नई दिल्ली। अरावली रेंज की 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को अरावली पर्वत न मानने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। देश की सर्वोच्च अदालत ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई की। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि इस विषय में कुछ गलत जानकारियां फैलाई जा रही हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कई पहलुओं को स्पष्ट किए जाने की आवश्यकता है, इसी कारण अदालत ने इस मामले को संज्ञान में लिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ी रेंज से जुड़े तथ्यों और तकनीकी बिंदुओं की जांच के लिए एक समिति के गठन का आदेश दिया है। साथ ही इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख 21 जनवरी तय की गई है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि समिति की रिपोर्ट और उसके आधार पर कोई भी अंतिम निर्णय आने तक पूर्व आदेश पर रोक जारी रहेगी।
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अरावली हिल्स और अरावली रेंज से जुड़े कई तकनीकी और वैज्ञानिक बिंदु हैं, जिनका स्पष्ट होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि एक उच्चस्तरीय समिति लंबे समय तक अरावली पर्वत श्रंखला का अध्ययन करेगी। इस समिति में संबंधित क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल होंगे, ताकि अरावली की संरचनात्मक और पारिस्थितिकीय अखंडता को सुरक्षित रखा जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि समिति की सिफारिशें आने और अदालत द्वारा अंतिम निर्णय दिए जाने तक इस विषय में किसी भी तरह की कार्रवाई स्थगित रहेगी।
नई जांच समिति के गठन का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा अरावली हिल्स और अरावली रेंज की परिभाषा को मानने संबंधी 20 नवंबर को दिए गए अपने पूर्व आदेश पर भी रोक लगा दी है। नवंबर में अदालत ने यह स्वीकार किया था कि 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को अरावली का हिस्सा नहीं माना जाना चाहिए। इस परिभाषा के लागू होने से अरावली क्षेत्र के बड़े हिस्से में नियंत्रित खनन गतिविधियों की अनुमति मिलने की आशंका जताई जा रही थी।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अगुवाई वाली पीठ ने माना कि इस विषय में कई महत्वपूर्ण मुद्दों की दोबारा जांच आवश्यक है। इसी को ध्यान में रखते हुए अदालत ने एक नई विशेषज्ञ समिति के गठन का आदेश दिया है, जो अरावली पर्वत श्रंखला की भौगोलिक, संरचनात्मक और पर्यावरणीय स्थिति का विस्तृत अध्ययन करेगी।
केंद्र और चार राज्यों को नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार के साथ-साथ अरावली क्षेत्र से जुड़े चार राज्यों—राजस्थान, गुजरात, दिल्ली और हरियाणा—को भी नोटिस जारी किया है। अदालत ने इन सभी से इस विषय पर विस्तृत जवाब मांगा है। अरावली पर्वत श्रंखला इन चारों राज्यों में फैली हुई है। इसका एक सिरा गुजरात में और दूसरा दिल्ली में स्थित है, जबकि इसका सबसे बड़ा हिस्सा राजस्थान में आता है। हरियाणा में भी अरावली रेंज का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र मौजूद है।
अरावली पर्वत हिमालय की तुलना में अधिक ऊंचे नहीं हैं, लेकिन जैव विविधता की दृष्टि से यह क्षेत्र बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां कई प्रकार के वन्य जीव, पेड़-पौधे और पारिस्थितिक तंत्र पाए जाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर खनन गतिविधियां शुरू होती हैं, तो इससे पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है और वन्य जीवों के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को अरावली संरक्षण की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है। अब सभी की निगाहें गठित समिति की रिपोर्ट और 21 जनवरी को होने वाली अगली सुनवाई पर टिकी हुई हैं।