अटलजी की विदेश नीति का मूलमंत्र-संतुलन,सह अस्तित्व,स्वायत्ता और संवाद : डॉ.ब्रह्मदीप अलूने

अटल बिहारी वाजपेयी की विदेश नीति संतुलन,सह अस्तित्व,सम्मान और संवाद पर आधारित थी। उन्होंने भारत को वैश्विक मंच पर एक भरोसेमंद,परिपक्व और आत्मविश्वासी राष्ट्र के रूप में स्थापित किया। उन्होंने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को केवल सुरक्षा या रणनीति के चश्मे से नहीं, बल्कि संवाद,विश्वास और सह-अस्तित्व के आधार पर आगे बढ़ाने का प्रयास किया। उन्होंने कहा था कि हम दोस्त बदल सकते हैं,पड़ोसी नहीं।

भारत-पाक संबंध दशकों से अविश्वास और संघर्ष से ग्रस्त रहे हैं,किंतु वाजपेयी ने साहसिक पहल करते हुए संवाद का रास्ता चुना। 1999 में उनकी लाहौर बस यात्रा ऐतिहासिक मानी जाती है। इस कूटनीतिक यात्रा से समूचे उपमहाद्वीप में शांति का प्रतीकात्मक संदेश गया था। लाहौर घोषणा के माध्यम से उन्होंने परमाणु हथियारों के बावजूद शांति और विश्वास-निर्माण के उपायों पर सहमति बनाई। 2001 का आगरा शिखर सम्मेलन और इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत का उनका विचार इसी नीति का विस्तार था। नेपाल के साथ संबंधों में वाजपेयी सरकार ने लोकतंत्र और विकास को प्राथमिकता दी। भारत ने नेपाल में लोकतांत्रिक संस्थाओं को समर्थन दिया और आर्थिक सहयोग को बढ़ाया। उनकी नीति यह थी कि एक स्थिर और समृद्ध नेपाल,भारत की सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए आवश्यक है।

बांग्लादेश के संदर्भ में वाजपेयी की नीति व्यावहारिक और सहयोगात्मक रही। उन्होंने अवैध घुसपैठ,सीमा प्रबंधन और जल-साझेदारी जैसे संवेदनशील मुद्दों पर बातचीत को महत्व दिया। साथ ही व्यापार, संपर्क और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने पर जोर दिया। श्रीलंका में तमिल समस्या को लेकर उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत श्रीलंका की संप्रभुता का सम्मान करता है,लेकिन तमिलों के अधिकारों और राजनीतिक समाधान का समर्थन करता है। उन्होंने सैन्य हस्तक्षेप की बजाय राजनीतिक संवाद को प्राथमिकता दी। भूटान और मालदीव जैसे छोटे पड़ोसी देशों के साथ वाजपेयी की नीति सम्मान और साझेदारी पर आधारित थी। उन्होंने यह संदेश दिया कि भारत एक बड़ा भाई नहीं,बल्कि एक विश्वसनीय मित्र बनकर व्यवहार करना चाहता है। इस दौर में इन देशों से सुरक्षा,शिक्षा और बुनियादी ढांचे में सहयोग को बढ़ाया गया।

वाजपेयी की दक्षिण एशिया नीति का एक व्यापक मंच दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन था। वे क्षेत्रीय सहयोग के प्रबल समर्थक थे और मानते थे कि आर्थिक एकीकरण,व्यापार और संपर्क से ही दक्षिण एशिया की गरीबी और अस्थिरता दूर हो सकती है। उनकी नीति यह सीख देती है कि स्थायी शांति संवाद,विश्वास और मानवीय दृष्टि से ही संभव है।

अटल बिहारी वाजपेयी की चीन,रूस,अमेरिका और अन्य महाशक्तियों को लेकर नीति भारतीय विदेश नीति में एक ऐसे दौर का प्रतिनिधित्व करती है जहां भारत ने वैचारिक गुटबंदी से ऊपर उठकर राष्ट्रीय हित,रणनीतिक स्वायत्तता और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को प्राथमिकता दी। वाजपेयी युग की विदेश नीति संतुलन और संवाद पर आधारित थी।

चीन के प्रति नीति में वाजपेयी ने प्रतिस्पर्धा और सहयोग को समानांतर रूप से स्वीकार किया। 1962 के युद्ध की स्मृति और सीमा विवाद के बावजूद उन्होंने चीन को स्थायी शत्रु मानने के बजाय संवाद का पक्ष लिया। 2003 में उनकी चीन यात्रा ऐतिहासिक रही,जिसमें सीमा विवाद को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने की प्रतिबद्धता दोहराई गई और व्यापारिक व सांस्कृतिक संबंधों को गति मिली। वाजपेयी का मानना था कि एशिया की शांति और वैश्विक संतुलन के लिए भारत–चीन सहयोग आवश्यक है।

रूस के साथ संबंध वाजपेयी सरकार के समय विशेष रूप से मजबूत हुए। शीतयुद्ध के बाद सोवियत संघ के विघटन से रूस कमजोर स्थिति में था,लेकिन वाजपेयी ने पुराने भरोसे को बनाए रखा। 2000 में भारत–रूस रणनीतिक साझेदारी की घोषणा इसी नीति का परिणाम थी। रक्षा,ऊर्जा और अंतरिक्ष सहयोग को नई दिशा मिली। वाजपेयी मानते थे कि रूस भारत के लिए केवल हथियार आपूर्तिकर्ता नहीं, बल्कि दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदार है,जो बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को मजबूती देता है।

