी बहुत भयावह है। कोई यह समझने का प्रयास नहीं करता है कि एक युवक बिस्किट का पैकेट क्यों चोरी कर रहा था क्या बिस्किट उसकी खुराक को पूरा कर देगा? दरअसल, हमारे समाज में बहुत से लोगों के पेट भरे हैं। उनका पेट इतना भरा है कि वे डायटिंग कर रहे हैं दूसरी तरफ एक बड़ा वर्ग है, जिसके पास खाना नहीं है।
आंकड़े कहते हैं कि 18.7 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। 57 प्रतिशत महिलाएं अनीमिया की चपेट में हैं ऐसे हम देश की स्थिति समझ सकते हैं। हमारे देश के युवा उस तरह से शारीरिक रूप से सक्षम नहीं हैं, जैसा कि होना चाहिए। विज्ञान ने यह सिद्ध किया है कि बच्चे का विकास 10 वर्ष की उम्र तक होता है। अगर बच्चा कुपोषण का शिकार है और उसकी मां अनीमिया की शिकार है तो बच्चे का समुचित विकास नहीं होगा। दूसरी तरफ हमने देखा कि हमारे देश में एक धनाढ्य परिवार में शाही शादी हुई। उसमें नाना प्रकार के पकवान बने। इन शादियों में बहुत सा खाना फेंका जाता है, जबकि देश में बहुत से लोग भूखे सोते हैं।
निदाबाजी का एक शेर है-
‘सारे दिन भगवान के, क्या जुम्मा क्या पीर
जब तक सोए देर तक, भूखा रहे फकीर’
ऐसे लोग जिनके पास दूसरे दिन के लिए खाने को कुछ भी नहीं है जो फकीर और पीर हैं, वो जुम्मा या पीर के दिन भूखे रहते हैं पर हमारे यहां कुछ लोग धार्मिक कारणों से उपवास रखते हैं। कुछ लोग अपने शरीर को शुद्घ करने के लिए उपवास रखते हैं, कुछ लोग डॉयटिंग के हिसाब से उपवास करते हैं, मगर जिनके पास खाने के लिए नहीं है, वो एक बिस्कुट का पैकेट चुरा कर भाग रहा है और पकडऩे वाले उसको बेदम मारपीट रहे हैं।
इससे पता चलता है कि आदमी की भूख उस पर कितनी हावी है? हम जहां की बात कर रहे हैं उस रेलवे स्टेशन के बाहर एक गुरूद्वारा है। बहुत सारे गुरूद्वारों में लंगर चलता है और वहां बिना भेदभाव के लोगों को खाना आसानी से मिल जाता है। बहुत से लोग स्टेशन के बाहर और अस्पताल के बाहर बैठे लोगों को खाना उपलब्ध कराते हैं। कुछ लोग अपनी-अपनी सुविधाओं से भी लोगों को खाना देते हैं। सोशल मीडिया पर एक कहानी है जिसमें एक व्यक्ति प्रतिदिन आश्रम में दो सौ टिफिन खाना पहुंचाता है।
पर क्या समाज में हम कितने असंवेदनशील हो गए हैं ? या हमारे भीतर इतना गुस्सा है, जो लड़के बिस्कुट चुराने वाले के साथ मारपीट कर रहे थे वो भी खानपान की दुकान पर काम करते हैं। वे भी कोई बहुत पैसे वाले नहीं हैं। पर उनके भीतर गरीब की पीड़ा नहीं आती हैं, वे घसीटते हुए एक प्लेटफॉर्म से लाए हैं, और लोग वहां वीडियो तो बना रहे थे, और जीआरपी थाने तक ले जा रहे हैं। यह हमारे समाज में असंवेदनशीलता को दिखाता है। हमारा संविधान कहता है कि जीने का हक उसको भोजन का हक है, पर क्या वाकई उनको भोजन का हक मिल रहा है ? क्या वह जी पा रहा है ? क्या संविधान के मूलभूत अधिकारों की रक्षा हो पा रही है ? अगर किसी बच्चे को शिक्षा का अधिकार है तो क्या शिक्षा मिल पा रही है ? रोजगार का अधिकार है तो क्या उसको रोजगार मिल रहा है ?
