बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक बार फिर मानवीय और संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाते हुए दुष्कर्म पीड़िता नाबालिग किशोरी के मामले में अहम फैसला सुनाया है। शीतकालीन अवकाश के बावजूद हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने विशेष सुनवाई कर 25 सप्ताह की गर्भवती पीड़िता को गर्भपात की अनुमति प्रदान की है।

जस्टिस पी.पी. साहू ने इस मामले की सुनवाई करते हुए रायपुर स्थित डॉ. भीमराव अंबेडकर मेमोरियल अस्पताल (मेकाहारा) और पं. जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज को निर्देश दिए कि विशेषज्ञ चिकित्सकों की निगरानी में गर्भपात की प्रक्रिया पूरी कराई जाए। साथ ही, भविष्य की कानूनी प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए भ्रूण का डीएनए सुरक्षित रखने के भी निर्देश दिए गए हैं।
16 वर्षीय नाबालिग से जुड़ा है मामला
यह मामला रायपुर जिले की 16 वर्षीय नाबालिग किशोरी से संबंधित है, जिसे आरोपी युवक ने प्रेम और विवाह का झांसा देकर दुष्कर्म का शिकार बनाया। परिजनों को तब संदेह हुआ जब किशोरी के शारीरिक बदलाव स्पष्ट होने लगे। पूछताछ के बाद किशोरी ने पूरी घटना बताई, जिसके बाद मेडिकल जांच कराई गई। जांच में सामने आया कि वह करीब छह माह, यानी लगभग 25 सप्ताह की गर्भवती है।
हाईकोर्ट में दायर की गई थी याचिका
गंभीर परिस्थिति को देखते हुए पीड़िता ने परिजनों के माध्यम से हाईकोर्ट में गर्भपात की अनुमति के लिए याचिका दायर की थी। इस पर 19 दिसंबर को हाईकोर्ट ने मेकाहारा अस्पताल और जेएनएम मेडिकल कॉलेज को मेडिकल बोर्ड गठित कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए थे।
मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया कि गर्भपात कराने से पीड़िता को कोई गंभीर चिकित्सकीय खतरा नहीं है।
कोर्ट ने पीड़िता के अधिकार को माना सर्वोपरि
मेडिकल रिपोर्ट मिलने के बाद मामले की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट ने अवकाश के दौरान विशेष पीठ गठित कर सुनवाई की। कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि दुष्कर्म पीड़िता को यह अधिकार है कि वह स्वयं यह तय करे कि वह गर्भावस्था को जारी रखना चाहती है या समाप्त करना।
एमटीपी एक्ट के तहत होगी प्रक्रिया
हाईकोर्ट ने निर्देश दिए कि गर्भपात की प्रक्रिया मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट, 1971 के प्रावधानों के अनुसार कराई जाए। यह प्रक्रिया दो पंजीकृत चिकित्सकों और विशेषज्ञ डॉक्टरों की निगरानी में होगी। पीड़िता और उसके परिजनों को अस्पताल प्रशासन के साथ समन्वय कर सभी आवश्यक औपचारिकताएं पूरी करने के निर्देश भी दिए गए हैं।
हाईकोर्ट का यह निर्णय कानून के साथ-साथ दुष्कर्म पीड़िताओं के अधिकार, गरिमा और मानसिक व शारीरिक सुरक्षा को प्राथमिकता देने वाला एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील कदम माना जा रहा है।