अमेरिका के प्रति नीति वाजपेयी की सबसे व्यावहारिक और साहसिक कूटनीतिक पहल मानी जाती है। 1998 के पोखरण परमाणु परीक्षणों के बाद अमेरिका सहित पश्चिमी देशों ने भारत पर प्रतिबंध लगाए.लेकिन वाजपेयी ने टकराव के बजाय संवाद चुना। उन्होंने अमेरिकी नेतृत्व को स्पष्ट किया कि भारत की परमाणु नीति सुरक्षा आवश्यकताओं पर आधारित है। जसवंत सिंह–स्टोर्ब टेलबॉट संवाद ने भारत–अमेरिका संबंधों में नया अध्याय खोला। धीरे-धीरे अमेरिका ने भारत को एक उभरती शक्ति के रूप में स्वीकार किया,जिससे भविष्य की रणनीतिक साझेदारी की नींव पड़ी।

अन्य महाशक्तियों और यूरोप के साथ वाजपेयी की नीति संतुलन और अवसरवाद से मुक्त रही। यूरोपीय संघ,जापान और फ्रांस जैसे देशों के साथ आर्थिक,तकनीकी और रक्षा सहयोग को बढ़ाया गया। उन्होंने भारत को एक जिम्मेदार वैश्विक शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया, जो अंतरराष्ट्रीय कानून, लोकतंत्र और बहुपक्षीय संस्थाओं में विश्वास रखता है।

वाजपेयी की विदेश नीति का केंद्रीय तत्व था रणनीतिक स्वायत्तता। वे किसी भी शक्ति गुट में बंधने के विरोधी थे। उनका मानना था कि भारत को अपने निर्णय स्वयं लेने चाहिए,चाहे वह परमाणु नीति हो, रक्षा सहयोग हो या वैश्विक मंचों पर रुख। अटलजी के नेतृत्व में भारत ने यह स्पष्ट कर दिया कि उसकी विदेश और सुरक्षा नीति किसी भी महाशक्ति के दबाव या प्रभाव में नहीं चलेगी। 1998 के पोखरण परमाणु परीक्षण इसका सबसे ठोस प्रमाण थे। अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों और आलोचनाओं के बावजूद यह निर्णय भारत की दीर्घकालिक सुरक्षा आवश्यकताओं के अनुरूप लिया गया। इसके साथ ही नो फर्स्ट यूज़ जैसी जिम्मेदार परमाणु नीति अपनाकर भारत ने यह संदेश दिया कि वह शक्ति के प्रयोग में संयम और नैतिकता को महत्व देता है। रणनीतिक स्वायत्तता का प्रभाव भारत के वैश्विक संबंधों में भी दिखाई दिया। अटलजी ने रूस के साथ ऐतिहासिक मित्रता को बनाए रखा, अमेरिका के साथ संवाद और विश्वास पर आधारित नए रिश्ते विकसित किए तथा चीन के साथ मतभेदों को नियंत्रित रखते हुए सहयोग बढ़ाया। यह संतुलन भारत को किसी एक ध्रुव पर निर्भर होने से बचाता रहा।

अटल बिहारी वाजपेयी के समय रणनीतिक स्वायत्तता ने भारत को एक ऐसी वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित किया, जो अपने हितों की रक्षा भी कर सकती है और विश्व शांति में रचनात्मक भूमिका भी निभा सकती है। अटल बिहारी वाजपेयी की विदेश नीति आधुनिक भारत की कूटनीतिक यात्रा में एक निर्णायक और परिपक्व चरण के रूप में देखी जाती है। यह नीति आदर्शवाद और यथार्थवाद का संतुलित मिश्रण थी, जिसमें राष्ट्रीय स्वाभिमान,रणनीतिक स्वायत्तता,संवाद और शांति जैसे तत्व समान रूप से उपस्थित थे। अटलजी की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ था बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का समर्थन। वे एकध्रुवीय वैश्विक प्रभुत्व के विरोधी थे और मानते थे कि विश्व शांति के लिए शक्ति का संतुलन आवश्यक है। इसी कारण उन्होंने संयुक्त राष्ट्र, गुटनिरपेक्ष आंदोलन और क्षेत्रीय संगठनों में भारत की सक्रिय भूमिका पर जोर दिया तथा भारत को एक जिम्मेदार वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित किया। आर्थिक कूटनीति भी उनकी विदेश नीति का अहम हिस्सा थी। वैश्वीकरण के दौर में उन्होंने व्यापार, निवेश और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा दिया। दक्षिण-पूर्व एशिया,यूरोप और खाड़ी देशों के साथ संबंधों को मजबूत कर भारत के आर्थिक हितों को वैश्विक स्तर पर जोड़ा। अटल बिहारी वाजपेयी की विदेश नीति दृढ़ता,कूटनीतिक चातुर्य,संतुलन और संवाद का आदर्श उदाहरण थी,जिसने भारत को वैश्विक पटल पर एक समर्थ और मजबूत देश के रूप में स्थापित किया।

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