इस तरह की घटनाएं चैंकाती हैं, अब अखबारों और मीडिया से भूख की खबरें गायब हैं। ये खबरें इसलिए गायब हैं कि कोई इस बात पर विश्वास नहीं करेगा कि देश में जो खाद्यान्न सुरक्षा की व्यवस्था है। पीडीएस की इतनी अच्छी व्यवस्था है लोगों को सस्ते दर पर भोजन मिल रहा है। इसके बावजूद कोई एक बिस्कुट का पैकेट चुरा कर भाग रहा है या लोग रोटी के लिए बैठे हैं, हम जगह-जगह देखते हैं कि लोग दो जून की रोटी के लिए यहां-वहां टकटकी लगाकर देखते रहते हैं। या भूखे सोने के लिए मजबूर रहते हैं। आंकड़े बताते हैं कि सरकार हमें अगर राशन का चावल देती है तो यह पोषण के लिए आवश्यक है। इसके बावजूद लोग चावल लेकर संतुष्ट हैं। उनको लगता है कि इसे खाकर हम अपनी भूख मिटा सकते हैं। ये गरीब ही अब हमारे सिनेमा के पर्दे से भी गायब हो गए।
अगर हम तीन-चार दशक पहले जाते हैं तो हमारे यहां बहुत सी ऐसी फिल्में बनती थीं जो सामाजिक सरोकार से जुड़ी होती थीं। बहुत से फिल्म मेकर ने हमारे देश की गरीबी दिखाई है, पर अब दौर बदल गया। एनआरआई वाली फिल्म दिखाई जाती है, राजनीतिक मंचों से भी उन मुद्दों की चर्चा नहीं होती है बल्कि अब धर्म संप्रदाय पर बहस होती है। पर भूख की बात नहीं होती है।
फिल्म ‘रोटी’ 1974 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म की कहानी में एक आदमी के रोटी के लिए संघर्ष और उसे पाने के लिए वह किस हद तक जा सकता है, की थी, वह रोटी की खातिर एक आदमी की हत्या कर देता है और इस कारण उसे फांसी की सजा सुनाई जाती है। रोटी के लिए संघर्ष की कहानी सदियों से चल रही है। दुनियाभर में सत्ता राजतन्त्र की हो या लोकतंत्र की हो या फिर वामपंथ की हो। भोजन या रोटी की गारंटी देने की दुहाई सब देते हैं, लेकिन आजतक यह समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। आज हम इसकी चर्चा इसलिए कर रहे हैं कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के रेलवे स्टेशन पर भूख से तड़प रहे एक युवक ने बिस्किट का पैकेट चोरी कर लिया। यह मामला भी भूख से जुड़ा है।
भारत सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है हम कह रहे हैं कि विश्व गुरु बनने जा रहे हैं। रोज दावे आ रहे हैं कि हम बेरोजगारी को दूर करेंगे. पांच करोड़ लोगों को रोजगार देने वाले हैं। हुनर के साथ रोजगार देने वाले हैं. लोगों को खाने-पीने का कोई संकट नहीं है। बेरोजगारी की दरों को भी हम खारिज कर रहे हैं, पर हमारे समाज में जो असमानता है, बहुत तेजी से बढ़ रही है। अमीर और गरीब के बीच बड़ी खाई दिखती है। आवश्यक चीजों की कीमतें भी बहुत तेजी से बढ़ रही हैं। ऐसे में एक गरीब आदमी जो न्यूनतम मजदूरी से भी कम कमाता है या जिसके पास कोई रोजगार नहीं है, वो युवक यदि भूख लगती है तो अपनी भूख पर वो कैसे नियंत्रण करेगा ? इसका कोई मैकेनिजम नहीं है, देश में या किसी के पास नहीं है। बहुत से लोग भूख को काबू कर लेते हैं लेकिन बहुत से ऐसे लोग होते हैं जो भूख पर काबू नहीं कर पाते हैं।
वर्ल्ड इक्वालिटी 2022 के डाटा के मुताबिक, बढ़ती गरीबी के साथ भारत
