दिल्ली के निजी स्कूलों में 15–20 वर्ष पहले बढ़ी हुई फीस देकर पढ़ाई करने वाले छात्रों और उनके परिजनों के लिए राहत की उम्मीद जगी है। दिल्ली हाईकोर्ट ने शिक्षा निदेशालय (DoE) को निर्देश दिए हैं कि वह ऐसी व्यवस्था विकसित करे, जिससे उस अवधि में संबंधित स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों का विवरण जुटाया जा सके। कोर्ट का स्पष्ट मत है कि यदि स्कूलों ने नियमों के विरुद्ध अतिरिक्त फीस वसूली है, तो पूर्व छात्रों और उनके परिजनों को उसका रिफंड मिलना चाहिए।
यह मामला निजी स्कूलों द्वारा छठे वेतन आयोग के नाम पर वसूली गई बढ़ी हुई फीस से जुड़ा है, जिस पर दिल्ली हाईकोर्ट में एक बार फिर सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ के समक्ष निजी स्कूलों ने दलील दी कि 15–20 साल पुराने छात्रों का रिकॉर्ड उपलब्ध न होने के कारण विवरण जुटाना कठिन है। इस पर अदालत ने शिक्षा निदेशालय को निर्देश दिया कि वह सभी तथ्यों को एकत्र कर ऐसा प्रभावी तंत्र तैयार करे, जिससे प्रभावित छात्रों की पहचान हो सके।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि उसकी रजिस्ट्री में जमा लगभग 500 करोड़ रुपये की राशि वास्तविक हकदारों को लौटाने की व्यवस्था की जानी चाहिए। अदालत के अनुसार, ब्याज सहित कुल रिफंड राशि अब 1,200 करोड़ रुपये से अधिक हो चुकी है, जिसे उन छात्रों और उनके परिजनों को वापस किया जाना है, जिनसे शिक्षकों के वेतन में छठे वेतन आयोग के तहत बढ़ोतरी के नाम पर अतिरिक्त फीस वसूली गई थी।
हाईकोर्ट के निर्देशों के बाद गैर सरकारी संगठन ‘जस्टिस फॉर ऑल’ की ओर से वकील खगेश बी. झा और वकील शिखा शर्मा बग्गा ने फीस रिफंड अभियान शुरू किया है। इसके तहत व्हाट्सऐप ग्रुप के माध्यम से अभिभावकों और पूर्व छात्रों से संपर्क कर जानकारी एकत्र की जा रही है।
बताया गया है कि वर्ष 2006 से 2010 के बीच दिल्ली के निजी स्कूलों ने छठे वेतन आयोग को लागू करने के नाम पर 40 से 400 प्रतिशत तक फीस बढ़ाई थी। इस बढ़ोतरी का अभिभावकों ने विरोध किया, जिसके बाद मामला हाईकोर्ट पहुंचा। अदालत ने जांच के लिए अनिल देव सिंह समिति का गठन किया, जिसने 1,200 से अधिक स्कूलों के खातों की जांच की। जांच में करीब 99 प्रतिशत स्कूलों के खातों में वित्तीय अनियमितताएं पाई गईं और समिति ने अतिरिक्त वसूली गई फीस लौटाने की सिफारिश की।
अनिल देव सिंह समिति के आदेश के खिलाफ 220 निजी स्कूलों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। सुनवाई से पहले अदालत ने स्कूलों को निर्देश दिया था कि वे बढ़ी हुई फीस का 75 प्रतिशत हिस्सा कोर्ट की रजिस्ट्री में जमा कराएं। इसके तहत वर्ष 2014 में लगभग 500 करोड़ रुपये जमा किए गए, जो ब्याज सहित अब 1,200 करोड़ रुपये से अधिक हो चुके हैं।
फिलहाल सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि यह राशि वास्तविक हकदारों तक कैसे पहुंचाई जाए। मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में अगली सुनवाई 17 जनवरी को निर्धारित की गई है।