त्रिवेणी ज्ञान यज्ञ सप्ताह: श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं ने किया भाव विभोर

कथा को आगे बढ़ाते हुए पंडित भूपत नारायण शुक्ला ने बताया कि भगवान को माखन चोर क्यों कहा जाता है। भगवान कृष्ण को माखन चोर इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने बचपन में माखन चोरी करके नटखट शरारतों से सबको मोह लिया था। माखन चोरी केवनल एक चोरी नहीं बल्कि इसके पीछे गहरा भाव है। माखन इंसान के दिल में छिपे प्रेम और भक्ति का प्रतीक है, जिसे भगवान कृष्ण हमेशा अपने साथ ले जाना चाहते थे।

कथा वाचक पंडित शुक्ला ने बताया कि श्रीमद्भागवत में माखन चोरी (मक्खन चुराने) का प्रसंग भगवान कृष्ण की बाल-लीलाओं का एक प्रमुख और मनमोहक हिस्सा है। जिसमें वे मित्रों के साथ पड़ोसियों के घरों से माखन, दही और मिश्री चुराते थे, जिसे वे अपने साथियों में बांटते थे। यह लीला भक्तों के हृदय में प्रेम व भक्ति का प्रतीक है, जो दर्शाता है कि ईश्वर को शुद्ध, निस्वार्थ प्रेम स्वीकार है, भले ही वह “चोरी” के रूप में प्रकट हो। भगवान कृष्ण द्वारा माखन चुराने का कार्य भक्तों के प्रेम को स्वीकार करने का एक तरीका था। चोरी करना इस बात का प्रतीक है कि परमेश्वर औपचारिक भेंट की प्रतीक्षा नहीं करता – वह प्रेमपूर्वक शुद्ध हृदय से उमड़ने वाली भक्ति को ग्रहण करता है।

इंद्र के अहंकार से वृंदावन को बचाया


पंडित भूपत नारायण शुक्ल कथो को आगे बढ़ाते हुए गोवर्धन गिरी का प्रसंग सुनाया। उन्होंने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाओं से जहां कंस के भेजे विभिन्न राक्षसों का संहार किया, वहीं ब्रज के लोगों को कई बार संकट से बचाया। प्रसंग में कथाकार ने बताया गया कि इंद्र को अपनी सत्ता और शक्ति पर घमंड हो गया था। भगवान कृष्ण के कहने पर पर जब वृंदावन के लोगों ने गिरीराज गोर्वधन की पूजा करने लगे तो इससे गुस्साए इंद्र ने ब्रज मंडल पर भारी बरसात कराई। भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र के अहंकार को तोड़ने और ब्रजवासियों को भयंकर वर्षा से बचाने के लिए अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत सात दिनों तक उठाकर वृंदावन की रक्षा की, जिससे इंद्र का घमंड चूर-चूर हुआ और ब्रजवासी सुरक्षित रहे। पंडित शुक्ला ने बताया कि यह प्रसंग ईश्वर में अटूट आस्था और समर्पण का प्रतीक है, जिसे आज भी गोवर्धन पूजा के रूप में मनाया जाता है।

गीत संगीत से भाव विभोर हो रहे भक्त
त्रिवेणी ज्ञान यज्ञ सप्ताह के दौरान कथा वाचक के सुर से अपनी ताल मिलाने वाले कलाकारों की धुन पर भक्त भाव विभोर हो रहे हैं। कथा के दौरान बीच बीच में भक्ती गीतों पर सुर साधने वाले सरस्वती पुत्रों के के संगीत पर श्रद्धालु भक्ति रस में डूब जाते हैं। कथा में संगीत देने वाली टी में आर्गन पर रामदास दिवेदी चित्रकूट से, तबला पर मुन्ना ठाकुर चित्रकूट से, बेन्जो पर राम कुशवाहा साल्हेवारा से, पडे पर दुर्गा राम और सारंगी पर राम जी खैरागढ़ संगीत विश्व विद्यालय आदि शामिल हैं। कथा वाचक की कथा के साथ इनका संगीत भक्तों को बांधे रखता है।

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