दुनिया के सबसे असमान देशों में से एक था। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में शीर्ष 10 फीसदी और 1 फीसदी कुल राष्ट्रीय आय का 57 फीसदी और 22 फीसदी हिस्सा रखते हैं। लोगों की मूलभूत आवश्यकता को लेकर ज्यादातर भारतीय संघर्ष कर रहे हैं। ईटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि वस्तुओं में बढ़ोतरी के कारण ज्यादातर चीजों के दाम में इजाफा देखा जा रहा है। इस कारण कम आय वाले परिवारों को आवश्यक समानों को खरीदने में भी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। पिछले दो महीनों में शहरी बाजारों में 5 रुपये, 10 रुपये और 20 रुपये के छोटे पैक का कुल बिक्री में योगदान लगभग 5 फीसदी बढ़ा है. वहीं पाम तेल, गेहूं, चीनी और कॉफी जैसी चीजों के दाम ज्यादा बढ़ चुके हैं. मार्च में अनाज और उत्पादों की महंगाई दर 15.3 फीसदी थी. पिछले महीने दूध की महंगाई दर 9.3 प्रतिशत थी। दूध की कीमत में कई बार बढ़ोतरी देखी गई है, जिसका असर देश के ज्यादातर शहरों में देखा जा सकता है. एक कविता है कि-
दूध कटोरा तक्षक को , शैशव को सिसकी
सबका सब आकाश बांधकर चीलें खिसकी
कब तक अपनी भूख नारों और झुनझुनों से बहलाएँ
छोटे -छोटे दरवाज़े हैं , आदम क़द इच्छाएँ ।
Aaj Ki Jandhara : नेताओं के भाषण बहुत बड़े-बड़े हैं दावे बहुत बड़े-बड़े हैं, अभी लोक लुभावन बजट भी आया है, पर इन सब के बीच हमारे देश में साल दर साल चीजों की कीमतें बढ़ रही हैं। पिछले पांच वर्षों में भारत के सात प्रमुख शहरों में आवास की कीमतों और किराये में उल्लेखनीय बढ़ोतरी देखी गई है, ऐसे में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि ज्यादातर गरीब परिवार अपनी आवश्यक सुविधाओं को पाने के लिए कठिनाई में है। हालांकि लग्जरी सुविधाओं की मांग बढ़ी है पर इसे मध्यम वर्ग या गरीब वर्ग को पाना आसान नहीं है।
Aaj Ki Jandhara : ग्लोबल हंगर इंडेक्स की सूची के मुताबिक, भुखमरी के शिकार देशों में भारत का स्थान 94वें नंबर पर है. हालांकि पिछले साल की तुलना में इसके स्तर में कुछ सुधार हुआ है. इसके बावजूद आर्थिक तौर पर कमजोर माने जाने वाले पड़ोसी देशों जैसे बांग्लादेश, म्यांमार और पाकिस्तान से भी भारत पीछे है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की 14 फीसदी आबादी कुपोषण की शिकार है। आमतौर पर भुखमरी का कारण खराब बुनियादी ढांचे के कारण उन क्षेत्रों में भोजन पहुंचाना मुश्किल हो जाता है या असंभव हो जाता है तो वहां भोजन की कमी होती है। सड़क की खराब स्थिति के कारण भी देश के एक क्षेत्र में लोग भूख से मर गए हैं, जबकि दूसरे क्षेत्र में भोजन प्रचुर मात्रा में होता है।
भोजन की उपलब्धता को लेकर कोई संदेह नहीं है कि हम खाद्यान्न के मामले में सुरक्षित हुए हैं पर ये खाद्यान्न किसके-किसके पास जाएगा यह बताना मुश्किल है। व्यंग्यकार शरद जोशी ने लिखा कि दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम। पर यदि उस पर पता भी लिखा होता, तो दाना सही जगह पहुंच जाता। दरअसल दाने पर पता नहीं लिखे होने के कारण दाना गरीब की जगह किसी सेठ के गोदाम में पहुंच जाता है। यह मामला भूखमरी से जुड़ा है, आम आदमी की जरूरतों से जुड़ा है। ऐसे में यदि एक युवक बिस्कुट का पैकेट चुराता है, और अपनी भूख के लिए मार खाता है तो यह हमारे सभ्य समाज के लिए चिंता का विषय है।
Bilaspur Railway Colony : रेलवे कालोनी में चारों ओर लगाए जा रहे बेरियर जानलेवा
यह तो एक घटना है जो हमारे सामने आ गई। ऐसी सैकड़ों घटनाएं जहां बच्चे अपनी भूख के लिए छोटी-मोटी चोरी करते हैं, या हेराफेरी करते हैं। जिनमें इस तरह की हिम्मत नहीं होती वो रात को भूखे ही सो जाते हैं। हमें देखना होगा कि किस तरह हम संवेदनशील बनें। आंकड़े कुछ भी कहें पर हकीकत रेलवे स्टेशन की घटना बयान कर रही है।